Best spiritual Hindi Quotes, Suvichar and Anmol Vachan
स्वामी श्री हरिदास जी कहते हैं यदि प्रेम करना है तो बिहारीजी से ही करो, क्यूंकि केवल वह ही हैं जो प्रेम निभाना जानते हैं |
स्वामी श्री हरिदास जी कहते हैं यदि प्रेम करना है तो बिहारीजी से ही करो, क्यूंकि केवल वह ही हैं जो प्रेम निभाना जानते हैं |
हे राधे जु ! मुझ अधम पर ऐसी कृपा करो की इन वृंदावन की कुंज गलियों में
मै खो जाऊ, बार-बार यदि जन्म लू तो इन कुंज गलियों में ही मेरा बसेरा हो।
कर्म आलस्य से अच्छा है। परंतु कर्म का आधार यदि केवल कर्म है तो वह बन्धन का कारण है। केवल यथार्थ कर्म मुक्ति देनेवाला है। कर्म का आधार भगवान् को होना चाहिये। कर्मका आधार भगवान् तभी हो सकते हैं जब सब समय भगवान् का स्मरण होता रहे।
जब तक पद, प्रतिष्ठा, पैसा, परिवार पांडित्य और पुरषार्थ का अभिमान है। तब तक प्यारे (हरि) के पास पहुंचना अत्यंत ही कठिन है। हरि से प्रेम करो।
साधक संत को चाहिए की वह अपने आप को संकुचित (सिकोड़) कर ले। संसार में ज्यादा फैलाव साधक के लिए अच्छा नही है। ज्यादा फैलाव भक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
ऐ कान्हा, तेरी याद तो रोज चली आती हैं, कभी ऐसा नहीं हो सकता, कि तुम ही चले आओ।
तुममें कितने ही दुर्विचार और दुराचार क्यों न हों, भगवान उनको नहीं देखते। भगवान देखेंगे तुम्हारे वर्तमान ह्रदय को, भगवान सुनेगें तुम्हारी करूण पुकार को।
चाहे कोई बड़े से बड़ा आदमी हो, संत हो, महात्मा हो, पर स्त्री- जाति को चाहिए कि उसका स्पर्श न करे। अपने पति को छोड़कर युवती को किसी भी पुरुष का स्पर्श कभी भी नहीं करना चाहिए।
किसीको छोटा न समझें, किसीका अपमान न करें, किसीका दिल न दुखायें, किसी को कुछ सतावें नहीं, किसीका अहित न करें, कोई प्राणी घृणाका पात्र नहीं है। चाहे वह पापी हो, शत्रु हो, चाहे हमें दुःख देनेवाला हो। अपने राम और कृष्ण को सर्वत्र देखना चाहिये। वर्णाश्रमके अनुसार कर्म करना अच्छा है। परंतु अपने से छोटे अपने नौकर को भी छोटा मानना और उससे घृणा करना बड़ा पाप है।
प्रेम का मूल है अपनापन। जिसमें हमारी प्रियता होगी, उसकी याद अपने आप आएगी। अपनी स्त्री, बेटा, बेटी इसलिए याद आते हैं कि उनमें हमारी प्रियता है।उनको हमने अपना माना है।
यदि भगवान् में प्रेम चाहते हो तो उनको अपना मान लो। फिर उनकी याद स्वतः आयेगी, करनी नहीं पड़ेगी। आप जिसको पसंद करोगे, उसमें मन स्वतः लगेगा। भगवान् मेरे हैं इसमें जो शक्ति है, वह त्याग एवं तपस्या में नहीं है।
यदि तुम्हें मानव-जीवन सफल करना है। सच्ची सुख शांति को प्राप्त करना है तो। भोगों की ओर से मुँह मोड़ कर अपने जीवन का मुख भगवान् की ओर कर दो।
जीवन मे केवल दो ही वास्तविक धन है।
समय और साँसें दोनों ही एक दम निश्चित और सीमित है।
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