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भगवान श्री राम और माता सीता की अद्भुत और अतुलनीय जोड़ी

भगवान श्री राम और माता सीता की अद्भुत और अतुलनीय जोड़ी

भगवान श्री राम और माता सीता की अद्भुत और अतुलनीय जोड़ी : भगवान श्रीराम को जब दशरथ बन जाने की आज्ञा देते हैं I तो वह पिता के आदेश का अनुपालन करते हुए बन जाने को प्रस्तुत हो जाते हैं I और अपने सभी गुरुजनों, परिजनों, मंत्रीपरिषद के लोग, प्रजा जनों से मिलने और अंतिम आज्ञा लेने जाते हैं I

इस क्रम में श्रीराम सबसे पहले अपनी जननी कौशल्या के पास जाते हैं I और माता से अपने वन गमन की बात कहते हैं I मां शोकमग्न हो जाती है I उसी समय अनुज लक्ष्मण भी वहां उपस्थित होते हैं I और दोनों राम से कहते हैं ! वन न जाओ ! लक्ष्मण तो यहां तक कह देते हैं I

कि आप मेरी सहायता से राज्य का शासन बलपूर्वक अपने हाथ में ले लीजिए I शोक में डूबी मां कौशल्या लक्ष्मण की बातों का अनुमोदन करती हैं I और दोनों श्रीराम को उनके धर्म का पालन करने से रोकते हैं I Please Read-Janmashtami 2022 कब है, जानें व्रत विधि एवं महत्त्व,

श्रीराम किसी तरह उन्हें समझा-बुझाकर वहां से निकल जाते हैं I तो पुनः लक्ष्मण उनको कई तरह से समझाने की कोशिश करते हैं I मगर धर्म का पालन करने और कराने हेतु धरती पर अवतरित भगवान उनकी बात नहीं मानते I

श्रीराम बन जाने से पूर्व जिस-जिस के पास भी जाते हैं I सब राम से यही कहते हैं I कि श्रीराम तुम बन न जाओ ! और अयोध्या का शासन अपने हाथ में ले लो I सारी प्रजा सारे गुरुजन सारे मंत्रियों में से कोई भी नहीं था I

जिसने राम जी से यह कहा हो कि तुम अयोध्या के महाराज दशरथ की आज्ञा का अनुपालन करो और पिता की आज्ञा का पालन कर धर्म के रक्षक बनो I बनवास पूर्व श्रीराम उनके धर्म पथ और कर्तव्य पथ से वितरित न करने वालों में एक ही नाम है I और वो नाम है उनकी भार्या ! जानकी का !

जब प्रभु अपनी पत्नी को अपने वन जाने की आज्ञा के बारे में बताते हैं I तो वह एक बार भी उनसे नहीं कहती कि आप पिता और माता की आज्ञा का उल्लंघन कर दो I

और बलपूर्वक शासक बन जाओ, धर्म-मार्ग कर्तव्य पथ की ओर कदम बढ़ा चुके श्री राम को एक बार वो भी अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को नहीं कहती, बल्कि सीधा उनसे कहती हैं I Please Read Also-श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि भजन 

“आर्यपुत्र” पिता, माता, भाई, पुत्र और पुत्रवधू यह सब पुण्य आदि कर्मों का भोग भोगते हुए अपने-अपने भाग्य के अनुसार जीवन निर्वाह करते हैं I हे पुरुषवर ! केवल पत्नी ही अपने पति के भाग्य का अनुसरण करती है I

अतः आप के साथ ही मुझे भी बन में रहने की आज्ञा मिल गई है I हे रघुनंदन ! यदि आप आज ही दुर्गम वन की ओर प्रस्थान कर रहे हैं I तो मैं रास्ते के कुश और कांटों को कुचलती हुई आपके आगे-आगे चलूंगी I

उस समय के दो महान साम्राज्य जनकपुर और अयोध्या की बेटी और बहू “सीता” वनवासी वस्त्र धारण कर नंगे पांव पति की सहचारिणी बनकर वनवासिनी हो गई I और दुनिया में स्वयं का नाम श्री राम के साथ अमर कर लिया I

जानकी ने केवल अपने पति के लिए बनवासी जीवन को चुना था I जबकि श्री राम दशरथ और सारे अयोध्यावासी उनसे अयोध्या के राजमहलों में रहने के लिए कह रहे थे I जानकी ने केवल अपने पति के लिए असीम दुख उठाए I

जानकी धर्म रक्षण संकल्प लिए अपने पति के राह की बाधा नहीं बल्कि उनकी मजबूती बनकर उठीं I किसी मजबूरी में राम को सीता का परित्याग करना पड़ा I और जानकी ने न तो अपने पति के लिए और ना ही अपने किसी ससुराल वाले के लिए कभी कटु वचन कहे I

बल्कि अपने पुत्रों लव और कुश और राम का पावन चरित्र ही सुनाया I आज माता जानकी के इस धरती को छोड़े हुए लाखों वर्ष बीत गए I पर पत्नी रूप में नारी की अन्यंत्र मिसाल विश्व “सीता” के अलावा खोज नहीं पाया है I

स्वामी जी कहते थे कि भारत की हर बालिका को सीता जैसे बनने का आशीर्वाद दो हिंदू जाति को सबसे अधिक गौरवशाली वह इसलिए मानते थे क्योंकि इसमें सीता पैदा हुई थीं I

श्री राम को ऐसी पत्नी मिली थी जो अपने पति के मन को पढ़ने वाली उनकी इच्छा के अनुरूप आचरण करने वाली और उनके मन के अनुकूल खुद को ढालने वाली थी I धर्मपालक श्री राम बन जाएंगे ही और उनको उनके इस निश्चय से डिगाया नहीं जा सकता I


यह बात जानकी के सिवा कोई नहीं जानता था I इसलिए जानकी ने उन्हें एक बार भी रुकने को नहीं कहा ! बल्कि स्वयं उनके साथ उनके कष्टों को सहने को प्रस्तुत हो गईं I Please Read-ॐ त्र्यंबकम यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् का हिंदी अनुवाद

इसलिए “राम-सीता की जोड़ी” लाखों साल से दांपत्य के सबसे सुखद जोड़े का पर्याय बनी हुई है I और जानकी भारत की महान नारियों में अग्रगण्य है I जिनके सम्मान की रक्षा के लिए नर से लेकर वानर और बार वनवासी से लेकर जटायु जैसे पक्षी तक बलिदान को प्रस्तुत हो गये थे I

मनुष्य के लिए भगवान का साथ और विश्वास दोनों ही जरूरी है

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