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बाली को कैसे मिला श्री राम से अपनी मृत्यु का बदला

बाली को कैसे मिला श्री राम से अपनी मृत्यु का बदला

जब प्रभु श्रीराम ने श्रीकृष्ण अवतार लिया तब इसी बाली ने जरा नाम के बहेलिया के रूप में जन्म लेकर अपना बदला लिया।

बाली कौन था-

वानर राज बाली किष्किन्धा का राजा और सुग्रीव का बड़ा भाई था। बाली का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ संपन्न हुआ था। तारा एक अप्सरा थी। बाली के पिता का नाम वानरश्रेष्ठ ऋक्ष था। बाली के धर्म पिता देवराज इन्द्र थे।

बाली का एक पु‍त्र था, जिसका नाम अंगद था। बालि गदा और मल्लयुद्ध में वहुत पारांगत था। उसमें उड़ने की शक्ति भी थी और धरती पर उसे सबसे शक्तिशाली माना जाता था।

ब्रह्मा जी द्वारा बाली को वरदान –

श्री रामायण के अनुसार बाली को उसके धर्म पिता इन्द्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इस हार की शक्ति अजीब थी। इस हार को ब्रह्मा जी ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था। कि इसको पहनकर बाली जब भी रणभूमि में अपने दुश्मन का सामना करेगा तो उसके दुश्मन की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बालि को प्राप्त हो जाएगी। इस कारण से बालि लगभग अजेय था। Please Read Also-सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण

बाली ने अपनी शक्ति के बल पर दुदुंभी, मायावी और रावण आदि राक्षसों को परास्त कर दिया था। बाली ने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को हड़पकर उसको बलपूर्वक अपने राज्य से बाहर निकाल दिया था। हनुमानजी ने सुग्रीव को प्रभु श्रीराम से मिलाया।

सुग्रीव ने अपनी पीड़ा बताई और फिर प्रभु श्रीराम ने बाली को छुपकर तब तीर से वार कर किया, जब बाली और सुग्रीव में मल्लयुद्ध चल रहा था। चूंकि प्रभु श्रीराम ने कोई अपराध नहीं किया था, लेकिन फिर भी बाली के मन में यह दंश था कि उन्होंने मुझे छुपकर मारा।

जरा बहेलिया (बाली) द्वारा श्रीकृष्ण पर तीर से वार करना-

जब प्रभु श्रीराम ने श्रीकृष्ण अवतार लिया तब इसी बाली ने जरा नामक बहेलिया के रूप में जन्म लेकर प्रभाव क्षेत्र में विषयुक्त तीर से श्रीकृष्ण को हिरण समझकर तब मारा जब वे एक पेड़ के नीचे योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे

श्रीकृष्‍ण ने द्वारिका में अपना निवास स्थान बनाया और सोमनाथ के पास स्थित प्रभास क्षेत्र में उन्होंने शरीर छोड़ दिया। Please Read Also-वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है

भगवान श्रीकृष्ण इसी प्रभास क्षेत्र में अपने कुल का नाश देखकर बहुत व्यथित हो गए थे। वे तभी से वहीं रहने लगे थे। एक दिन वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तभी किसी बहेलिये ने उनको हिरण समझकर तीर मार दिया। यह तीर उनके पैरों में जाकर लगा और तभी उन्होंने देह त्यागने का निर्णय ले लिया।

कर्म का लेख स्वयं भगवान् भी नही बदल सकते हैं, कर्म का लेख तो सभी को भोगना पड़ता हैं:

हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु ने त्रेता में श्री राम के रूप में अवतार लेकर बाली को छुपकर तीर मारा था। कृष्णावतार के समय भगवान ने उसी बाली को जरा नामक बहेलिया बनाया और अपने लिए वैसी ही मृत्यु चुनी, जैसी बाली को दी थी।

प्रभास क्षेत्र काठियावाड़ के समुद्र तट पर स्थित बीराबल बंदरगाह की वर्तमान बस्ती का बहुत प्राचीन नाम है। यह एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। महाभारत के अनुसार यह सरस्वती-समुद्र संगम पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ था।

समुद्रं पश्चिमं गत्वा सरस्वत्यब्धि संगमम्।

यह विशिष्ट स्थल या देहोत्सर्ग तीर्थ नगर के पूर्व में हिरण्या, सरस्वती तथा कपिला के संगम पर बताया जाता है। इसे प्राचीन त्रिवेणी भी कहते हैं। इसे भालका तीर्थ भी कहते हैं। Please Read Also-एक भक्त का राधारानी के प्रति प्रेम-भाव

लगभग पांच वर्ष की असहनीय पीड़ा के बाद उस भील जरा को अहसास हो गया कि उसने किसी साधारण आदमी को नहीं मारा बल्कि मानव की देह धारण करके पृथ्वी पर आए साक्षात भगवान की देह अपने तीर से छीन ली है।

वापस उसी स्थान पर जाकर ‘गोविंद गोविंद’ कहते हुए उस बहेलिए ने समुद्र में समाकर अपने प्राण त्याग दिए। जिस स्थान पर जरा बहेलिए ने श्रीकृष्ण को तीर मारा था। उसे आज ‘भालका’ तीर्थ कहा जाता है।

वहां बने मंदिर में वृक्ष के नीचे लेटे हुए कृष्ण की आदमकद प्रतिमा है। उसके समीप ही हाथ जोड़े जरा बहेलिया खड़ा हुआ है।


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