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ब्रह्म मुहूर्त में उठने के क्या क्या लाभ होते हैं।

ब्रह्म मुहूर्त में उठने के क्या क्या लाभ होते हैं।

उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान।
गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान॥

अर्थात :- रात बीतने पर मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर ब्रह्मुहूर्त में श्री लक्ष्मणजी उठे। जगत के स्वामी सुजान श्री रामचन्द्र भी गुरु से पहले ही जाग गए।

  • रात्रि के अन्तिम प्रहर का जो तीसरा भाग है, अर्थात सूर्य उदय से 72 मि० पहले के काल को ब्रह्ममुहूर्त कहते हैं। शास्त्रों में यही समय निद्रा त्याग के लिए उचित बताया गया है।

मनुस्मृति के अनुसार :

ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी“।

अर्थात :- प्रातःकाल की निद्रा पुण्यों एवं सत्कर्मों का नाश करने वाली है।

वर्ण कीर्ति यशः लक्ष्मीः स्वास्थ्यमायुश्च विन्दति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छियं वा पंकजं यथा॥

अर्थात :- ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला पुरूष सौन्दर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु आदि वस्तुओं को प्राप्त करता है। उसका शरीर कमल के समान सुन्दर हो जाता है। इस समय किसी भी गृह-नक्षत्र का बुरा असर नहीं होता !

जिस प्रकार गर्मी के दिनों में हमारे शरीर में गर्मी अधिक होगी, उसी प्रकार बाहरी विश्व की हर घटना का असर शरीर के अन्दर होगा। ब्रह्म मुहूर्त हर दिन की शुरुवात है, इस समय प्राण और अपान वायु कार्यरत रहती है, इस समय की तुलना गर्भवास और गर्भ से बाहर आने के बीच के समय से की जाती है।

इसीलिए गर्भ में रहते हमारे शरीर पर शारीरिक या मानसिक जो गलत प्रभाव हुए है। उसे सुधारने का अवसर हमें रोज़ ब्रह्म मुहूर्त में प्राप्त होता है, इसीलिए कई जेनेटिक बीमारियाँ या असाध्य रोग ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान-योग -ध्यान करने से ठीक हो सकती है।

मानव शरीर में रोज ब्रह्म मुहूर्त में सहस्त्रार चक्र से एक बूंद अमृत तत्व निकलता है। इसीलिए ब्रह्म-मुहूर्त को योगतांत्रिक साधनाओ में अत्यधिक महत्वपूर्ण समय माना गया है लेकिन यह अमृत तत्व का शरीर में योग्य संचार नहीं हो पता है।

इस समय साधना करने पर व्यक्ति में इस तत्व का संचार होने लगता है, लेकिन इसका पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए साधक का विशुद्ध चक्र जागृत होना आवश्यक है। इस प्रकार वह अमृत तत्व कुदरती रूप से नाभि में एकत्रित होने लगता है या फिर उसका कई प्रकार से संचार साधक के लिए संभव हो जाता है।

ब्रह्म मुहूर्त समय में दैवीय शक्तियां पृथ्वी लोक पर विचरण करती है। उनकी दैवीय शक्तियां और आशीर्वाद पाने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठना पड़ता है।

ब्रह्म मुहूर्त में किया गया स्नान सर्वश्रेष्ठ फल देता है। स्नान करते समय ब्रह्म परमात्मा का चिंतन करें तो यह ब्रह्म स्नान कहलाता है और देव नदियों का स्मरण करें तो देव स्नान कहलाता है. इस समय स्नान करने से तीनों दोष शांत रहते है और मन और बुद्धि बलवान होते है।

ब्रह्म मुहूर्त में तामसी शक्तियां सुप्तावस्था में होती है। मन और बुद्धि सकारात्मक होती है, ध्यान जल्दी लगता है। इस समय स्मरण शक्ति तीव्र रहती है।

आयुर्वेदिक जीवन शैली तभी सही ढंग से अपनाई जा सकती है, जब हम ब्रह्म-मुहूर्त पर उठें। इसीलिए ब्रह्म मुहूर्त पर उठकर ध्यान योग करना बोझ ना समझें। ये मनुष्य होने का उपहार समझ अपनाए और इस अमृत वेला का पूर्ण लाभ उठायें।

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