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जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन ऐसा कहा जाता है

जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन ऐसा कहा जाता है

जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन

किसी नगर में एक बूढ़ी भिखारिन एक गृहथी के यहां नित्य भीख मांगने जाती थी I वह ग्रहणी नित्य ही उसे एक मुट्ठी चावल दे दिया करती थी I यह बुढ़िया का दैनिक कार्य था और महीनों से नहीं कई वर्षों से यह कार्य बिना रुकावट के चल रहा था I

एक दिन चावलों को मांगकर बुढ़िया द्वार से ज्यों ही मुड़ी I उस ग्रहणी का ढाई वर्ष का बालक खेलता हुआ दिखाई दिया I उस बालक के गले में एक सोने की जंजीर पड़ी हुई थी I बुढ़िया की नियत बदलते देर न लगी I

उसने इधर-उधर अपनी दृष्टि दौड़ाई गली में उसे कोई और दिखाई नहीं पड़ा I बुढ़िया ने बालक के गले से जंजीर ले ली और वहां से चलती बनी, बुढ़िया जब घर पहुंची I बुढ़िया जब चोरी की जंजीर लेकर घर पहुंची तो एक स्थान पर उसे रख दिया और बैठकर सोचने लगी I

जंजीर को सुनार के पास ले जाऊंगी और इसे बेचकर पैसे लूंगी I यह सोचकर जंजीर को एक कोने में एक ईट के नीचे रख दिया I बुढ़िया भोजन बनाकर और खाकर सो गई I

बुढ़िया के विचार बदलना:-

प्रातः काल जब गुड़िया उठी, तो सोच स्नान से निवृत्त होने के बाद, जंजीर के संबंध में जो विचार सुनार के पास ले जाकर बेचने का था और एक धनराशि लेने का था उसमें परिवर्तन आ गया I बुढ़िया के मन में क्षोभ पैदा हो गया और वह सोचने लगी I

यह मुझसे क्या हो गया ? यह पाप मुझसे कैसे हो गया? उस परिवार ने मेरी हमेशा मदद की है I यह सोचते सोचते बुढ़िया ने यह निर्णय लिया की मैं यह जंजीर उसको वापस दे दूंगी I

यह विचार कर बुढ़िया ने जंजीर ले जाकर द्वार पर खड़ी उस ग्रहणी को दे दी I उसके और उसके पैरों में गिर कर हाथ जोड़कर माफी मांगने लगी और बोली आप मेरे अन्नदाता हो, वर्षों से मैं आपके अन्न पर पल रही हूं I कल मुझसे एक बड़ा अपराध हो गया I आप मुझे क्षमा कर दो I

और आप अपने बालक की यह जंजीर ले लो I जंजीर को हाथ में लेकर ग्रहणी ने बड़े आश्चर्य से पूछा ! आप क्या बात कर रही हो ? और यह जंजीर तुम्हें कहां से मिली ? बूढ़ी भिखारिन बोली यह जंजीर मैंने ही आपके बच्चे के गले से उतार ली थी I Please Read Also-ऋषि मुनियों द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र

लेकिन अब मैं बहुत पछता रही हूं I कि ऐसा पाप मैं क्यों कर बैठी ? ग्रहणी बोली नहीं ! नहीं ! यह नहीं हो सकता I तुमने जंजीर नहीं निकाली है I जंजीर का काम तो किसी और का है ? तुम्हारा नहीं हो सकता I तुम उस चोर को बचाने के लिए यह सब नाटक कर रही हो I

बूढ़ी भिखारिन बोली, नहीं बहन जी ! मैं ही चोर हूं I कल मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी I आज प्रातः काल मुझे फिर से ज्ञान हुआ और अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए मैंने आपके सामने सारी सच्चाई बता दी I आपने मेरे ऊपर बहुत उपकार किए हैं I

इसलिए मैंने आपको यह सच्चाई बताना आवश्यक समझा I बूढ़ी भिखारिन बोली ने उत्तर दिया I ग्रहणी यह सुनकर अवाक रह गई I भिखारिन ने पूछा क्षमा करें I क्या आप मुझे एक बात बताने की कृपा करेंगे I

कि कल जो चावल आपने मुझे दिए थे I वह कहां से खरीद कर लाए गए थे I ग्रहणी ने अपने पति से पूछा तो पता लगा कि एक व्यक्ति किसी पुल के पास बहुत सस्ते दामों में चावल बेच रहा था वहीं से खरीद कर लाया था ! हो सकता है ! वह चावल चोरी के हो और चोरी के चावलों को ही को ही भीख में दे दिया गया I

भिखारिन बोली चोरी का अन्न पाकर ही मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी, और इसी कारण में आपके बच्चे की जंजीर चुरा के ले गई थी I जब अन्न मल के साथ मेरे शरीर से निकल गया और शरीर निर्मल हो गया I

तब मेरी बुद्धि ठिकाने पर आ गई और मेरे मन ने यह निर्णय लिया कि मैंने बहुत बड़ा पाप किया है I मुझे यह जंजीर वापस देकर क्षमा मांग लेनी चाहिए I

ग्रहणी तथा उसके पति ने जब भिखारिन के मनोभावों को सुना तो बड़े अचंभे में पड़ गए I भिखारिन बोली चोरी के अन्न में से एक मुट्ठी भर चावल पाने से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो सकती है I तो आप सभी चावल खाकर आपके परिवार की क्या दशा होगी I यह बात सुनकर ग्रहणी के पति ने सभी चावलों को फेंक दिया I

निष्कर्ष -आप जिस तरह का अन्न खाते हैं उसी तरह आपकी बुद्धि आपके विचार और आपकी संपूर्ण मनोदशा उसी प्रकार हो जाती है I गलत रास्तों से कमाए हुआ धन आपको गलत रास्तों पर ही लेकर जाएगा “यह एक सत्य है” I

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