कान्हा जी की गौ चारण लीला आपने नहीं सुनी होगी।
कान्हा जी की गौ चारण लीला आपने नहीं सुनी होगी। : भगवान पौगंड अवस्था में प्रवेश करते हैं। भगवान की आयु 5-6 वर्ष है। भगवान अपने पलंग पर सोये हैं। माँ चाँदी के कटोरे में अधोता (रबडी बनाने से पहले, दूध जलने से पहले निकालने के लिए) ले आई हैं। परन्तु भगवान ने पीने से कर दिया। भगवान ने कहा कि हम बड़े हो गए हैं। अब हम (गौ चारण) गाय चराने जायेंगे। मैया बोली ये यह बात तुझे करनी है तो अपने पिता से कर करियो।
अब रात हो गई हैं, तू ये बात अपने पिता से सुबह करियो जैसी वो कहेगें वैसा हम प्रबंध तोकु करवा देंगे। तो मैया ने लाला श्री कृष्णा को जैसे तैसे समझाया। और अधोटा पिलाया और सुलाया। प्रातः भगवान सोकर उठे माँ को प्रणाम किया और नन्द बाबा के पास गए। और भगवान बोले – बाबा, बाबा। अब हम बड़े हो गए हैं। अब हमें बछड़ा चरानो अच्छो नही लगे हैं। हम गइया चरायेंगे। यह भी पढ़ें : गोवेर्धन पर्वत की पारिक्रमा क्यों करते है?
नन्द बाबा बोले की ऐसे थोड़ी जाओगे। पहले पंडित जी को बुलाएंगे और मुहूर्त निकलवाएंगे। लाला बोले की ठीक हैं मैं अभी पंडित जी को बुला कर आ जाता हूँ। भगवान श्री कृष्ण पुरोहित जी के पास पहुंचे हैं। और श्री कृष्ण बोले की पुरोहित जी आज मेरे बाबा के सामने आपको मेरे गऊ चारण का मुहर्त निकलना हैं। देखो अगर आपने आज का मुहर्त निकालो तो आपको लम्बी छोड़ी दक्षिणा दिलवाऊंगा और अगर आपने देरी की तो दक्षिणा के नाम ठन ठन पाल मदन गोपाल। फिर कुछ नही मिलेगा।
पंडित जी बोले की हमें तो अपनी दक्षिणा से मतलब हैं। तू जबका कहेगा हम तबका मुहर्त निकल देंगे। भगवान पंडित जी के साथ नन्द बाबा के पास पहुंचे और नन्द जी ने प्रणाम किया पंडित जी को बैठने को आसन दिया। और नन्द बाबा बोले की आप पंचांग खोलकर देखो यदि 2-4 महीने में मेरे लाला (कृष्ण) का गऊ चराने का अच्छा मुहर्त निकले तो बता दो। यह भी पढ़ें : भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन-कौन से हैं
पंडित जी ने पंचांग खोला तो कभी सर पर हाथ रखते हैं। कभी उँगलियों पर हिसाब गिनते हैं। 10-20 मिनट निकले नन्द बाबा बोली की क्यों पंडित जी कोई मुहर्त नही निकल रहो हैं का? पंडित जी बोले की आपके लाला का 10 साल तक कोई मुहर्त नही हैं। नन्द बाबा बोले कोई मुहर्त ही नही हैं क्या बात हुई? पंडित जी बोले की मेरी समझ में कोई मुहर्त निकल भी रयो हैं तो आज के दिन का ही मुहर्त निकल रहो हैं। यह भी पढें–भगवान श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार क्यों कहा गया है
नन्द बाबा बोले की पंडित जी कहीं मेरा लाला आपको कुछ सीखा पढ़ा के तो नही लायो हैं। पंडित जी बोले की आपका छोटा सा लाला मुझे क्या सिखायेगो? जो मेरे पंचांग में लिखा था मैंने बता दिया। पंडित जी को दक्षिणा दे विदा कर दिया। प्रभु बोले बाबा अब तो मुहर्त निकल गया ना अब तो मुझे भेजो। नन्द बाबा बोले की हम तुम्हे गऊ चरण के लिए नही भेजेंगे क्योंकि आप अभी छोटे हो।
भगवान उदास हो गए और कोने में बैठ कर रोने लगे। इधर सभी ग्वाल बाल अपनी गउओं को निकलने की तैयारी कर रहे हैं। बार बार लाठी दिखा कर बाहर निकाल रहे हैं लेकिन गौएं बाहर नही निकल रही हैं। वापिस जा रही हैं। ग्वाल बाल भाग कर नन्द बाबा के पास आये और बोले की आप अपने लाला को भेज दो। नन्द बाबा बोले की क्या बात हो गई।
ग्वाल बाल बोले की गउएं गोशाला से बाहर नही निकल रही हैं। तब नन्द बाबा ने कहा की जाओ और गउओं को गौशाला से बाहर निकाल कर आओ। भगवान रो रहे थे लेकिन नन्द बाबा की आज्ञा को मना नही करते। उसी समय उठे और अपनी कमर से बांसुरी निकाली। और एक मिटटी का एक छोटा सा चबूतरा था और बांसुरी बजाने लगे।
भगवान ने एक एक गाय का नाम बंसी में बोला। जो गउओं ने बंसी में अपना नाम सुना तो गउए आज दौड़ती हुई गोशाला से बाहर निकली और भगवान श्री कृष्ण को घेरकर खड़ी हो गई। कोई गाय भगवान का हस्त (हाथ) कमल चाट रही हैं कोई गाय भगवान का चरण कमल को चाट रही हैं। कोई भगवान के कपोल को चाट रही हैं।
गोपाष्टमी त्यौहार : जब नन्द बाबा ने देखा की कितने प्रेम से गउएं भगवान का दर्शन कर रही हैं। तब नन्द बाबा बोले की यशोदा इतना प्रेम गऊ अगर कान्हा से करें तो कान्हा भी आज ही गऊ चारण के लिए जायेगें। इतना प्रेम करती हैं गोपाल से। भगवान का सुन्दर श्रृंगार किया हैं। आगे आगे गऊ हैं पीछे पीछे कृष्ण बलराम और सभी ग्वाल बाल हैं। बड़ी सुंदर भगवान ने लीला की हैं। वह दिन था कार्तिक शुक्ल पक्ष गोपाष्टमी। और उसी दिन से गोपाष्टमी का त्यौहार मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण द्वारा धेनुकासुर का वध : गऊ चारण के समय धेनुकासुर आया। भगवान ने उसे भी मारा। बलराम तथा कृष्ण के साथ ब्रज के बच्चे ताड़ के वन में गये। बलराम जी ने पेड़ों से फल गिराए, इससे पहले कि बालक उन फलों को खाते, वैसे ही धेनुक नामक असुर ने गदहे के रूप में आकर उन पर आक्रमण किया। दो बार दुलत्तियां (दोनों लात) सहने के बाद बलराम जी ने उसे उठाकर पेड़ पर पटक दिया। पेड़ भी टूट गया तथा वह धेनुक असुर भी मर गया। उसकी इस गति को देखकर उसके भाई-बंधु अनेकों गदहे वहां पहुंचे। बलराम जी तथा श्री कृष्ण ने सभी को मार डाला।
गाय सभी की माता है, भगवान भी गाय की पूजा करते हैं, गाय में सभी देवी देवताओं का वास होता है, गाय की सेवा करने वाले की सभी मनोकामनाएं गाय पूरी करती है।
जो पुण्य तीर्थों में स्नान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत और जप करने से तथा हवन-यज्ञ करने से प्राप्त होता है, वही पुण्य गाय को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त होता है।
बृज 84 कोस की यात्रा 66 अरब तीर्थों के बराबर है। जानें पूरी कहानी।
बरसाना दर्शन-बरसाना में घूमने की जगहें कौन कौन सी है? | वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है |
भगवान शिव सर्पों को आभूषण के रूप में क्यों धारण करते हैं ? | धारा तो बह रही है श्री राधा नाम की हिंदी भजन |
यह भी पढ़ें : रामायण में कौन सा पात्र किस देवता का अवतार था?
आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी