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अंत भला तो सब भला एक सुन्दर व्याख्यान

अंत भला तो सब भला एक सुन्दर व्याख्यान

जीवन भर ब्रह्म, आध्यात्म और कर्म की खोज करते रहें। और अंत में कुछ काम ना आए तो कोई लाभ नहीं। करना तो वह है जिससे अंत सुधर जाए। संकट के समय में भी जिसके ज्ञान का पतन ना हो, और घोर मृत्यु की यातनाएं भी जिसे भगवद-भाव से अलग ना कर सकें। उसे भगवान नित्य अपने साथ रखते हैं, कभी उसका साथ नहीं छोड़ते।

भगवान को चाहे जब याद कर लेना और बुला लेना साधारण बात नहीं है। इसके लिए बड़ी साधना और अभ्यास चाहिए।

एक राजा ने कहा यदि भगवान है, तो कोई मुझे उसका दर्शन करा दे। जो कहेगा कि भगवान है, परंतु दर्शन नहीं करा सकेगा, उसे प्राण दंड मिलेगा। बड़े-बड़े विद्वान और भक्त उसके राज्य में थे। पर मृत्यु के मुंह में कौन जाये। Please Read Also-राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई

एक दिन एक वीतराम निर्भय भक्त आया। उसने कहा ! कल दरबार में आकर मैं आपको भगवान के दर्शन कराऊंगा। दरबार लगा भक्तराज पहुंचे, और राजा के हाथ की अंगूठी देखकर बोले, ‘राजन’ यह इतनी चमकदार वस्तु क्या है? राजा ने नगर के सर्वश्रेष्ठ जौहरी को बुलाया और उस रत्न पारखी ने कहा कि यह अमुक रत्न है।

रत्न बहुत तरह के होते हैं, और उनके जानने की एक विद्या है। भक्त ने कहा वह विद्या मुझे अभी सिखाओ। राजा और जोहरी हंस पड़े। जो विद्या जौहरी को पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त होती रही है।

जन्म से मृत्यु तक उसके परिवार के लोग उसी विद्या का अभ्यास करते हैं। उस विद्या को एक दुनियादारी से अलग रहने वाला साधु क्षण भर में कैसे सीख सकता है ? Please Read Also-मनुष्य को नरक प्रदान करने वाले पाप कर्म कौन से हैं

भक्त कुछ क्रोधित हो गए। उसी समय वायु के स्पर्श से सुगंधि की एक लहर उन तक पहुंची। उन्होंने कहा ! ‘राजन’ यह सुगंध किसकी है। उसी की हवा है जिसे आप देखना चाहते हैं। इसी प्रकार जो भगवान को देखना चाहते हैं। उन्हें अपने साथ ही सखा या स्वामी बनाना चाहते हैं। उनके लिए स्वयं श्रीकृष्ण बताते हैं।


इस हेतु मुझको नित निरंतर ही सुमर कर युद्ध भी,
संशय नहीं, मुझमें मिले, मन बुद्धि मुझमें धर सभी।।


संसार का कार्य करते चलो, परंतु किसी भी कर्म में मुझे ना भूलो। फिर मैं तुम्हें कैसे भूल सकूंगा। यदि मृत्यु भी तुम्हारे सम्मुख आएगी, तो उसमें भी तुम मुझे ही देखोगे, मारक के रूप में नहीं, तारक के रूप में। मुझे याद रखो मैं तुम्हारे पास हूं।


भजता मुझे जो जन सदैव अन्यन मन से प्रीत से,
नित युक्त योगी वह मुझे पाता सरल सी रीति से।।


प्रत्येक समय भगवान में निवास करने वाला और अपने कर्मों से उनकी सेवा करने वाला नित्य परम धाम में बसता है। मुक्ति उसके सहवास से प्रसन्न होती है। मुक्ति पाने का एक और भी रहस्य है।

मृत्यु के समय यदि ज्ञान की अग्नि प्रज्वलित हो, भगवान की ज्योति जाग रही हो, सर्वत्र उज्जवल प्रकाश हो। शुभ कर्मों के दिन हों। और पुण्य के अयन हो, तो सब दु:ख छूट जाते हैं।Please Read Also-हमें प्रभु का साथ और विश्वास दोनों ही जरूरी है

इसके विपरीत यदि अज्ञान की घटा हो, भगवान से विमुखता हो, सर्वत्र अंधकार हो, अशुभ कर्मों का उदय हो, और पाप के अयन हों। तो मुक्ति नहीं मिलती। यही ज्ञान का रहस्य है। वेदों से, या यज्ञों से तप से, जो कुछ पुण्य फल मिलता है। उससे भी अधिक इस ज्ञान का आचरण करने वाला पाता है।



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