कुलदेवी एवं कुलदेवता का क्या महत्व होता है ?
कुलदेवी एवं कुलदेवता का क्या महत्व होता है ? :
सूर्यकुल में एक कथा है कि राजा सगर अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम मे चोरी से बांध दिया, कपिल मुनि को यह बात पता नहीं थी। यह भी पढ़ें : कर्मों का फल तो सभी को भोगना ही पड़ता हैं।
राजा सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को यज्ञ का घोड़ा ढूंढ़ने भेजा, राजा सगर के साठ हजार पुत्र घोड़ा ढूंढ़ते-ढूंढ़ते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे, वहां यज्ञ का घोड़ा बंधा देख कर राजा सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि को बिना वास्तविकता जाने अपशब्द कहने लगे। यह भी पढ़ें : वास्तव में जिसे बस्ती कहते हो वह तो मरघट है।
कपिल मुनि का ध्यान भंग हुआ और खुद को अपशब्द कहे जाने पर क्रुद्ध हो गए और उन्होंने भी बिना वास्तविकता जाने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म हो जाने का श्राप दे दिया। राजा सगर के दूसरे पुत्र अंशुमान को जब यह पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से श्राप मुक्ति का मार्ग बताने की प्रार्थना की। कपिल मुनि ने बताया कि माता गंगा के जल से ही श्राप से मुक्त होना संभव है। यह भी पढ़ें : माथे पर तिलक लगाने के बाद चावल के दाने क्यों लगाते है ?
राजा सगर को यह बात पता चली तो वो राजपाट अपने पुत्र अंशुमान को सौंपकर माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने चल दिए और तपस्या करते-करते ही देह त्याग दिया, फिर भी माता गंगा प्रसन्न न हुई। उसके बाद अंशुमान ने भी अपने पुत्र दिलीप को राजपाट सौंपकर माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने चल दिए, पर उनका भी हाल अपने पिता जैसे हुआ।
अंशुमान के बाद उनके पुत्र राजा दिलीप ने भी राज्य अपने पुत्र भगीरथ को सौंपकर माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने चल दिए और उनका हाल भी अपने पिता एवम पितामह की तरह हुआ। राजा दिलीप के बाद भगीरथ ने माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की वो भी तीन बार तब उन्हें सफलता मिली और उनके साठ हजार पूर्वजों का उद्धार हुआ। यह भी पढ़ें : हमें जीवन का सच्चा सुख और आनंद की प्राप्ति कैसे होगी?
अब प्रश्न ये हैं कि राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे जिनका उद्धार माता गंगा द्वारा ही संभव था लेकिन राजा सगर, राजा अंशुमान, राजा दिलीप और महाराज भगीरथ ने सारे राजसी ठाठ बाट और ऐश्वर्य जंगलों में कठोर तपस्या क्यों की ?
पहली बात तो राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की आत्मा प्रेत योनि में इस भूलोक में विचरण कर रही थी और जब तक वो प्रेत योनि में रहते क्रोध और दुःख वश अपने कुल और परिवार को परेशान करते रहते। पितृ ऋण सिर्फ पिता का ही ऋण नहीं होता अपितु पूर्वजों के प्रति भी ऋण होता है। यह भी पढ़ें : धारा तो बह रही है श्री राधा नाम की हिंदी भजन
राजा सगर तो पिता एवम् अंशुमान उन साठ हजार के भाई थे, लेकिन राजा दिलीप और महाराज भगीरथ के वो साठ हजार पूर्वज थे, और पूर्वजों की की मुक्ति मनुष्य का कर्तव्य होता है। राजा सगर पिता व राजा अंशुमान उन साठ हजार के भाई थे ।
अगर इन्होने उनकी मुक्ति का प्रयास नहीं किया होता तो मृत्यु पश्चात इन्हे पितृ लोक में अपने पूर्वजों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता और वहां ना तो अपने पूर्वजों का सानिध्य मिलता और ना ही उनका आशिर्वाद। यह भी पढ़ें : हम सिर्फ अपनी जीवन शैली पर ध्यान दें
अगर इन साठ हजार की मुक्ति न हुई होती तो ये प्रेत योनि में रहकर अपनी कुल को परेशान करते और इनकी दुर्दशा देखकर राजा सगर के पूर्व पूर्वज आने वाली पीढ़ी से रूष्ट रहते जो की पितृ दोष का कारण बनता और आने वाली पीढ़ी के पतन का कारण भी बनता।
लक्ष्मण जी और रावण पुत्र मेघनाथ का युद्ध चल रहा था, जब मेघनाथ की सारी माया विफल हो गई तब उसने शक्ति बाण का प्रयोग किया जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लेकर आये, जिससे लक्ष्मण जी की मूर्छा दूर हुई और वो युद्ध के तैयार हुए। यह भी पढ़ें : वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है
लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटने की खबर जानकर मेघनाथ अपनी कुलदेवी निकुम्बला माता के मंदिर में यज्ञ करने चल दिया, यज्ञ सफल होने पर मेघनाथ को ब्रम्हशिर महाअस्त्र तथा एक ऐसा रथ मिलता जिसपर सवार होने पर उसे कोई भी पराजित नहीं कर पाता। यह बात विभीषण को पता चली तो उन्होने यह रहस्य भगवान श्री राम को बताया।
भगवान श्री राम ने लक्षमण जी को हनुमान जी के साथ मेघनाथ से युद्ध करने के लिए भेजा, हनुमान जी ने मेघनाथ का यज्ञ भंग कर दिया और मेघनाथ का वध लक्ष्मण जी द्वारा संभव हुआ। यह भी पढ़ें : चौरासी लाख योनियों में क्या क्या जन्म मिलता है
अब सवाल ये हैं की ब्रह्म, विष्णु और महेश तथा सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती ये अंतिम और परम शक्ति है फिर भी मेघनाथ इनकी शरण में क्यों नहीं गया.? क्यों गया अपने कुलदेवी माता निकुंबला की शरण में ? ! जिस कुलदेवी का शायद ही किसी ने नाम सुना है ?
आजकल कुंडली देखने वाले ज्यादातर ज्योतिषी और दिखाने वाले भी सभी बस कुण्डली के पीछे ही भागते हैं, कभी भी कुल देवी-देवता की स्थिति के बारे में नहीं पूछते और न ही परिवार में हुई अकाल मृत्यु के बारे में और न ही जातक बताते हैं।
जब तक कुलदेवी-देवता नाराज हैं या उनका सही पूजा-पाठ नहीं हो रहा है और परिवार में हुए अकाल मृत्यु का समाधान नहीं हुआ है, तब कुंडली में कितना भी बड़ा राजयोग हो फिर भी जीवन में परेशानी आएगी ही। और कितना भी कुंडली का उपाय किया जाय फिर इच्छित परिणाम नहीं मिलेगा। यह भी पढ़ें : बिहारी जी मंदिर में पर्दा बार-बार क्यों खींचा और गिराया जाता है।
यदि कुलदेवी सक्रिय हैं, उनकी रोज पूजा-पाठ की जा रही है, तथा अगर परिवार में अकाल मृत्यु हुई हो और उसका समाधान किया गया हो, तो कुंडली में दुर्योग भी उपाय से आसानी से कम हो जाते हैं। अगर कुलदेवी सक्रिय हैं तो जीवन में सभी समस्याओं का हल निकालने में मार्गदर्शन करती हैं और प्रगति का रास्ता भी दिखाती हैं।
कुलदेवी और ईष्ट देवता को साध लिया जाए तो जीवन के आधे समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। इसलिए कुंडली देखने-दिखाने से पहले कुल देवी-देवता की स्थिति जरूर देखें और साथ ही घर में हुए अकाल मृत्यु कि भी स्थिति जरूर देखें, इसके बाद ही कुंडली देखने के लिए आगे बढ़ें।
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में हिंदी लिरिक्स
- जिसकी लागी रे लगन भगवान में – भजन लिरिक्स | Jiski Lagi Re Laganजिसकी लागी रे लगन भगवान में – भजन लिरिक्स | Jiski Lagi Re Lagan जिसकी लागी रे लगन भगवान में हिंदी लिरिक्स जिसकी लागी रे लगन भगवान में,उसका दीया रे जलेगा तूफान में। जिसकी लागी रे लगन भगवान में,उसका दीया रे जलेगा तूफान में।जिसकी लागी रे लगन भगवान में,उसका दीया रे जलेगा तूफान में।। तेरे… Read more: जिसकी लागी रे लगन भगवान में – भजन लिरिक्स | Jiski Lagi Re Lagan
- श्री राम और माता सीता द्वारा कराया श्राद्ध-गरूड़ पुराणश्री राम और माता सीता द्वारा कराया श्राद्ध-गरूड़ पुराण श्री राम और माता सीता द्वारा कराया श्राद्ध-गरूड़ पुराण: श्रद्धा में पितृगण साक्षात प्रकट होते हैं और वे श्राद्ध का भोजन करने वाले ब्राह्मणों में उपस्थित रहते हैं। पक्षीराज गरुड़ ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा – हे प्रभु ! पृथ्वी पर लोग अपने मृत पितरों का… Read more: श्री राम और माता सीता द्वारा कराया श्राद्ध-गरूड़ पुराण
भक्ति ज्ञान (bhaktigyaan.com) हिंदी भजनों को समर्पित एक वेबसाइट है। इसके माध्यम से हम कई तरह के भजन साझा करते हैं। इसके साथ ही हम नियमित रूप से आध्यात्मिक, भक्ति और अन्य ज्ञान भी साझा करते हैं।