हमें अपनी संतानों के नाम भगवान के नाम पर रखना चाहिए। श्रीमद् भागवत के छठवें स्कन्ध के दूसरे अध्याय के 18 वें और 19 वें श्लोक में भगवान नारायण के दूतों ने धर्मराज यमराज के दूतों को भगवान के नाम का महत्त्व बताते हुए कहा कि –
हमें अपनी संतानों के नाम भगवान के नाम पर रखना चाहिए।
अज्ञानादथवा ज्ञानादुत्तमश्लोकनाम यत्।
सङ्कीर्तितमघं पुंसो दहेदेधो यथानल: ll 18 ll
अजामिल को लेने आए हुए यमदूतों से भगवान नारायण के दूतों ने कहा कि – हे यमदूतो ! मरणकाल में अजामिल के मुख से नारायण नाम निकला है, इसलिए इस समय यह पापरहित हो चुका है। निष्पाप जीव को आप नरक नहीं ले जा सकते हैं।यमदूतों ने कहा कि अभी अभी तक तो यह पापी था, नारायण नाम लेते ही एकक्षण में ही ये निष्पाप कैसे हो गया ? जब भगवान रात में भक्तों के लिए राशन खरीदने आए
तब भगवान श्री विष्णु के दूतों ने भगवान के नाम की महिमा और शक्ति बताते हुए कहा कि-
अज्ञानादथवा ज्ञानादुत्तमश्लोकनाम यत्। हे यमदूतो ! कोई भी स्त्री या कोई भी पुरुष, किसी भी जाति का हो या किसी भी देश का हो, किसी भी आयु का हो, वह भगवान के नाम को ज्ञानात् अर्थात सावधान होकर अपनी इच्छा से भक्ति सहित लेता हो, या अज्ञानात् अर्थात अकस्मात बिना इच्छा के ही भगवान का नाम लेता हो, जिस किसी समय भी वह भगवान के नाम का उच्चारण करता है।
उसी समय उस स्त्री पुरुष के सभी प्रकार पाप नष्ट हो जाते हैं, और वह उसी क्षण निष्पाप हो जाता है।
कैसे? वह उसी क्षण निष्पाप हो जाता है।
दहेदेधो यथानल: भगवान का नाम अग्नि है, और मनुष्यों के पाप ईंधन लकड़ी हैं। जैसे कोई भी व्यक्ति किसी भी समय, किसी भी स्थान में प्रज्वलित अग्नि में कोई भी वस्तु डालते हैं तो उसी क्षण ईंधन जलकर भस्म होने लगता है। भस्म हो जाता है। इसी प्रकार भगवान का कोई भी नाम जब भी किसी के मुख से निकलता है, तभी उन स्त्री पुरुषों के सभी प्रकार के पाप भस्मसात् हो जाते हैं।
यदि कोई व्यक्ति मंत्र का अर्थ भी न जानता हो तो ? तो अब 19 वें श्लोक में दूसरा उदाहरण देखिए।
यथागदं वीर्यतममुपयुक्त़ं यदृच्छया।
अजानतोsप्यात्मगुणं कुर्यान्मन्त्रोप्युदाहृत: ll
हे यमदूतो ! भगवान का नाम इस संसार के पापरूप रोगों की औषधि है। जैसे किसी रोग के लिए उस रोग की औषधि को खाते ही रोगी का रोग नष्ट हो जाता है। भले ही उस रोगी को उस औषधि का ज्ञान हो, अथवा ज्ञान न हो।
अजानतोप्यात्मगुणं कुर्यात्। रोगी यदि उस औषधि के गुणों को तथा उसके स्वरूप को, विधि को भीनहीं जानता हो, तो भी वह औषधि रोगी के रोग को नष्ट कर देती है। महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते
मन्त्रोप्युदाहृत: इसी प्रकार भगवान के नामरूप मन्त्रों में पापों को नष्ट करने की शक्ति होती है। भगवान के नामों का उच्चारण करनेवाले स्त्री पुरुषों को भले ही उस मंत्र का अर्थ और महत्त्व का ज्ञान न हो, किन्तु मन्त्र तो अपनी शक्ति का प्रभाव दिखाता ही है।
भगवान का नाम मंत्र है। यही इस संसार के काम, क्रोध, मद, ईर्ष्या, द्वेष,वासना आदि रोगों की अचूक औषधि है। पापों को भस्म करने के लिए अग्नि है। यही तो अद्भुत और विलक्षण महिमा है।
इसलिए सभी स्त्री पुरुषों को अपनी कन्याओं के नाम भगवती लक्ष्मी, सरस्वती,दुर्गा आदि के नामों पर नाम रखना चाहिए, और बालकों के नाम भगवान के नाम पर नाम रखना चाहिए। अपने पुत्र पुत्री का मोह ममता से भी नाम लेंगे तो भगवान और भगवती के नामों का सहज ही उच्चारण होता रहेगा। श्री राम और शिवजी के बीच युद्ध हुआ क्या आप जानते हैं।
मोह ममता में किए गए विविध प्रकार के पापों का नाश होता रहेगा। यदि अजामिल के समान ही मरणकाल में मोह बस भगवान का नाम मुख से निकल पड़ेगा तो भी कल्याण हो जाएगा। कल्याण की इससे अधिक सहज और सरल व्यवस्था कहां मिलेगी?