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कौन हैं भगवान शिव ? (Who is lord Shiva?)

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कौन हैं भगवान शिव ? (Who is lord Shiva?)

हिंदू सनातन संस्कृति में शिवरात्रि हिंदू सभ्यता का सबसे प्राचीन धार्मिक त्यौहार है। शिवरात्रि रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और अन्य सभी हिंदू त्यौहारों से भी सबसे प्राचीनतम त्यौहार है। भगवान विष्णु के सभी अवतार गर्भ से जन्म लेते हैं किंतु उन सबकी गर्भ को धारण करने की लीला अद्भुत और दिव्य होती है, किंतु आदि देव महेश्वर को अजन्मा कहा जाता है। ब्रज के सुप्रसिद्ध वन कौन कौन से हैं।

क्योंकि उनकी उत्पत्ति गर्भ से नहीं होती। सृष्टि के रचियता परम पिता ब्रह्माजी से ही महेश की उत्पत्ति सृष्टि की रचना से पूर्व हुई थी, और भगवान शिव ने जब अर्धनारीश्वर रूप में भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी को दर्शन दिए थे तब उन्होने परम पिता ब्रह्माजी से कहा था कि वह स्वतंत्र रुद्र रूप से ब्रह्मा जी के ही पुत्र के रुप में उनके मानसिक संकल्प से उत्पन्न होंगे। धारा तो बह रही है श्री राधा नाम की हिंदी भजन

रुद्र का जब प्राकट्य हुआ तब उनका स्वरूप देखकर स्वयं ब्रह्माजी भयभीत हो गये और उनके भयंकर भयभीत कर देने वाले शब्द सुनाई देने लगे तब ब्रह्मा जी ने उनका नाम रुद्र रखा। शिव अजन्मा और निराकार है। सर्वप्रथम पृथ्वी में साकार रूप में उन्होने कैलाश को ही अपना मूल दर्शन का स्थान बनाया। सीताराम सीताराम सीताराम कहिए हिंदी लिरिक्स

जब समस्त देवों पांच महाभूतों से पृथ्वी की रचना हुई तब समस्त देव और सप्त ऋषियों को उन्होनें कैलाश में ही अपने प्रथम माहेश्वर रूप के दर्शन दिए। सामवेद में शिव की महिमा कही गयी है। शिव को वेदों में रुद्र-शम्भू-शर्व आदि भी कहा गया है। वेद कहतें हैं, कि सृष्टि के कण कण में शंकर व्याप्त हैं। जिनका दिल मोहन की चौखट का दीवाना लिरिक्स

महेश को मूलत: विनाश और प्रलय का देवता कहा गया है। सम्पूर्ण-बीमारियों दु:ख और राक्षसों दानवों और सभी भूतों के वो अधिपति देवता हैं। रुद्र या शिव की उपासना प्रमुख रूप से दैत्य-असुर और दानव करते हैं, और देवता भी उनकी उपासना करते है।

भगवान शिव के स्वरूप का सम्पूर्ण अर्थ :

त्रिनेत्र होने के कारण ईश्वर को तीनों कालों का ज्ञाता कहा गया है। गंगा ज्ञान के प्रवाह का प्रतीक है इसीलिए ईश्वर को ज्ञान का उत्पत्ति स्वरूप माना जाता है। चंद्रमा को सोम अमृत का प्रतीक माना गया है, इसलिए ईश्वर को अमृत प्रदान करने वाला कहा गया है। ईश्वर को उत्पत्ति और प्रलय करने वाला कहा गया है। बिहारी जी मंदिर में पर्दा बार-बार क्यों खींचा और गिराया जाता है।

डमरु यह नाद के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक माना गया है, ईश्वर को नाद ब्रह्म कहा गया है। वासुकी नाग वासुकि पांच फनों वाला सर्प है, पांच ज्ञानेंद्रियों के पांच विषय ही वासुकि हैं, जिनकी उत्पत्ति पांचमहाभूतों के अधिपति देवता महेश्वर से मानी जाती है। शिव के पांच मुख पांच महाभूतों के प्रतीक हैं। श्री बांके बिहारी गवाह बनकर जज के सामने पहुंचे

भस्म यह नश्वर संसार का प्रतीक है, सब कुछ नष्ट होकर शिव में ही समा जाने का प्रतीक है। विष यह प्रतीक है, कि अपने समस्त दुर्गुणों और दुखों को ईश्वर को अर्पित कर दो। त्रिशूल यह तीनों लोकों और तीन दैहिक, भौतिक और आत्मिक दुखों को समस्त प्राणियों को देनें वाली ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है। एक भक्त का बाल श्री कृष्ण के प्रति विशुद्ध प्रेम !

नंदी पशु का प्रतीक है जो कि धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूपी चार पैरों पर खड़ा है और सदैव ईश्वर के निवास स्थान के बाहर बैठकर उस ईश्वर को पाने की प्रतीक्षा कर रहा है। शिव की उपासना सदैव शिला रूप में ही होती है, और भक्ति भाव पूर्वक केवल जल मात्र चढाने से ईश्वर अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। वृंदावन बांके बिहारी के प्रकट होने की कथा

वह ज्ञानियों का अहंकार खा जाते हैं, और मूर्खों को भी अतिशीघ्र फल दे देते हैं। भगवान श्रीराम ने भी शिव को पूजा। रावण ने भी शिव को पूजा। शिव(परमात्मा) की इच्छा ही उनकी शक्ति है। यह सृष्टि चिन्मय निराकार ईश्वर और उनकी इच्छा से उत्पन्न हुई है जिसे उनकी शक्ति कहते हैं, जिन्हें हम आदि शक्ति कहते हैं।

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