Beti Ghar Kab Aaogi (बेटी घर कब आओगी)-अभी तो गरमियों की छुट्टियाँ लगने में दो-ढाई महीने हैं। अभी से कैसे बताऊँ कब आऊँगी? गरमियों में स्नेहा की एक्सटरा क्लासेस भी तो हैं। और फिर उसकी म्यूज़िक क्लासेस भी तो हैं। अपने पापा का घर आने का आग्रह सुन अवंतिका ने एक ही सांस में उन्हें इतना कुछ बता दिया।
पापा भी बेटी की बात सुन और कुछ ना बोले। बस इतना ही कहा – समझ सकता हूँ और फ़ोन माँ को पकड़ा दिया। माँ ने भी कहा-पता नहीं क्या हो गया है। कल से तुझे बहुत याद कर रहें हैं। कल सुबह से ही शुरू हैं की कब गर्मियों की छुट्टियाँ लगेंगी कब अवंतू घर आयेगी? यह भी पढ़ें –ये प्रार्थना दिल की बेकार नहीं हिंदी लिरिक्स
बोलते-बोलते माँ का तो गला ही भर आया। तीन साल बीत चुके थे अवंतिका को अपने घर गये हुये। हर साल कुछ ना कुछ ऐसा निकल ही आता था की वह दस दिन के लिये भी अपने घर ना जा सकी थी। हाँ, माँ और पापा ज़रूर मिल आये थे उसके ससुराल जा कर उससे पर वह ना आ पायी थी अपने घर।
माँ ने थोड़ा ज़ोर दे कर कहा-हो सके तो इस बार घर आजा। पापा को बहुत अच्छा लगेगा। इस पर अवंतिका ने माँ से कहा-माँ, तुम तो समझती हो ना। आख़िर तुम भी तो कभी ना कभी इस दुविधा में पड़ी होगी। माँ ने भी लम्बी साँस छोड़ते हुये हामी भर दी। यह भी पढ़ें –हर सांस में हो सुमिरन तेरा यूँ बीत जाए जीवन मेरा हिंदी भजन
अवंतिका ने कहा-अच्छा चलो अब कल बात करतें हैं। स्नेहा के टेनिस क्लास का समय हो गया है। पूरा दिन भागम-भाग में निकल गया और रात को थककर जब वह सोने के लिये अपने कमरे में आई तो सोचा था लेटते ही सो जायेगी पर आज नींद को तो जैसे बैर हो गया था उससे।
बिस्तर पर लेटे लेटे वह मम्मी-पापा से हुयी बातों के बारे में सोचती रही। पूरे दिन की व्यस्तता में समय ही कहाँ था की वह इस बारे में कुछ सोचती भी। वह सोचने लगी कैसे हर बार मम्मी-पापा उसके आने की राह देखतें हैं और उसके किसी भी कारणवश ना जा पाने की वजह समझ कर चुप रह जातें हैं।
काश ! वह भी कहते नहीं, हम कुछ नहीं समझते। हमें कुछ नहीं सुनना तुमको घर आना ही होगा। काश ! अपनी बेटी पर थोड़ा हक़ वह भी जता पाते। क्यूँ हर बार वह सब समझ जातें हैं। क्यूँ वह कभी भी ज़िद्द नहीं करते। इन्हीं सब बातों के बीच कब उसकी नींद लगी पता ही नहीं चला।
सुबह छ: बजे नींद खुली। उसने अपने नियमित काम फुरती से निबटाये। स्नेहा को स्कूल भेजा और मयंक को ऑफ़िस। फिर रोज़ की तरह एक हाथ में नाश्ते की प्लेट और दूसरे हाथ में माँ पापा से बात करने के लिये फ़ोन लिया। यह भी पढ़ें –मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है
वह अपने कमरे में आकर पलंग पर बैठी ही थी की मोबाइल पर अपने पापा के मैसेज पर उसकी नज़र पड़ी। मैसेज रात साढ़े बारह बजे का था। मैसेज खोला तो उसमें लिखा था। तेरी हर ज़िम्मेदारी का एहसास है मुझे बेटी पर इस बार अपने बूढ़े पिता की जिद्द ही समझ ले इसे। इस बार तेरी एक ना सुनुँगा। इस बार तुझे घर आना ही होगा।
अवंतिका की आँखें नम हो गयीं। वह फिर सोचने लगी की कैसे बिना कहे ही आज भी उसके पापा उसकी हर बात समझ जातें हैं। उसने अपने पापा को मैसेज किया !पापा, काश ! हर बार आप ऐसे ही जिद्द करते और मैं आपकी जिद्द के आगे हार मान कर अपने घर आ जाती। यह भी पढ़ें –हर सांस में हो सुमिरन तेरा यूँ बीत जाए जीवन मेरा हिंदी भजन
काश ! हर बार आप इतना ही हक़ जताते और हर बार मैं लौटती अपने आँगन में जहाँ मेरा बचपन फिर से लौट आता है। उसका फोन बज उठा। पापा का ही फ़ोन था। बिना एक पल गँवाये उसने फ़ोन उठाया। दोनों के गले भरे हुये थे। पापा ने बस प्यार से इतना ही कहा-बेटी इस बार तुझे लेने मैं ख़ुद आँऊगा।
शायद आपकी और मेरी कहानी भी अवंतिका की कहानी से कुछ हद तक मेल खाती है। आइये इस बार अपने बचपन का कुछ हिस्सा मम्मी पापा को लौटा दें। आइये इस बार गरमियों की छुट्टियाँ अपने मायके में ही बिता दें।
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