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भक्त रामदास के प्रति भगवान रणछोड़ की कृपा

भक्त रामदास के प्रति भगवान रणछोड़ की कृपा : श्री द्वारिका पुरी के समीप ही डकोर नाम का एक गांव है I वहां श्री रामदास जी नाम के भक्त रहते थे I वे प्रति एकादशी को द्वारका जाकर श्री रणछोड़ जी के मंदिर में जागरण कीर्तन करते थे I जब इनका शरीर वृद्ध हो गया तब भगवन ने आज्ञा दी कि अब एकादशी की रात का जागरण घर पर ही कर लिया करो पर इन्होंने ठाकुर जी की यह बात नहीं मानी I

भक्त का दृढ़ नियम देखकर भाव में भरकर भगवन बोले अब तुम्हारे यहां आने का कष्ट मुझसे सहन नहीं होता है I इसलिए अब मैं ही तुम्हारे घर चलूंगा I अगली एकादशी को गाड़ी ले आना और उसे मंदिर के पीछे खिड़की की ओर खड़ा कर देना मैं खिड़की खोल दूंगा I

तुम मुझे गोद में भरकर उठा ले जाना और गाड़ी में पधराकर शीघ्र चल देना I भक्त रामदास जी ने वैसा ही किया जागरण करने के लिए गाड़ी पर चढ़कर आए सभी लोगों ने समझा कि भक्त जी अब वृद्ध हो गए हैं अतः गाड़ी पर चढ़कर आए हैं I यह भी पढ़े-एक बार श्री राधा नाम लेने की महिमा

एकादशी की रात को जागरण हुआ द्वादशी की आधी रात को वे खिड़की के मार्ग से मंदिर में गए श्री ठाकुर जी के श्री विग्रह पर से सभी आभूषण उतार कर वहीं मंदिर में रख दिए इनको तो भगवान से सच्चा प्रेम था आभूषणों से क्या प्रयोजन ?

श्री रणछोड़ जी को गाड़ी में पधराकर चल दिए प्रातः काल पुजारियों ने देखा तो मंदिर सूना उजड़ा पड़ा है I लोग समझ गए कि श्री रामदास जी गाड़ी लाए थे I वही ले गए पुजारियों ने पीछा किया उन्हें आते देखकर श्री राम दास जी ने कहा कि अब कौन उपाय करना चाहिए I

भगवान ने कहा मुझे बावली में पधरा दो भक्त ने ऐसा ही किया I और सुख पूर्वक गाड़ी हांक दी पुजारियों ने रामदास जी को पकड़ा और खूब मार लगाई I इनके शरीर में बहुत से घाव हो गए भक्त जी को मारपीट कर पुजारी लोगों ने गाड़ी में तथा गाड़ी के चारों ओर भगवान को ढूंढने लगे पर वे कहीं नहीं मिले I

तब सब पछता कर बोले कि इस भक्त को हमने बेकार ही मारा इसी बीच उनमें से एक बोल उठा मैंने इस रामदास को इस ओर से आते देखा और इस ओर यह गया था चलो वहां देखें सभी लोगों ने जाकर बावली में देखा तो भगवान मिल गए बावली का जल खून से लाल हो गया था I

भगवन ने कहा तुम लोगों ने जो मेरे भक्त को मारा है उस चोट को मैंने अपने शरीर पर लिया है इसी से मेरे शरीर से खून बह रहा है अब मैं तुम लोगों के साथ कदापि नहीं जाऊंगा यह कहकर श्री ठाकुर जी ने उन्हें दूसरी मूर्ति एक स्थान में थी सो बता दी I यह भी पढ़े-चिन्तन,श्रीकृष्ण के जीवन की परिस्थितियां

और कहा कि उसे ले जाकर मंदिर में पधराओ, अपनी जीविका के लिए इस मूर्ति के बराबर सोना ले लो और वापस जाओ, पुजारी लोभ बस राजी हो गए और बोले तौल दीजिए रामदास जी के घर पर आकर भगवान ने कहा रामदास तराजू बांधकर तौल दो I

रामदास जी की पत्नी के कान में एक सोने की बाली थी उसी में भगवान को तौल दिया और पुजारियों को दे दिया पुजारी अत्यंत लज्जित होकर अपने घर को चल दिए I श्री रणछोड़ जी रामदास जी के घर में ही बिराजे इस प्रसंग में भक्ति का प्रकट प्रताप कहा गया है I

भक्तों के शरीर पर पड़ी चोट प्रभु ने अपने ऊपर ले लिया I तब उनका नाम “आयुध -क्षत ” हुआ I भगवान ने भक्त से अपनी एकरूपता दिखाने के लिए ही चोट सही अन्यथा उन्हें भला कौन मार सकता है ?

भगवान को ही डाकू की तरह लूट लाने से उस गांव का नाम डाकौर हुआ I भक्त रामदास के वंशज स्वयं को भगवान के डाकू कहलाने में अपना गौरव मानते हैं आज भी श्री रणछोड़ भगवान को पट्टी बांधी जाती है I

II धन्य है भक्त श्री रामदास जी II

भगवान अपने भक्तों की रक्षा कैसे करते हैं I

सामर्थ्य अनुसार धन, ज्ञान,शिक्षा का सदुपयोग

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