भद्रा कौन है और क्यों इसे अशुभ माना जाता है?

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भद्रा कौन है और क्यों इसे अशुभ माना जाता है?

मांगलिक एवं शुभ कार्यों में भद्रा का त्याग क्यों किया जाता है ? भद्रा में कौन-कौन से कार्य करने चाहिए और कौन-कौन से कार्य नहीं ? भद्राकाल के अशुभ प्रभाव को दूर करने का मन्त्र और बारह नाम।

हमारी पौराणिक कथानुसार दैत्यों से पराजित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव शंकर के शरीर से गर्दभ (गधे) के समान मुखवाली, कृशोदरी (पतले पेट वाली), पूंछ वाली, मृगेन्द्र (हिरन) के समान गर्दन वाली, सप्तभुजी, शव का वाहन करने वाली और दैत्यों का विनाश करने वाली भद्रा उत्पन्न हुई।

हम जब भी किसी तीज-त्यौहार जैसे होलिका दहन हो या दीवाली-पूजन या फिर रक्षाबंधन पर भाइयों को टीका करना हो, हम भद्रा पर विचार करते हैं और भद्रा की समाप्ति पर ही वह मांगलिक कार्य करते हैं और त्यौहार मनाते हैं। आखिरकार यह भद्रा कौन है और क्यों भद्रा में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया हैं ? यह भी पढें : राम कहानी सुनो रे राम कहानी हिंदी लिरिक्स

भद्रा कौन है एवं कैसी है ?

भद्रा की उत्पत्ति की कथा : भद्रा भगवान सूर्य और छाया की पुत्री हैं और शनिदेव की सगी बहिन हैं। भद्रा का रंग काला, रूप भयंकर, लम्बे-लम्बे काले केश व दांत विकराल हैं। जन्म लेते ही वह संसार को ग्रसने (ग्रास करने अर्थात खाने एवं समाप्त करने) दौड़ी, यज्ञों में विघ्न पहुंचाने लगी, उत्सवों और शुभ व मंगल-कार्यों में उपद्रव करने लगी। यह भी पढें : तुम्हारी शरण मिल गई सांवरे हिंदी भजन

उसके भयंकर रूप और उपद्रवी स्वभाव को देख कर कोई भी उससे विवाह करने को तैयार नहीं हुआ। सूर्य देव ने अपनी पुत्री भद्रा के लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो भद्रा ने तोरण, मण्डप आदि सभी उखाड़ कर आयोजन को नष्ट कर डाला और सभी लोगों को कष्ट देने लगी। तब सूर्य नारायण ने भद्रा को समझाने के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। यह भी पढें : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग का संक्षिप्त ज्ञान

प्रजा को दु:खी देखकर ब्रह्मा जी ने भद्रा को समझाते हुए कहा – तुम बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि आदि चर करणों के अंत में सातवें करण के रूप में स्थित रहो। अर्थात जो व्यक्ति तुम्हारे समय में यात्रा, गृह-प्रवेश, खेती, व्यापार, उद्योग और अन्य माँगलिक कार्य करे, तो तुम उसमें विघ्न डालो।

जो तुम्हारा आदर न करे, निरादर करे उसका कार्य ध्वस्त कर दो। बाद में भगवान सूर्य नारायण ने अपनी पुत्री भद्रा का विवाह विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप के साथ कर दिया। यह भी पढें : भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया?

(करण पंचाग का पांचवा अंग है। प्रत्येक तिथि को दो भागों में बांटने के कारण इसे ‘करण’ कहते हैं । बव, बालव आदि सात करणों की एक महीने में बार-बार आवृत्ति होती है इसलिए ये चर करण कहलाते हैं। चर करण में सातवें करण विष्टि का नाम भद्रा है।)

एक अन्य पौराणिक कथानुसार दैत्यों से पराजित सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव शंकर के शरीर से गर्दभ (गधे) के समान मुख वाली, कृशोदरी (पतले पेट वाली), पूंछवाली, मृगेन्द्र (सिंह) के समान गर्दन वाली, सप्तभुजा वाली, शव का वाहन करने वाली और दैत्यों का विनाश करने वाली भद्रा उत्पन्न हुई।

शुभ एवं मांगलिक कार्यों में भद्रा का त्याग क्यों किया जाता है ?

तब भद्रा ने ब्रह्मा जी का आदेश मान लिया और वह काल के एक अंश के रूप में आज तक विद्यमान है। भद्रा प्राय: प्रत्येक द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, अष्टमी और द्वादशी-त्रयोदशी को लगी रहती है। भद्रा हमारे शरीर में पांच घड़ी मुख में, दो घड़ी कण्ठ में, ग्यारह घड़ी हृदय में, चार घड़ी नाभि में, पांच घड़ी कटि में और तीन घड़ी पुच्छ में स्थित रहती है।

जब भद्रा मुख में स्थित होती है तब कार्य का नाश, कण्ठ में होने पर धन का नाश, हृदय में प्राण का नाश, नाभि में होने पर कलह, कमर में होने पर अर्थभ्रंश होता है। किन्तु पुच्छ में होने पर भद्रा विजय और कार्यसिद्धि कराती है। इस प्रकार भद्रा का लगभग १२ घण्टे में से केवल १ घण्टा १२ मिनट का अंतिम समय शुभकारी होता है।

इसलिए मांगलिक कार्यों में भद्रा का त्याग करना चाहिए। भगवान सूर्य नारायण की पुत्री और ब्रह्मा जी द्वारा उपदेशित होने के कारण भद्रा संसार में पूज्य है। भद्रा की उपेक्षा से मनुष्य को विपरीत परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

रोग और व्याधि दूर करने वाले भद्रा के 12 नाम :

  1. धन्या !
  2. दधिमुखी !
  3. भद्रा !
  4. महामारी !
  5. खराननना !
  6. कालरात्रि !
  7. महारुद्रा !
  8. विष्टि !
  9. कुलपुत्रिका !
  10. भैरवी !
  11. महाकाली !
  12. 12.असुराणां क्षयंकरी !

भद्रा के इन १२ (बारह) नामों का जो प्रात: उठकर स्मरण करता है, उसे किसी भी रोग का भय नहीं रहता, सभी ग्रह उसके अनुकूल हो जाते हैं और उसके मंगल कार्यों में कोई विघ्न नहीं होता है। यह भी पढें : मानो तो मैं गंगा माँ हूँ ना मानो तो भजन लिरिक्स

भद्रा में कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए ?

भद्रा में मंगल कार्य जैसे – यात्रा, रक्षाबंधन, विवाह, दाहकर्म आदि नहीं करने चाहिए। भद्रा में श्रावणी (सावन की पूर्णिमा को किया जाने वाला कर्म) और फाल्गुनी (होलिका-दहन) का भी निषेध है क्योंकि श्रावणी-कर्म करने से राजा का नाश होता है और होलिका-दहन से अग्नि का भय होता है। यह भी पढें : श्री कृष्ण शरणम मम भजन हिंदी लिरिक्स

भद्रा में कोई शुभ कार्य हो गया हो तो उसका दुष्प्रभाव दूर करने के लिए भद्रा का प्रार्थना का मन्त्र इस प्रकार से है :-

छायासूर्यसुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनि।
पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्रप्रदा भव।।
स्रोत-भविष्यपुराण

भद्रा में कौन-से कार्य करने चाहिए ?

घोड़ा, भैंसा, ऊंट आदि को खरीदना, वध, बन्धन, विष, अग्नि, अस्त्र, छेदन व उच्चाटनादि कार्य भद्रा में करने से सिद्ध होते हैं। यह भी पढें : पत्थर की राधा प्यारी पत्थर के कृष्ण मुरारी लिरिक्स

भद्रा का फल :

सोमवार और शुक्रवार की भद्रा कल्याणकारी, शनिवार की वृश्चिकी गुरुवार की पुण्यवती और शेष वारों की भद्रिका होती है।
अत: सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार की भद्रा का दोष नहीं होता है।


नगरी हो अयोध्या सी रघुकुल सा घराना हो भजन

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