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हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है।

हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है।

नवरात्रि पूजन क्यों?

हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। : ‘नवरात्रि’ शब्द में ‘नव’ संख्यात्मक होने के कारण नवरात्रि के दिनों की संख्या नौ तक सीमित रहनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ देवताओं के 7 दिन के नवरात्र हो सकते हैं और कुछ देवताओं के 9 या 13 दिन के। आमतौर पर, कुल देवता और इष्टदेवता देवता के लिए नवरात्रि संपन्न करने का कुलाचार है।

किसी देवता का अवतार तब होता है जब उसका कोई निमित्त (कारण) होता है। यदि कोई राक्षस उन्मत्त होता है, भक्तजन परम संकट में फँस जाते हैं या इसी प्रकार की कोई अन्य विपत्ति आ जाए तो संकट की काल अवधि 7 दिन से लेकर 13 दिन तक रहती है। धारा तो बह रही है श्री राधा नाम की हिंदी भजन

ऐसे काल अवधि में उस देवता की मूर्ति या प्रतिमा को चांदी के पत्र या नागवेली के पत्ते पर रखकर नवरात्र बैठाये जाते है। उस समय स्थापित देवता की षोडशोपचार पूजा की जाती है। अखंड दीप प्रज्वलन, माला बंधन, देवता के माहात्म्य का पाठ, व्रत और जागरण आदि विभिन्न कार्यक्रम करके अपनी शक्ति और कुलदेवता के अनुसार नवरात्रि पर्व संपन्न किया जाता है। मेरी विनती यही है राधा रानी कृपा बरसाए रखना

भले ही भक्त उपवास कर रहा हो, देवता को हमेशा की तरह अन्न का नैवेद्य (भोग) लगाना पड़ता है। इस कालअवधि में अच्छे आचरण के रूप में शेविंग न करना और सख्त ब्रह्मचर्य का पालन करना भी शामिल है। इसके अलावा बिस्तर या गद्दे पर न सोना, मर्यादाओं का उल्लंघन न करना और पादत्राण (जूते-चप्पल) नहीं पहनना आदि बातों का भी पालन किया जाता है।

आज के दौर में हर बात का पालन करना व्यावहारिक रूप से असुविधाजनक और कष्टकारी है। इसलिए हमें उन चीजों का पालन करना चाहिए जो ज्यादा असुविधा न दें। इसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन, पलंग-गद्दे पर न सोना, प्रथम और अन्तिम दिन उपवास करना और झगड़ा न करना आदि आवश्यक हैं। इससे न केवल नवरात्रि का फल मिलता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी यह बहुत फायदेमंद साबित होता है।

कई बार नवरात्र अशौच के दौरान आते हैं। ऐसे समय में नवरात्र स्थापना के बजाय अगले दिन पूजा, अभिषेक और समाराधना करें। कुछ लोग नवरात्रि की स्थापना घर के ब्रह्मचारी पुत्र या उपाध्याय से करवाते हैं। ऐसे समय में दूध और शक्कर का भोग जरूर लगाएं, लेकिन घर में बना अनाज भी चढ़ाएं। दूसरे घर का चढ़ावा अस्वीकार्य रहता है। मैं हूँ शरण में तेरी संसार के रचैया हिंदी लिरिक्स

कई बार नवरात्रि शुरू होने से पहले अशौच आ जाता है। ऐसे समय में किसी ब्रह्मचारी लड़के या गुरु से पूजा और माला-बंधन आदि करवाएं। नवरात्र स्थापना भी उनके द्व्रारा करवाएं। पके हुए अन्न का नैवेद्य न दिखाएं। अशौच की समाप्ति के बाद समाराधना करने में शास्त्रों को कोई आपत्ति नहीं है।

कुछ लोग अल्पज्ञान के कारण खंडित कुलाचार अगले कुलाचार के समय करते हैं, लेकिन यह बात शास्त्रों के अनुसार नहीं है। शारदीय नवरात्रि खंडित हो जाने पर ज्येष्ठा गौरी का उत्सव, चैत्रागौरी का दोलोत्सव नवरात्र के समय करना शास्त्र सम्मत नहीं है, इसलिए ऐसा न करें। श्री कृष्ण शरणम ममः श्री कृष्ण शरणम ममः भजन

कुल धर्म को भंग न करने तथा नवरात्रों को नियमित रखने से कुल पर उस देवता की पूर्ण कृपा बनी रहती है। इससे उस घर में अचानक आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक संकट नहीं आता है।

यदि कोई संकट आता भी है तो वह तीव्र न होकर सौम्य (हल्का) हो जाता है। जिस घर में चूल्हा है, वहां देवता की स्थापना होना जरूरी है। इसी तरह जब विभक्त होने पर भी नवरात्रि को विभक्त रूप से संपन्न करना चाहिए। यदि पुत्र पिता से अलग रहता है यदि पिता और पुत्र अलग रहता है तो घर में अलग-अलग नवरात्रों का होना आवश्यक है।

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