X

कार्तिक मास महात्म्य व्रत एवं स्नान के नियम

कार्तिक मास महात्म्य व्रत एवं स्नान के नियम :

भगवान नारायण के शयन और प्रबोधन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और समापन होता है । उत्तरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरि काल माना जाता है । दक्षिणायन में सत्गुणों के क्षरण से बचने और बचाने के लिए हमारे शास्त्रों में व्रत और तप का विधान है । सूर्य का कर्क राशि पर आगमन दक्षिणायन का प्रारम्भ माना जाता है ।

और कातिक मास इस अवधि में ही होता है । पुराण आदि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। यूँ तो हर मास का अलग अलग महत्व है। परन्तु व्रत, तप की दृष्टि से कार्तिक मास की महता अधिक है। शास्त्रों में भगवान विष्णु और विष्णु तीर्थ के ही समान कर्तिक् मास को श्रेष्ट और दुर्लभ कहा गया है। शास्त्रों में ये मास परम कल्याणकारी कहा गया है।

सूर्य भगवान जब तुला राशि पर आते है। तो कार्तिक मास का प्रारम्भ होता है। इस मास का माहत्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में विस्तार पूर्वक मिलता है। कलियुग में कार्तिक मास को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है। इस मास को धर्म,अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला बताया गया है। ऋषि मुनियों द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र

नारायण भगवान ने स्वयं इसे ब्रम्हा को, ब्रम्हा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण सम्पन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है। इस संसार में प्रत्येक मनुष्य सुख शांति और परम आनंद की कामना करता है। परन्तु प्रश्न यह है की दुखों से मुक्ति कैसे मिले? इसके लिए हमारे शास्त्रों में कई प्रकार उपाय बताए गए है। परन्तु कार्तिक मास की महिमा अत्यंत उच्च बताई गयी है

कार्तिक मास व्रत एवं स्नान के नियम :

कार्तिक मास में जो भी व्रत आदि रखता है। उसे सदा एक पहर रात बचते ही उठ जाना चाहिए फिर स्तोत्र आदि के द्वारा अपने इष्टदेव की स्तुति करते हुए दिन के बाकी कामों को करना चाहिए। गाँव अथवा नगर के अनुसार दैनिक कर्म मल-मूत्र त्याग आदि कर उत्तर की ओर मुँह करके बैठना चाहिए। इसके साथ ही दाँत व जिह्वा की शुद्धि के लिए वृक्ष के समीप जाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

आयुर्बल यशो वर्च: प्रजा पशुवसूनि च ।
ब्रह्म प्रज्ञां च मेघां च त्वं नो देहि वनस्पते ।।

भावार्थ – हे वनस्पति ! आप मुझे आयु, बल, यश, तेज, सन्तति, पशु, धन, वैदिक ज्ञान, प्रज्ञा एवं धारणाशक्ति प्रदान करें। इस प्रकार कहकर वृक्ष से दाँतुन लेनी चाहिए। दूध वाले वृक्षों की दाँतुन लेना वर्जित माना गया है। (वर्तमान समय में दाँतुन नहीं मिलती तो जिस तरह व्यक्ति दाँत साफ करते आया है वैसे ही करे) दाँतों को विधिपूर्वक शुद्ध करके मुँह को जल से धोना चाहिए।

इसके बाद कार्तिक का व्रत करने वाले को विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद नए अथवा स्वच्छ वस्त्र धारण करके तिलक लगाना चाहिए फिर अपनी गोत्र विधि के अनुसार अथवा अपने घर के नियमानुसार संध्या उपासना करनी चाहिए।जब तक सूर्योदय ना हो जाए तब तक गायत्री मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। मुरली मनोहर गोविंद गिरधर नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम् लिरिक्स

संध्योपासना के अंत में विष्णु सहस्त्रनाम आदि का पाठ करना चाहिए। फिर व्यक्ति को अपनी दिनचर्या आरंभ करनी चाहिए जैसे वह जो भी काम करता हो उस पर जाना चाहिए। मध्यान्ह में दाल के अलावा शेष अन्न का भोजन करना चाहिए। जो व्यक्ति अतिथियों को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करता है वह भोजन अमृततुल्य होता है।

मुख शुद्धि के लिए तुलसी का सेवन करना उत्तम है। उसके बाद शेष दिन सांसारिक व्यवहार में व्यतीत करना चाहिए। सायंकाल में पुन: भगवान के मन्दिर जाकर संध्या करके यथाशक्ति दीपदान करना चाहिए। भगवान विष्णु अथवा अपने देवता को प्रणाम करके आरती उतारनी चाहिए।

प्रथम प्रहर में कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए। प्रथम प्रहर के बीत जाने पर शयन करना चाहिए। इस प्रकार जो व्यक्ति एक महीने तक शास्त्र अनुसार विधि का पालन करते हुए कार्तिक मास में स्नान-दान करता है, उसे भगवान का सालोक्य प्राप्त होता है।

कार्तिक मास में वस्तुओं का त्याग:

तेल लगाना, दूसरे का दिया भोजन ग्रहण करना, तेल खाना, अधिक बीज वाले फलों का सेवन, चावल तथा दाल ये खाद्य पदार्थ कार्तिक मास में नहीं खाने चाहिए। इसके अलावा गाजर, बैंगन, बासी खाना, मसूर, कांसे के बर्तन में भोजन, कांजी, दुर्गंधित पदार्थ, किसी भी समुदाय का अन्न अर्थात भण्डारा, शूद्र का अन्न, सूतक का अन्न, श्राद्ध का अन्न यह कार्तिक व्रत करने वाले को त्याग देने चाहिए।

कार्तिक में केले और आंवले के फल का दान करना चाहिए। शीत से कष्ट पाने वाले निर्धन और ब्राह्मण को वस्त्र दान देना चाहिए। जो व्यक्ति इस माह भगवान को तुलसीदल समर्पित करता है। उसे मुक्ति मिलती है, जो कार्तिक की एकादशी को निराहार रहकर व्रत करता है।

वह पूर्व जन्मों के पापों से छुटकारा पा लेता है, जो राह चलकर आये हुए थके व्यक्ति को अन्न देता है। और भोजन के समय उसे भोजन कराकर संतुष्ट करता है। उससे अनन्य पुण्यों का फल मिलता है।

कार्तिक में भगवान विष्णु की परिक्रमा करने वाले को पग पग पर अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। कार्तिक में भगवान के मन्दिरों में चूना-सफाई आदि करवाकर उन्हें सुन्दर बनाने में सहयोग देने वाले और उनमें भगवान के निमित्त नवीन वस्त्र अलंकार भेंट करने वाले को विष्णु के सामीप्य का आनन्द अनुभव होता है। श्री कृष्ण भजन बहुत ही सुंदर एवं मनमोहक रविंद्र जैन जी द्वारा रचित

कार्तिक मास में प्याज, सिंघाड़ा, सेज, बेर, राई, नशीली वस्तुएँ और चिवड़ा सभी का उपयोग भी वर्जित है। कार्तिक व्रत करने वाले व्यक्ति को देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री और महात्माओं की निन्दा नहीं करनी चाहिए। कार्तिक मास में नरक चतुर्दशी को (छोटी दीवाली) शरीर में तेल लगाना चाहिए।

इसके अलावा व्रती मनुष्य को अन्य किसी भी दिन तेल नहीं लगाना चााहिए। व्रत करने वाले को कार्तिक में चाण्डाल, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मण द्वेषी और वेद बहिष्कृत लोगों से बातचीत भी नहीं करनी चाहिए।

कार्तिक मास स्नान के नियम:

कार्तिक स्नान आश्विन माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अगले माह कार्तिक माह की पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस पवित्र स्नान को आरंभ करने से पहले आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आने पर भगवान विष्णु को प्रणाम कर कार्तिक व्रत करने की आज्ञा लेनी चाहिए। इस तरह से आज्ञा लेने से भगवान प्रसन्न होते हैं।

और अपने भक्त पर कृपा कर उसे आत्मिक बल तथा मनोबल प्रदान करते हैं। साथ ही ईश्वर अपने भक्त को विधिपूर्वक कार्तिक व्रत करने की सद्बुद्धि देते हैं।

सभी बारह मासों में मार्गशीर्ष मास को अत्यन्त पुण्यदायक कहा गया है। उससे भी अधिक पुण्य देने वाला वैशाख मास कहा गया है। प्रयाग में माघ मास का अधिक महत्व है, तथा इससे भी महान तथा अधिक फलदायी कार्तिक मास को कहा गया है। जब ब्रह्मा जी ने एक तरफ सभी प्रकार के दान, व्रत तथा नियम रखे और दूसरी ओर कार्तिक का स्नान रखकर तौला तो कार्तिक स्नान का पलड़ा ही भारी पाया।

भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए आश्विन की पूर्णिमा से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तक प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करना चाहिए। यदि गंगा जी नहीं है, तब किसी भी नदी, तालाब अथवा पोखर आदि में कार्तिक स्नान करना चाहिए। यदि कुछ भी नहीं है, तब नियमित रुप से घर पर ही बालटी अथवा जिस भी पात्र में स्नान करना है, उसमें गंगा जी सहित सभी पवित्र नदियों की कल्पना करके स्नान करना चाहिए।

भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महारात्रि आने तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आश्विन कृष्ण चतुर्थी से लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक नियमपूर्वक स्नान करना चाहिए। भगवान जनार्दन को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।

जो मनुष्य जाने अनजाने कार्तिक मास में नियम से स्नान करते हैं। उन्हें कभी यम यातना को नहीं देखना पड़ता। कार्तिक मास में तुलसी के पौधे के नीचे राधा-कृष्ण की मूर्त्ति रखकर पूरे भाव के साथ पूजा करनी चाहिए। यदि आंवले का पेड़ है, तब उसके नीचे भी राधा-कृष्ण की मूर्त्ति रखकर पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करना चाहिए।

विधिपूर्वक स्नान करने के लिए जब दो घड़ी रात बाकी बच जाए तब तुलसी की मिट्टी, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय या गंगा तट अथवा पवित्र नदी के किनारे जाकर पैर धोने चाहिए। नवधा भक्ति ! कैसे प्रभु श्रीराम द्वारा माता शबरी को प्राप्त हुई

तथा गंगा जी के साथ अन्य पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए विष्णु, शिव आदि देवताओं का ध्यान करना चाहिए। उसके बाद नाभि तक जल में खड़े होकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए !

कार्तिकेsहं करिष्यामि प्रात: स्नानं जनार्दनं ।
प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह ।।

अर्थ : हे जनार्दन देवेश्वर ! लक्ष्मी सहित आपकी प्रसन्नता के लिए मैं कार्तिक प्रात: स्नान करुँगा। उसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करें !

गृहाणार्घ्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे ।
नम: कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने ।।।
नमस्तेsस्तु हृषीकेश गृहाणार्घ्यं नमोsस्तुते ।।

अर्थ : आप मेरे द्वारा दिये गये इस अर्घ्य को श्रीराधाजी सहित स्वीकार करें। हे हरे ! आप कमलनाभ को नमस्कार है। जल में शयन करने वाले आप नारायण को नमस्कार है। इस अर्घ्य को स्वीकार कीजिए, आपको बारम्बार नमस्कार है।

व्यक्ति किसी भी जलाशय में स्नान करे। उसे स्नान करते समय गंगा जी का ही ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले मृत्तिका (मिट्टी) आदि से स्नान कर ऋचाओं द्वारा अपने मस्तक पर अभिषेक करें।

अघमर्षण और स्नानांग तर्पण करें तथा पुरुष सूक्त द्वारा अपने सिर पर जल छिड़्के। इसके बाद जल से बाहर निकलकर दुबारा अपने मस्तक पर आचमन करना चाहिए और कपड़े बदलने चाहिए। कपड़े बदलने के बाद तिलक आदि लगाना चाहिए।

जब कुछ रात बाकी रह जाए तब स्नान किया जाना चाहिए क्योंकि यही स्नान उत्तम कहलाता है। तथा भगवान विष्णु को पूर्ण रूप से संतुष्ट करता है। सूर्योदय काल में किया गया स्नान मध्यम स्नान कहलाता है। कृत्तिका अस्त होने से पहले तक का स्नान उत्तम माना जाता है। बहुत देर से किया गया स्नान कार्तिक स्नान नहीं माना जाता है। Please Read Also- श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम

मनीषियों द्वारा चार प्रकार के स्नान कहे गए हैं –

वायव्य स्नान, वारुण स्नान, ब्राह्म स्नान तथा दिव्य स्नान।

वायव्य स्नान – जिस स्नान को गोधूलि द्वारा किया जाए वह वायव्य स्नान कहलाता है।

वारुण स्नान – जो स्नान समुद्र आदि के जल से किया जाए वह वारुण स्नान कहलाता है।

ब्राह्म स्नान – वेद मन्त्रों के उच्चारण कर के जो स्नान किया जाता है । उसे ब्राह्म स्नान कहते हैं।

दिव्य स्नान – मेघों तथा सूर्य की किरणों द्वारा जो जल शरीर पर गिरता है । उसे दिव्य स्नान कहा जाता है।

ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों के लिए मन्त्रोचारण करते हुए स्नान का विधान है। स्त्री तथा शूद्र को बिना मंत्रोच्चार के स्नान करना चाहिए। प्राचीनकाल में कार्तिक मास में पुष्कर का स्पर्श पाकर नन्दा परम धाम को प्राप्त हुई थी।

राजा प्रभंजन भी कार्तिक मास में पुष्कर में स्नान करने से व्याघ्र योनि से मुक्त हुए थे। अत: कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रात:काल उठकर तीर्थ में स्नान करता है। वह सब पापों से मुक्त होकर परब्रह्म को प्राप्त होता है।

श्री राम और शिवजी के बीच युद्ध हुआ क्या आप जानते हैं।

Categories: Vrat-Tyauhaar

This website uses cookies.