अश्वमेध यज्ञ कब और क्यों किया जाता है?

अश्वमेध यज्ञ कब और क्यों किया जाता है?

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अश्वमेध यज्ञ कब और क्यों किया जाता है?

अश्वमेध यज्ञ कब और क्यों किया जाता है?

: अश्वमेध यज्ञ भारतवर्ष का एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्राचीन यज्ञ है। इसे चक्रवर्ती सम्राट द्वारा सम्पन्न कराया जाता था। अन्य महत्वपूर्ण राजाओं को भी इस यज्ञ को सम्पन्न करने का अधिकार था। जो व्यक्ति सम्पूर्ण समृद्धि, विजय और सभी की प्राप्ति चाहता है, वह इसका यज्ञ का आयोजन कर सकता है। अतः, सार्वभौम सम्राट के अलावा मूर्धाभिषिक्त राजा भी अश्वमेध यज्ञ कर सकता था।

अश्वमेध यज्ञ की उत्पत्ति अत्यंत प्राचीन मानी जाती है। ऋग्वेद के दो सूक्त में इस यज्ञ में प्रयुक्त अश्व और हवन का विस्तृत वर्णन है। इसके अतिरिक्त, शतपथ ब्राह्मण में भी इस यज्ञ का विवरण मिलता है। श्रौत सूत्रों, वाल्मीकीय रामायण (1.13), महाभारत के अश्वमेधिक पर्व और जैमिनीय अश्वमेध में भी इसका उल्लेख किया गया है। हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है।

अश्वमेधयज्ञ फाल्गुन शुक्ल अष्टमी या नवमी से, या ज्येष्ठ (आषाढ़) माह की शुक्ल अष्टमी से की जाती थी। आपस्तम्ब ने इसके लिए चैत्र पूर्णिमा को उचित तिथि या दिन माना है

यजमान, जो मूर्धाभिषिक्त राजा होता था, मंडप में प्रवेश करता था। उसके पीछे उसकी चार पत्नियाँ, सज-धज कर और सुनहला निष्क पहनकर, कई दासियों और राजपुत्रियों के साथ आती थीं। पत्नियाँ निम्नलिखित थीं:

  1. महिषी (राजा की अभिषिक्त पटरानी)
  2. वावाता (राजा की प्रिय पत्नी)
  3. परिवृक्त्री (परित्यक्ता भार्या)
  4. पालागली (हीन जाति की रानी)

घोड़े का चयन और देखरेख:

यज्ञ के लिए एक अत्यंत सुंदर और सुडौल घोड़ा चुना जाता था, जिसकी शरीर की रंगत श्याम होती थी। इस घोड़े को तालाब के जल में स्नान कराकर पवित्र किया जाता था। इसके बाद, घोड़े को सौ राजकुमारों की देखरेख में एक साल तक स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए छोड़ दिया जाता था। अश्व की अनुपस्थिति के दौरान, प्रतिदिन सवितृदेव के निमित्त तीन इष्टियाँ दी जाती थीं और ब्राह्मण तथा क्षत्रिय जाति के वीणावादक राजा की स्तुति में गीत गाते थे। साथ ही, पारिप्लव (विशिष्ट आख्यान) का पाठ भी किया जाता था। आरती का क्या महत्व है और कितने प्रकार की होती है?

अश्वमेध यज्ञ सम्पन्नता:

एक साल बाद, जब घोड़ा वापस लौटता है, तब राजा यज्ञ सम्पन्न करता है। अश्वमेध यज्ञ तीन सुत्या (समारोह के दिन) में सम्पन्न होता है। इसमें बारह दीक्षाएँ, बारह उपसद और तीन सुत्याएँ होती हैं। 21 अरत्नि ऊँचे 21 यूप प्रस्तुत किए जाते हैं। दूसरे सुत्यादिवस को विशेष महत्व होता है। इस दिन अश्वमेधीय घोड़े को अन्य तीन अश्वों के साथ रथ में जोतकर तालाब में स्नान कराया जाता है। कुलदेवी एवं कुलदेवता का क्या महत्व होता है ?

ब्रह्मोद्य में गूढ़ पहेलियाँ पूछी जाती हैं और उनके उत्तर दिए जाते हैं। इसके बाद, राजा व्याघ्रचर्म या सिंहचर्म पर बैठता है। तीसरे दिन उपांग याग होते हैं और ऋत्विजों को भूरि दक्षिणा दी जाती है। ब्रह्मा, अध्वर्यु और उद्गाता को विभिन्न दिशाओं में विजित देशों की सम्पत्ति दक्षिणा के रूप में दी जाती है। इस प्रकार, यज्ञ सम्पन्न माना जाता है।

अश्वमेध यज्ञ का महत्व:

अश्वमेध यज्ञ एक प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक महत्व का यज्ञ है। ऐतरेय ब्राह्मण में इसे प्राचीन चक्रवर्ती नरेशों के संदर्भ में महत्वपूर्ण बताया गया है। वैदिक काल में, राजाओं ने इस यज्ञ का आयोजन अत्यधिक श्रद्धा और उत्साह के साथ किया। राजा दशरथ और युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ प्राचीन काल में सम्पन्न हुए थे। द्वितीय शती ई.पू. में शुंगवंशी नरेश पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध यज्ञ किया, जिसमें महाभाष्यकार पतञ्जलि भी शामिल थे। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने चौथी सदी ई. में अश्वमेध यज्ञ किया, जिसका प्रमाण उनकी मुद्राओं से मिलता है।

दक्षिण भारत के सतवाहन, चालुक्य, और यादव नरेशों ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने इस परंपरा को अंतिम रूप से निभाया। उनके अश्वमेध यज्ञ का वर्णन श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि ने “ईश्वरविलास महाकाव्य” में और महानंद पाठक ने “अश्वमेधपद्धति” में किया है। युधिष्ठिर के अश्वमेध का विस्तृत वर्णन “जैमिनि अश्वमेध” में मिलता है। खाना भोजन और आहार में क्या अंतर है।

अश्वमेध यज्ञ से सम्बंधित प्रश्न :

अश्वमेध यज्ञ का मतलब क्या होता है?

-अश्वमेध यज्ञ एक बड़ा यज्ञ है। इसमें घोड़े के मस्तक पर जयपत्र बाँधकर उसे भूमं- डल में घूमने के लिये छोड़ देते थे । उसकी रक्षा के निमित्त किसी वीर पुरुष को नियुक्त कर देते थे जो सेना लेकर उसके पीछे पीछे चलता था ।

अश्वमेध यज्ञ में किसकी बलि दी जाती थी?

-अश्वमेध वैदिक धर्म की श्रौत परंपरा में घोड़े की बलि देने की रस्म थी। इसका इस्तेमाल प्राचीन भारतीय राजाओं द्वारा अपनी शाही संप्रभुता साबित करने के लिए किया जाता था: एक घोड़े को राजा के योद्धाओं के साथ एक साल तक भटकने के लिए छोड़ दिया जाता था।

राजाओं ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन क्यों किया?

-अश्वमेध यज्ञ एक ऐसा यज्ञ था जिसमें राजा खुद को क्षत्रपति घोषित करता है। इस यज्ञ के माध्यम से राजा अपने आस-पास के राज्यों में अपना घोड़ा छोड़ता है और ऐसा माना जाता है कि जिस राज्य से घोड़ा गुजरता है, उसने क्षेत्रपति की अधीनता स्वीकार कर ली है।

पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ क्यों किया?

-वे कुरुक्षेत्र में हुई हत्याओं का प्रायश्चित करना चाहते थे, और ऋषियों ने उन्हें अश्वमेध करने की सलाह दी। राजसूय की तरह, यह यज्ञ उन्हें पृथ्वी के सम्राट के रूप में अपनी स्थिति को फिर से स्थापित करने का अवसर देगा। उन्हें देश के सभी हिस्सों में बलि का घोड़ा भेजना होगा।

अश्वमेध यज्ञ कितने समय में समाप्त होता है?

-मंत्रोच्चार को विभिन्न पात्रों, बूढ़ों, युवकों, सपेरों, लुटेरों, मछुआरों, शिकारियों और ऋषियों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था। जब वर्ष समाप्त हो जाता और घोड़ा वापस आ जाता, तो राजा की दीक्षा के साथ यज्ञ शुरू हो जाता। वास्तविक यज्ञ तीन दिनों तक चलता, जिसमें अन्य पशु यज्ञ होते थे और सोमरस भी निचोड़ा जाता।

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