अंतिम संस्कार क्यों किया जाता है ? :- आत्मा जब शरीर छोड़ती है I तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है I ऐसे में वह स्वयं भी हथियार डाल देता है I अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है I
और इस चक्कर में कष्ट को झेला होता है I अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चलचित्र की तरह चल रही होती है I उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है I
इसलिए शरीर के पांच प्राण एक ‘धनंजय प्राण’ को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरंभ कर देते हैं I यह प्राण आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिए सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं I भक्तों के घर भी सांवरे आते रहा करो भजन
जो कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है I धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करती है I बरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है I और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते हैं I
कि व्यक्ति को पता चल जाता है I उसे बेचैनी होने लगती है I घबराहट होने लगती है I सारा शरीर फटने लगता है I खून की गति धीमी होने लगती है I सांस उखड़ने लगती है I बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं I अर्थात अब चेतना लुप्त होने लगती है I और मूर्छा आने लगती है I रामायण में कौन सा पात्र किस देवता का अवतार था?
चैतन्य ही आत्मा के होने का संकेत है I और जब आत्मा ही शरीर छोड़ने को तैयार होती है I तो चेतना को तो जाना ही है I और वो मूर्छित होने लगता है I बुद्धि समाप्त हो जाती है I और किसी अनजाने लोक में प्रवेश की अनुभूति होने लगती है I
यह चौथा आयाम होता है I फिर मूर्छा आ जाती है I और आत्मा एक झटके से किसी भी खुली हुई इंद्री से बाहर निकल जाती है I इसी समय चेहरा विकृत हो जाता है I यही आत्मा के शरीर छोड़ने का मुख्य चिन्ह होता है I
शरीर छोड़ने से पहले केवल कुछ पलों के लिए आत्मा अपनी शक्ति से शरीर को शत प्रतिशत सजीव करती है I ताकि उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध ना रहे I और फिर उसी समय आत्मा निकल जाती है I और शरीर खाली मकान की तरह निर्जीव रह जाता है I कलयुग में सिद्ध हो देव तुम्ही हनुमान हिंदी लिरिक्स
इससे पहले घर के आसपास कुत्ते बिल्ली के रोने की आवाजें आती है I इन पशुओं की आंखें अत्यधिक चमकीली होती है I जिससे यह रात के अंधेरे में तो क्या सूक्ष्म-शरीर धारी आत्माओं को भी देख लेते हैं I
जब किसी व्यक्ति की आत्मा शरीर छोड़ने को तैयार होती है I तो उसके अपने सगे संबंधी जो मृत आत्माओं के तौर पर होते हैं I उसे लेने आते हैं I और व्यक्ति उन्हें यमदूत समझता है I और कुत्ते-बिल्ली उन्हें साधारण जीवित मनुष्य ही समझते हैं I
और अनजान होने की वजह से उन्हें देख कर रोते हैं I और कभी-कभी भोंकते भी है I शरीर के पांच प्रकार के प्राण बाहर निकल कर उसी तरह सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं I
जैसे गर्भ में स्थूल-शरीर का निर्माण क्रम से होता है I सूक्ष्म-शरीर का निर्माण होते ही आत्मा अपने मूल बाहक धनंजय प्राण के द्वारा बड़े वेग से निकलकर सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश कर जाती है I
आत्मा शरीर के जिस अंग से निकलती है I उसे खोलती दौड़ती हुई निकलती है I जो लोग भयंकर पापी होते हैं I उनकी आत्मा मूत्र या मलमार्ग से निकलती है I जो पापी कम हैं और पुण्यात्मा अधिक हैं I
उनकी आत्मा नेत्रों से निकलती है I और पूर्ण धर्म निष्ठ हैं पुण्यात्मा और योगी पुरुष हैं I उनकी आत्मा ब्रह्मरंध्र से निकलती है I
अब शरीर से बाहर सूक्ष्म शरीर का निर्माण हुआ रहता है I लेकिन यह सभी का नहीं हुआ रहता I जो लोग अपने जीवन में ही मोह माया से मुक्त हो चुके योगी पुरुष हैं I उन्हीं के लिए तुरंत सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है I
अन्यथा जो लोग मोह माया से ग्रस्त हैं I परंतु बुद्धिमान है I ज्ञान विज्ञान अथवा पांडित्य से युक्त हैं I ऐसे लोगों के लिए दस दिनों में सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है I ब्रज की महारानी श्री राधा रानी के नाम का गुणगान
हिंदू धर्म शास्त्र में – दस गात्र का श्राद्ध और अंतिम दिन मृतक का श्राद्ध करने का विधान इसलिए है I कि दस दिनों में शरीर के दस अंगो का निर्माण इस विधान से पूर्ण हो जाए और आत्मा को सूक्ष्म शरीर मिल जाए I ऐसे में जब तक दस गात्र का श्राद्ध पूर्ण नहीं होता है I
और सूक्ष्म शरीर तैयार नहीं हो जाता I आत्मा प्रेत शरीर में निवास करती है I अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है I तो आत्मा प्रेत योनि में भटकती रहती है I एक और बात आत्मा के शरीर छोड़ते समय व्यक्ति को पानी की बहुत प्यास लगती है I
शरीर से प्राण निकलते समय कण्ठ सूखने लगता है I फिर ह्रदय सूखता जाता है I और इससे नाभि जलने लगती है I लेकिन कंठ अवरुद्ध होने से पानी पिया नहीं जाता I और ऐसी स्थिति में आत्मा शरीर छोड़ देती है I प्यास अधूरी रह जाती है I इसलिए अंतिम समय में मुख में ‘गंगाजल’ डालने का विधान है I
इसके बाद आत्मा का अगला पड़ाव होता है I शमशान का ‘पीपल’ I यंहा आत्मा के लिए यमघंट बंधा होता है I जिसमें पानी होता है I यहां प्यासी आत्मा यमघंट से पानी पीती है I जो उसके लिए अमृत तुल्य होता है I इस पानी से आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है I ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में क्या अंतर होता है ?
यह सब हिंदू धर्म शास्त्रों में विधान है I कि मृतक के लिए यह सब करना होता है I ताकि उसकी आत्मा को शांति मिले I अगर किसी कारणवश मृतक का दस गात्र का श्राद्ध ना हो सके I और उसके लिए पीपल का यमघंट भी नहीं बांधा जा सके I तो उसकी आत्मा प्रेत योनि में चली जाएगी I और फिर कब वहां से उसकी मुक्ति होगी कहना कठिन होगा I
हां ! कुछ उपाय अवश्य है पहला यह कि किसी के देहावसान होने के समय से लेकर तेरह दिन तक निरंतर भगवान के नामों का उच्चारण उच्च स्वर में जप अथवा कीर्तन किया जाए I और जो संस्कार बताए गए उनका पालन करने से उस आत्मा को मुक्ति मिल जाएगी I
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