श्रीकृष्ण ने राजा मोरध्वज के द्वारा कैसे तोडा अर्जुन का अभिमान : महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन को वहम हो गया I कि वह भगवान श्री कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं I अर्जुन सोचते थे कि भगवान ने मेरा रथ चलाया मेरे साथ रहे, इसलिए मैं भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूं I अर्जुन को क्या पता था I कि वह केवल भगवान के धर्म की स्थापना का जरिया था I
फिर भगवान ने उसका गर्व तोड़ने के लिए उसे एक परीक्षा का गवाह बनाने के लिए साथ ले गए I श्री कृष्ण और अर्जुन ने जोगियों का वेश बनाया I और वन एक शेर पकड़ा और भगवान पहुंच जाते हैं भगवान विष्णु के परम भक्त राजा मोरध्वज के द्वार के पास I
राजा मोरध्वज बहुत ही दानी और आवभगत करने वाले राजा थे I अपने द्वार पर आए हुए किसी को खाली हाथ और बिना भोज के जाने नहीं देते थे I दो साधु एक सिंह के साथ द्वार पर आए हैं यह जानकर राजा नंगे पांव दौड़कर द्वार पर गए I
और भगवान के तेज से नतमस्तक हो आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा भगवान कृष्ण ने मोरध्वज से कहा कि हम मेजबानी तब ही स्वीकार करेंगे I जब राजा उनकी शर्त मानें I राजा ने जोश से कहा आप जो भी कहेंगे मैं तैयार हूं I
भगवान कृष्ण ने कहा ! हम तो ब्राह्मण हैं कुछ भी खिला देना पर यह सिंह नरभक्षी है I तुम अगर अपने इकलौते बेटे को अपने हाथों से मार कर इसे खिला सको, तो ही हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करेंगे I अशोक वाटिका में जब रावण माता सीता जी के पास आता था तो वह तिनके को ओर क्यों देखती थीं i
भगवान की शर्त सुन मोरध्वज के होश उड़ गए फिर भी राजा अपना आतिथ्य धर्म नहीं छोड़ना चाहता था I उसने भगवान से कहा प्रभु ! मुझे मंजूर है I पर एक बार मैं अपनी पत्नी से पूछ लूँ I
भगवान से आज्ञा पाकर राजा महल में गया I तो राजा का उतरा हुआ मुंह देख कर पतिव्रता रानी ने राजा से कारण पूछा I राजा ने जब सारा हाल बताया तो रानी के आंखों से आंसू बह निकले I
फिर भी वो अभिमान से राजा से बोली कि आपकी आन पर मैं अपने सैकड़ों पुत्र कुर्बान कर सकती हूं आप साधुओं को आदर पूर्वक अंदर ले आइए I
अर्जुन ने भगवान से पूछा ! माधव ! यह क्या माजरा है? आपने यह क्या मांग लिया कृष्ण बोले अर्जुन तुम देखते जाओ और चुप रहो ! राजा तीनों को अंदर ले आये I और भोजन की तैयारी शुरू की, भगवान को छप्पन भोग परोसा गया I पर अर्जुन के गले से नहीं उतर रहा था I राजा ने स्वयं जाकर पुत्र को तैयार किया I
पुत्र भी तीन साल का था नाम था रतन कुँवर ! वो भी माता पिता का भक्त था I उसने भी हंसते-हंसते अपने प्राण दे दिए I
अर्जुन के अभिमान को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने कैसे ली राजा मोरध्वज की परीक्षा
परंतु उफ तक ना की I राजा रानी ने अपने हाथों से आरी लेकर पुत्र के दो टुकड़े कर दिए और सिंह को परोस दिया I भगवान ने भोजन ग्रहण किया I ऋषि मुनियों द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र
पर जब रानी ने पुत्र का आधा शरीर देखा तो वो आंसू रोक ना पाई I भगवान इस बात पर गुस्सा हो गये I कि लड़के का एक फाड़ कैसे बच गया I भगवान रुष्ट होकर जाने लगे, तो राजा रानी रुकने की मिन्नतें करने लगे I
अर्जुन को एहसास हो गया था I कि भगवान मेरे ही गर्व को तोड़ने के लिए यह सब कर रहे हैं I वो स्वयं भगवान के पैरों में गिरकर विनती करने लगा I
और कहने लगा कि आपने मेरे झूठे मान को तोड़ दिया है I राजा रानी के बेटे को उनके ही हाथों से मरवा दिया I
और अब रूठ के जा रहे हो I यह उचित नहीं है I प्रभु ! मुझे माफ करो और भक्त का कल्याण करो I तब केशव ने अर्जुन का घमंड टूटा जान रानी से कहा ! कि वह अपने पुत्र को आवाज दे I
रानी ने सोचा पुत्र तो मर चुका है अब इसका क्या मतलब ! पर साधुओं की आज्ञा मानकर उसने पुत्र रतन कुँवर को आवाज़ लगाई I कुछ ही क्षणों में चमत्कार हो गया I मृत रतन कुँवर जिसका शरीर शेर ने खा लिया था I वह हंसते हुए आकर अपनी मां से लिपट गया I
भगवान ने मोरध्वज और रानी को अपना विराट स्वरूप का दर्शन कराया I पूरे दरबार में वासुदेव श्री कृष्ण की जय जयकार गूंजने लगी I भगवान के दर्शन पाकर अपनी भक्ति सार्थक जान मोरध्वज की आंखें भर आईं I 33 कोटि देवी-देवता है या 33 करोड़ I
और वो बुरी तरह बिलखने लगे I भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो राजा रानी ने कहा भगवान एक ही वर दो !
कि अपने भक्तों की ऐसी कठिन परीक्षा ना लें ! जैसे आपने हमारी परीक्षा ली है I तथास्तु कहकर भगवान ने उनको आशीर्वाद दिया और पूरे परिवार को मोक्ष दिया I
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी