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आज भी समय जटायु की बात दुहराता है।

आज भी समय जटायु की बात दुहराता है

सीता हरण होने के पश्चात विह्वल श्रीराम और लक्ष्मण के साथ वन में भटक रहे थे। कभी किसी पशु से पूछते, तो कभी किसी पक्षी से। कभी पेड़ की पत्तियों से पूछने लगते, क्या तुमने मेरी सीता को देखा है?

हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी।
तुम देखी सीता मृगनयनी।।

अतएव विक्षिप्त की भाँति पशु-पक्षियों से सीताजी का पता पूछता वह व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं था। वह एक पति था जिसके लिए पत्नी अर्धांगिनी थी। और जो अपनी पत्नी से अटूट कर प्रेम करता था। श्रीराम केवल सीताजी के लिए नहीं रो रहे थे। बल्कि सीताजी के रूप में स्वयं से अलग हो चुके अपने ही आधे शरीर के लिए रो रहे थे।

ऐसे ही वन में रोते-भटकते श्रीराम को भूमि पर घायल पड़े गिद्धराज जटायु मिले। जटायु ने राम को देखते ही कहा ! आओ राम ! प्राण तुम्हारी ही राह निहार रहे थे। यह भी पढ़ें – एक भक्त का राधारानी के प्रति प्रेम-भाव

प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण दौड़ कर जटायु के पास पहुँचे। श्रीराम ने भूमि पर बैठ कर घायल जटायु का शीश अपनी गोद में रख लिया और अपने अंगवस्त्र से उनके शरीर का रक्त पोंछने लगे। जटायु ने मुस्कुरा कर कहा ! रहने दो प्रभु ! यह रक्त ही मेरा आभूषण है। पुत्री सीता की रक्षा के लिए लड़ने पर प्राप्त हुआ प्रसाद है यह, इसे रहने दो।

सीताजी का नाम सुनते ही श्रीराम व्यग्र हो गए। बोले ! आपने देखा है मेरी सीता को? कौन हर ले गया उसे? किससे युद्ध करना पड़ा आपको? किसने की आपकी यह दशा? बोलिये गिद्धराज बोलिये।


लंकापति रावण ने ! उसी ने पुत्री सीता का हरण किया है। वह उन्हें ले कर दक्षिण दिशा की ओर गया है। सम्भवतः अपनी लंका में ले गया। मैं तुम्हें यही बताने के लिए ढूंढ रहा था प्रभु ! जटायु ने काँपते स्वर में कहा।

रावण ? राम के चेहरे पर पसरी चिन्ता की रेखाएँ और गहरी हो गईं। उन्होंने कुछ सोच कर कहा ! आपने उससे युद्ध क्यों किया गिद्धराज? आप तो जानते थे कि वह महा-बलशाली है। फिर यूँ प्राण देने के लिए क्यों उतर गए?

जटायु हँसे और बोले ! मैं जानता था कि रावण से उलझने का अर्थ मृत्यु है, पर मुझे यह मृत्यु ठीक लगी। यह सभ्यताओं का युद्ध है राम ! इसे टाला नहीं जा सकता। अतएव ढोंग करने वाले मूर्ख भी जानते हैं। यह भी पढ़ें – श्रीकृष्ण के मुकुट में मोर के पंख होने का कारण रामकथा में मिलता है।

कि अत्याचारी राक्षसों से युद्ध का दिन निकट है अब। उनसे युद्ध नहीं किया गया तो वे हमें खा जाएंगे। सभ्यता नष्ट हो जाएगी। अब इस युद्ध के हवन कुंड में किसी न किसी को तो प्रथम आहुति देनी ही थी न, सो मैंने दे दी।

भविष्य स्मरण रखेगा कि प्रभु श्रीराम के कालखण्ड में धर्म के लिए सबसे पहला बलिदान जटायु ने दिया था। इस शरीर का इससे अच्छा उपयोग और क्या होता प्रभु। यह भी पढ़ें – वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है


श्रीराम बोले ! किन्तु वे राक्षस हैं श्रेष्ठ ! बर्बर, असभ्य, अत्याचारी उनको कैसे पराजित किया जा सकता है? सत्ता का युद्ध भले बर्बरता के बल पर जीत लिया जाय प्रभु ! पर सभ्यताओं का युद्ध बलिदान के बल पर जीता जाता है।

आर्यावर्त के पास जब तक राष्ट्र और धर्म के लिए बलिदान होने वाले जटायु रहेंगे, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। प्रभु आप आगे बढ़ो और नाश करो इस राक्षसी असभ्यता का ! मानवों का जो झुंड स्त्रियों का आदर नहीं करे, उसका नाश हो जाना ही उचित है।

एक सीताजी का हरण ही स्वयं में इतना बड़ा अपराध है कि समूची राक्षस जाति को समाप्त कर दिया जाय। जटायु का मस्तक गर्व से चमक उठा था। प्रभु श्री म के रोम-रोम पुलकित हो उठे थे। उनकी आँखों में जल भर आया। वे चुपचाप जटायु का माथा सहलाने लगे।

जटायु ने श्रीराम के अश्रुओं को देखा तो बोले, मेरी मृत्यु का शोक न करो प्रभु ! मेरी मृत्यु पर गर्व करो। गर्व करो कि आपके भारत की गोद में अब भी वैसे लोग हैं जो निहत्थे हो कर भी रावण जैसे शक्तिशाली योद्धाओं से टकराने का साहस रखते हैं। यह भी पढ़ें – कैकेयी निंदा की पात्र है या वंदना की आइये जानें

गर्व करो कि तुम्हारे लोग अब भी धर्म की रक्षा के लिए लड़ते हैं, किसी को लूटने के लिए नहीं। गर्व करो कि आपके लोग बलिदान देना भूले नहीं है। मेरी मृत्यु पर शोक न करो प्रभु। श्रीराम की भुजाओं की नसें फड़क उठीं। उनका स्वर कठोर हो गया। बोले ! आपके वृद्ध शरीर पर किये गए एक-एक वार का मूल्य चुकाना होगा रावण को !


राक्षस जाति का अत्याचार अपने चरम पर पहुँच गया है, अब उनका नाश करना होगा। समय देखेगा कि धर्म का एक योद्धा राम अकेले ही कैसे समस्त अत्याचारियों को दण्ड देता है। मुझे बस इतनी पीड़ा है कि आपको मेरे लिए अपने प्राण देने पड़े। यह भी पढ़ें – भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया?

ऐसा न कहो प्रभु ! जब तक जटायु नहीं मरते, तब तक सभ्यता और कालखण्ड को श्रीराम नहीं मिलते। श्रीराम को पाने के लिए हर कालखण्ड में किसी न किसी जटायु को मरना पड़ता है। पर यह भी सत्य है कि जीने वाले कभी न कभी मर ही जाते हैं, पर जो लड़ कर मरते हैं वे अमर हो जाते हैं।

जटायू के स्वर मन्द पड़ने लगे थे। उन्होंने आँखें मूँद ली। वे श्रीराम के लिए, श्रीराम को छोड़ कर, श्रीराम के लोक के लिए निकल गए। दशरथ नन्दन प्रभु श्रीराम ने उसी वन में अपने हाथों से चिर-तिरस्कृत गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार किया। यह भी पढ़ें – अंतिम संस्कार क्यों किया जाता है ?

जो देश, धर्म और संस्कृति के रक्षार्थ लड़ कर मरते हैं, वे अमर हो जाते हैं। उन पर शोक नहीं गर्व करना चाहिए।

नगरी हो अयोध्या सी रघुकुल सा घराना हो



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