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ब्रज के सुप्रसिद्ध वन कौन कौन से हैं।

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ब्रज के सुप्रसिद्ध वन कौन कौन से हैं।


1. मधुवन2. तालवन3. कुमुदवन4. वहुलावन
5. कामवन6. खदिरवन7. वृन्दावन8. भद्रवन
9. भांडीरवन10. बेलवन11. लोहवन12. महावन

इनमें से प्रारम्भ के 7 वन यमुना नदी के पश्चिम भाग में हैं और अन्त के 5 वन उसके पूर्व में हैं। इनका संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है :

  • मधुवन –

यह ब्रज का सर्वाधिक प्राचीन वनखंड है, इसका उल्लेख प्रगैतिहासिक काल से ही मिलता है। राजकुमार ध्रुव ने इसी वन में तपस्या की थी। शत्रुधन ने यहां के अत्याचारी राजा लवणासुर को मारकर इसी वन के एक भाग में मथुरापुरी की स्थापना की थी।

वर्तमान काल में उक्त विशाल वन के स्थान पर एक छोटी सी कदमखंडी शेष रह गई है और प्राचीन मथुरा के स्थान पर महोली नामक ब्रज ग्राम वसा हुआ है, जो कि मथुरा तहसील में पड़ता है।

  • तालवन –

प्राचीन काल में यह ताल के वृक्षों का यह एक बड़ा वन था और इसमें जंगली गधों का बड़ा उपद्रव रहता था। भागवत में वर्णित है, बलराम ने उन गधों का संहार कर उनके उत्पात को शांत किया था।

कालान्तर में उक्त वन उजड़ गया और शताब्दियों के पश्चात् वहां तारसी नामक एक गाँव बस गया, जो इस समय मथुरा तहसील के अंतर्गत है।

  • कुमुदवन –

प्राचीन काल में इस वन में कुमुद पुष्पों की बहुलता थी, जिसके कारण इस वन का नाम कुमुदवन’ पड़ गया था। वर्तमान काल में इसके समीप एक पुरानी कदमखड़ी है, जो इस वन की प्राचीन पुष्प-समृद्धि का स्मरण दिलाती है।

  • बहुलावन –

इस वन का नामकरण यहाँ की एक वहुला गाय के नाम पर हुआ है, इस गाय की कथा पदम पुराण में मिलती है। वर्तमान काल में इस स्थान पर झाड़ियों से घिरी हुई एक कदम खंड़ी है, जो यहां के प्राचीन वन-वैभव की सूचक है। इस वन का अधिकांश भाग कट चुका है और आज-कल यहां बाटी नामक ग्राम बसा हुआ है।

  • कामवन –

यह ब्रज का अत्यन्त प्राचीन और रमणीक वन था, जो पुरातन वृन्दावन का एक भाग था। कालांतर में वहां बस्ती बस गई थी, इस समय यह राजस्थान के भरतपुर जिला की ड़ीग तहसील का एक बड़ा कस्बा है। इसके पथरीले भाग में दो चरण पहाड़िया हैं, जो धार्मिक स्थली मानी जाती हैं।

  • खदिरवन –

यह प्राचीन वन अब समाप्त हो चुका है और इसके स्थान पर अब खाचरा नामक ग्राम बसा हुआ है। यहां पर एक पक्का कुंड और एक मंदिर है।

प्राचीन काल में यह एक विस्तृत वन था, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य और रमणीक वन के लिये विख्यात था। जव मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के आतंक से नंद आदि गोपों को वृद्धवन (महावन) स्थित गोप-बस्ती (गोकुल) में रहना असंभव हो गया। ये भी पढें: राम भक्त ले चला रे राम की निशानी भजन लिरिक्स

तब वे सामुहिक रुप से वहां से हटकर अपने गो-समूह के साथ वृन्दावन में जा कर रहे थे। भागवत् आदि पुराणों से और उनके आधार पर सूरदास आदि ब्रज-भाषा कावियों की रचनाओं से ज्ञात होता है कि उस वृन्दावन में गोवर्धन पहाड़ी थी और उसके निकट ही यमुना प्रवाहित होती थी।

यमुना के तटवर्ती सघन कुंजों और विस्तृत चारागाहों में तथा हरी-भरी गोवर्धन पहाड़ी पर वे अपनी गायें चराया करते थे। वह वृन्दावन पंचयोज अर्थात बीस कोस परधि का तथा ॠषि मुनियों के आश्रमों से युक्त और सघन सुविशाल वन था।

वहाँ गोप समाज के सुरक्षित रुप से निवास करने की तथा उनकी गायों के लिये चारे घास की पर्याप्त सुविधा थी। उस वन में गोपों ने दूर-दूर तक अनेक बस्तियां बसाई थीं। उस काल का वृन्दावन गोव र्धन-राधाकुंड से लेकर नंदगाँव-वरसाना और कामवन तक विस्तृत था। ये भी पढें: सुख के सब साथी दुख में ना कोई हिंदी भजन

संस्कृत साहित्य में प्राचीन वृंदावन के पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं। जिसमें उसके धार्मिक महत्व के साथ ही साथ उसकी प्राकृतिक शोभा का भी वर्णन किया गया है।

महाकवि कालिदास ने उसके वन-वैभव और वहाँ के सुन्दर फूलों से लदे लता-वृक्षों की प्रशंसा की है। उन्होंने वृन्दावन को कुबेर के चैत्ररथ नामक दिव्य उद्यान के सदृश वतलाया है।

वृन्दावन का महत्व सदा से श्रीकृष्ण के प्रमुख लीला-स्थल तथा ब्रज के रमणीक वन और एकान्त तपोभूमि होने के कारण रहा है। मुग़ल शासन के समय प्राचीन काल का वह सुरम्य वृन्दावन उपेक्षित और अरक्षित होकर एक बीहड़ वन हो गया था। ये भी पढें: महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते

पुराणों में वर्णित श्रीकृष्ण-लीला के विविध स्थल उस विशाल वन में कहां थे, इसका ज्ञान बहुत कम था, जब वैष्णव सम्प्रदायों द्वारा राधा-कृष्णोपासना का प्रचार हुआ। तव उनके अनुयायी भक्तों का ध्यान वृन्दावन और उसके लीला स्थलों की महत्व-वृद्धि की ओर गया था।

वे लोग भारत के विविध भागों से वहां आने लगे और शनै: शनै: वहां स्थाई रुप से बसने लग। इस प्रकार वृन्दावन का वह बीहड़ वन्य प्रदेश एक नागरिक बस्ती के रुप में परणित होने लगा। वहाँ अनेक मन्दिर-देवालय वनाये जाने लगे। ये भी पढें: ब्रज के 24 उपवन कौन-कौन से हैं।

वन को साफ कर वहाँ गली-मुहल्लों और भवनों का निर्माण प्रारम्भ हुआ तथा हजारों व्यक्ति वहाँ निवास करने लगे। इससे वृन्दावन का धार्मिक महत्व तो बढ़ गया, किन्तु उसका प्राचीन वन-वैभव लुप्त प्रायः हो गया।

उपर्युक्त सातों वन यमुना नदी की दाहिनी ओर अर्थात पश्चिम दिशा में हैं। निम्न पाँच वन यमुना की बायी ओर अर्थात पूर्व दिशा में स्थित हैं।

  • भद्रवन

ब्रज के प्रसिद्ध वनों में से है। यह श्री कृष्ण और श्री बलराम के गोचारण का स्थान है। श्री बलभद्र के नामानुसार इस वन का नाम भद्रवन पड़ा है। नन्दघाट से दो मील दक्षिण-पूर्व में यमुना के उस पार यह लीलास्थली है। यहाँ भद्रसरोवर और गोचारण दोनों स्थल दर्शनीय हैं।

  • भांडीरवन

भांडीरवन मथुरा माँट मार्ग पर स्थित हैं। भांडीरवन भगवान श्रीकृष्ण की विविध प्रकार की मधुर लीलाओं की स्थली है। भांडीरवन बारह वनों से यह एक प्रमुख वन है। यहाँ भाण्डीरवट, वेणुकूप, रासस्थली, वंशीवट, मल्लक्रीड़ा स्थान, श्रीदासमजी का मन्दिर, श्याम तलैया, छायेरी गाँव और आगियारा गाँव आदि लीला स्थलियाँ दर्शनीय हैं।

जहाँ सब प्रकार के तत्त्वज्ञान तथा ऐश्वर्य-माधुर्यपूर्ण लीला-माधुरियों का सम्पूर्ण रूप से प्रकाश हो, उसे भाण्डीरवन कहते हैं।

  • बेलवन –

ये तीनों वन यमुना की बांयी ओर ब्रज की उत्तरी सीमा से लेकर वर्तमान वृन्दावन के सामने तक थे। वर्तमान काल में उनका अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ पर छोटे-बड़े गाँव बसाये गये हैं, उन गाँवों में टप्पल, खैर, बाजना, नौहझील, सुरीर, भाँट पानी गाँव उल्लेखनीय है।

  • लोहवन –

यह प्राचीन वन वर्तमान मथुरा नगर के सामने यमुना के उस पार था, वर्तमान काल में वहाँ इसी नाम का एक गाँव वसा है।

  • महावन –

प्राचीन काल में यह एक विशाल सघन वन था, जो वर्तमान मथुरा के सामने यमुना के उस पार वाले दुर्वासा आश्रम से लेकर सुदूर दक्षिण तक विस्तृत था। पुराणों में इसका उल्लेख बृहद्वन, महावन, नंदकानन, गोकुल, गौब्रज आदि नामों से हुआ है।

उस वन में नंद आदि गोपों का निवास था, जो अपने परिवार के साथ अपनी गायों को चराते हुए विचरण किया करते थे, उसी वन की एक गोप बस्ती (गोकुल में कंस के भय से बालक कृष्ण को छिपाया गया था। ये भी पढें: सती किसे कहते हैं? सती की सही परिभाषा क्या है?

श्रीकृष्ण के शैशव-काल की पुराण प्रसिद्ध घटनाएँ –
पूतना वध, तृणावर्त वध, शंकट भंजन, यमलार्जुन उद्धार आदि इसी वन के किसी भाग में हुई थीं। वर्तमान काल में इस वन का अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ छोटे-बड़े कई गाँव बस गये हैं। उन गावों में महावन, गोकुल और रावल के नाम से उल्लेखनीय है।



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