भगवान नाम जप का मानव शरीर पर क्या प्रभाव होता है। आइए ! जानते हैं कि भगवन्नाम के निरंतर जप से मानव शरीर पर कितना अद्भुत प्रभाव होता है, भक्तों के जीवन की कथाएं यही दर्शाती हैं।
भगवन्नाम शब्द में बड़ी प्रबल शक्ति होती है । निरन्तर भगवन्नाम जप से मन की शुद्धि होती है, विवेक भी जाग्रत होता है। हम अंदर से एक गुप्त दैवीय शक्ति का अनुभव करते हैं। हम मानो अपने आराध्य से जुड़ रहे हैं। यहीं से आशा, साहस, उत्साह और सफलता का आध्यात्मिक प्रवाह हमारे अंदर प्रवाहित होने लगता है। ये भी पढें :
जिसके कारण हमारी व्याकुलताएं, चिन्ताएं, रोग, शोक और दुर्बलताएं नष्ट हो जाती हैं। भगवान नाम का आश्रय लेने से सांसारिक सुख-दु:ख व मान-अपमान का असर मन पर नहीं होता है। हमें यही आध्यात्मिक उन्नति धीरे-धीरे स्वास्थ्य, सुख, शान्ति और संतुलन की ओर ले जाती है। ये भी पढें : द्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है
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भगवान नाम जप का मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव :
भगवन्नाम का निरन्तर नाम-जप करने से भी मनुष्य का शरीर व मन कभी श्रान्त नहीं होते, अवसाद, चिन्ता उनसे कोसों दूर रहती है। हमारा मन सदैव प्रफुल्लित रहता है, एवं ललाट एक अद्वितीय तेज से चमकता रहता है। आवाज में गाम्भीर्य और मधुरता आ जाती है। भगवान (इष्ट देव) के दिव्य-गुण उनके जीवन में प्रवेश करने लगते हैं।
भगवन नाम का जप जितना अधिक किया जायेगा उतना ही अधिक शरीर के परमाणु (cells) मन्त्राकार हो जाते हैं। भक्तों का जीवन-चरित्र इस बात का वर्णन करके सिद्ध किया जा सकता है। ये भी पढें : श्री भगवत रसिक देव जी द्वारा श्री किशोरीजी का वर्णन
भगवान विट्ठल के भक्त चोखामेला निम्न जाति के होने के कारण मन्दिर के अंदर नहीं जाते थे, बाहर से ही दर्शन करते थे। उनकी भक्ति से अभिभूत होकर भगवान को जब उन्हें देखने की इच्छा होती थी, तब भगवान विट्ठल स्वयं बाहर आ जाते थे।
आज भी पण्ढरपुर में मन्दिर के बाहर उनका स्थान है। एक बार मजदूरों के साथ काम करते आठ-दस मजदूरों के साथ चोखामेला की मृत्यु हो गयी। भगवान पण्ढरीनाथ की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। ये भी पढें : श्री राम और श्री कृष्ण की युद्ध नीति में क्या अंतर था
भगवान नाम से संत नामदेव जी को प्रेरणा :
भक्त चोखामेला की हड्डियों को एकत्रित करो। नामदेवजी संशय में पढ़ गये कि इतनी सारी हड्डियों में भक्त चोखामेला की हड्डियां कौन सी हैं ? तब भगवान ने उन्हें प्रेरणा दी कि जिस हड्डी से ‘विट्ठल’ ‘विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो उन हड्डियों को एकत्रित कर लेना। नामदेवजी ने जब हड्डियों को कान लगा कर सुना तो चोखामेला की हड्डियों से ‘विट्ठल’ ‘विट्ठल’ की ध्वनि सुनाई पड़ती थी।
भगवान नाम से भक्त जनाबाई को प्रेरणा :
एक बार संत कबीरदास जी जनाबाई का दर्शन करने पण्ढरपुर गये। वहां उन्होंने देखा कि दो स्त्रियां गोबर के उपलों के लिए लड़ रही थीं। कबीर जी वहीं खड़े होकर देखने लगे। उन्होंने एक महिला से पूछा -‘आप कौन हैं ?’ महिला ने उत्तर दिया – मेरा नाम जनाबाई है। ये भी पढें : जब भगवान रात में भक्तों के लिए राशन खरीदने आए
कबीरदासजी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि हम तो परम भक्त जनाबाई का नाम सुनकर उसके दर्शन के लिए आये थे और ये तो गोबर से बने उपलों के लिए झगड़ रही है। उन्होंने जनाबाई से पूछा – आपको अपने उपलों की कोई पहचान है ?
जनाबाई ने उत्तर दिया – जिन उपलों से ‘विट्ठल’ ‘विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो, वे हमारे हैं। कबीरदासजी ने उन उपलों को अपने कान के पास लगा कर देखा तो उन्हें ‘विट्ठल’ की ध्वनि सुनाई पड़ती थी। कबीर जी जनाबाई की भगवन्नाम जप की शक्ति को देखकर दंग रह गये। ये भी पढें : कर्मों का फल तो सभी को भोगना ही पड़ता हैं।
भगवान नाम से ब्रह्मचैतन्य महाराज जी को प्रेरणा :
दक्षिण भारत में एक ब्रह्मचैतन्य महाराज थे। वे सबको ‘राम-नाम’ जपने का उपदेश दिया करते थे। किसी ने उनसे पूछा – आपके और हमारे जप में क्या अंतर है ? उन्होंने कहा – तुम आज रात बारह बजे मेरे पास आना। ब्रह्मचैतन्य महाराज जी रात्रि में बारह बजे भजन के लिए बैठते थे।ये भी पढें : सुन बरसाने वाली गुलाम तेरो बनवारी लिरिक्स
जब वह व्यक्ति ब्रह्मचैतन्य महाराज जी के पास आया तो उन्होंने उससे कहा – तुम मेरे अंगूठे से लेकर मस्तक तक कहीं भी कान लगाकर देखो। जब उस व्यक्ति ने कान लगाकर सुना तो उनके रोम-रोम से ‘श्रीराम-श्रीराम’ की ध्वनि निकल रही थी।
यही है ! भगवान के अखण्ड नाम-जपने की महिमा जो हमें ईश्वरत्व के समीप ले आता है। भगवन्नाम जप का केवल मानव शरीर पर ही प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वनस्पति जगत भी इससे प्रभावित होता है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने जब व्रज-भूमि में प्रवास किया तो उन्होंने अनुभव किया कि व्रज-भूमि में रहने वाले संत-भक्तों के सांनिध्य में वहां के वृक्ष व लताओं से भी ‘राधेश्याम’ की ध्वनि निकलती है –
वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय।
ढार-ढार अरु पात-पात में, राधे-राधे होय ।।
राधा कृष्ण सबै कहत, आक-ढाक अरु कैर ।
तुलसी या व्रजभूमि में कहा सियाराम सों बैर।।
श्रीरामचरित मानस जी में हनुमान जी भगवान श्रीराम को सीताजी का संदेश सुनाते हुए कहते हैं –
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित प्रान जाहिं केहिं बाट ।।
भावार्थ – सीताजी ने कहा है कि उनके प्राण कैद हो गये हैं। आठों पहर आपके ध्यान के किंवाड़ लगे रहते हैं अर्थात् आपका ध्यान कभी छूटता नहीं, आपकी श्यामल-माधुरी मूर्ति कभी मन के नेत्रों से परे होती ही नहीं । यदि कभी किंवाड़ खोले भी जाएं (ध्यान छूट भी जाएं) तो बाहर रात-दिन पहरा लगता है ।
पहरेदार है आपका ‘राम-नाम’। क्षण भर के लिए भी जिह्वा ‘राम-नाम’ से विराम नहीं लेती है। ऐसी स्थिति में आपके वियोग में भी प्राण बाहर कैसे निकलें ?
श्रीचैतन्यमहाप्रभु अपने ‘शिक्षाष्टक’ में कहते हैं – श्रीकृष्ण के नाम और गुणों का कीर्तन चित्तरूपी दर्पण को साफ कर देता है, और आत्मा को शान्ति और आनन्द की धारा में स्नान करा देता है ।
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