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कर्मों का फल तो सभी को भोगना ही पड़ता हैं।

कर्मों का फल तो सभी को भोगना ही पड़ता हैं

भीष्म पितामह रणभूमि मैं सही सरशैया पर पड़े थे। हल्का सा भी अगर हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी दर्द-वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते। ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आए उनको देखकर भीष्म पितामह जोर से हंसे, और कहा आइए जगन्नाथ ! आप तो सर्वज्ञाता हैं। आप सब जानते हैं।

बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया कि जिसका दंड इतना भयावह मिला है। श्री कृष्ण कहते हैं ! पिता में आपके पास वह शक्ति है। जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते। भीष्म कहते हैं, हे ! देवकीनंदन मैं यहां अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूं। Please Read : मैं हूँ शरण में तेरी संसार के रचैया हिंदी लिरिक्स

मैंने सब देख लिया अभी तक सौ जन्म देख चुका हूं। मैंने उन सौ जन्मों में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया। जिसका परिणाम यह हो कि मेरा पूरा शरीर बाणों से विंधा है। हर आने वाला क्षण और पीड़ा लेकर आता है।

श्री कृष्ण कहते पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएं, आपको उत्तर मिल जाएगा। भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि एक सौ एक भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।  यह भी पढ़ें –हर सांस में हो सुमिरन तेरा यूँ बीत जाए जीवन मेरा हिंदी भजन

एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला। राजन मार्ग में एक सर्प पड़ा है, यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जाएगा। भीष्म ने कहा एक काम करो उसे किसी लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दो। सैनिकों ने वैसा ही किया उस सांप को बाण की नोक से उठाकर झाड़ियों में फेंक दिया। यह भी पढ़ें –वो कौन है जिसने हम को दी पहचान है हिंदी लिरिक्स

दुर्भाग्य से झाड़ी कटीली थी। सांप उसमें फस गया, वह जितना प्रयास उससे निकलने का करता और अधिक फंसता जाता। कांटे उसकी देह में गड गए, खून रिसने लगा जिसे झाड़ियों में मौजूद चीटियां रक्त चूसने लग गई। धीरे-धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा। पांच – छ: दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।

भीष्म कहते हैं हे ! त्रिलोकीनाथ ! आप जानते हैं कि मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य सर्प की रक्षा का था। तब यह परिणाम क्यों ? तब श्री कृष्ण कहते हैं: तात श्री ! हम जानबूझकर क्रिया करें या अनजाने में किंतु क्रिया तो हुई ना । उसके प्राण तो गए ना । यह भी पढ़ें –मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है

यह विधि का विधान है कि जो किया हम करते हैं उसका फल हमको भोगना ही पड़ता है। आपका पुण्य इतना प्रबल था कि एक सौ एक भव उस पाप को उदित होने में लग गए। किंतु अंततः वह हुआ। जिस जीव को लोग जानबूझकर मार रहे हैं। वह कितनी पीड़ा सहन कर रहा होगा उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी पड़ेगी ।

आज ये बकरे, मुर्गे, भैंस, गाय, ऊंट आदि वही जीव है जो लोग ऐसा भी वीभत्स्य कार्य पूर्व जन्म में करके आए हैं। और इसी कारण पशु बनकर यातनाएं झेल रहे हैं। हमें अपनी हर दैनिक क्रिया सावधानीपूर्वक करना चाहिए।



महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते

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