माँ बगलामुखी का परिचय एवं साधना विधि

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माँ बगलामुखी का परिचय एवं साधना विधि

माँ बगलामुखी का परिचय एवं साधना विधि : हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिसके कारण संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान श्री विष्णु चिंतित हो गए।

भगवान श्री विष्णु इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव ने कहा शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएं। तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से देवी शक्ति प्रकट हुईं।

उनकी साधना से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज से ब्रह्मांडीय तूफान थमा। उस समय रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूका।

देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं। इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।

बगलामुखी माँ की साधना करने के लिए सबसे पहले एकाक्षरी मंत्र ह्ल्रीं की दीक्षा अपने गुरुदेव के मुख से प्राप्त करें। एकाक्षरी मंत्र के एक लाख दस हजार जप करने के पश्चात क्रमशः चतुराक्षरी, अष्टाक्षरी , उन्नीसाक्षरी, छत्तीसाक्षरी (मूल मंत्र) आदि मंत्रो की दीक्षा अपने गुरुदेव से प्राप्त करें एवं गुरु आदेश अनुसार मंत्रो का जाप संपूर्ण करें।यदि आपने यह साधना पूर्ण कर ली तो इस संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते।


माँ बगलामुखी का परिचय :

माँ बगलामुखी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है।

इनके भैरव महाकाल हैं। माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है, देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है, अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।

देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं, संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है, इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।

माँ के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है, बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं, रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं, देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं, देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है।

बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है, पीताम्बरा की उपासना से मुकदमा में विजयी प्राप्त होती है। शत्रु पराजित होते हैं। रोगों का नाश होता है। साधकों को वाकसिद्धि हो जाती है। इन्हें पीले रंग का फूल, बेसन एवं घी का प्रसाद, केला, रात रानी फूल विशेष प्रिय है। पीताम्बरा का प्रसिद्ध मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया और नलखेडा (जिला-शाजापुर) और आसाम के कामाख्या में है।

माँ बगला शक्ति कोई तामसिक शक्ति नहीं है, बल्कि आभिचारिक कृत्यों से रक्षा ही इसकी प्रधानता है। इस संसार में जितने भी तरह के दुःख और उत्पात हैं, उनसे रक्षा के लिए इसी शक्ति की उपासना करना श्रेष्ठ होता है। शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिन संहिता के पाँचवें अध्याय की 23, 24 एवं 25वीं कण्डिकाओं में अभिचारकर्म की निवृत्ति में श्री बगलामुखी को ही सर्वोत्तम बताया है।

शत्रु विनाश के लिए जो कृत्या विशेष को भूमि में गाड़ देते हैं, उन्हें नष्ट करने वाली महा-शक्ति श्री बगलामुखी ही है।
त्रयीसिद्ध विद्याओं में आपका पहला स्थान है। आवश्यकता में शुचि-अशुचि अवस्था में भी इसके प्रयोग का सहारा लेना पड़े तो शुद्धमन से स्मरण करने पर भगवती सहायता करती है। लक्ष्मी-प्राप्ति व शत्रुनाश उभय कामना मंत्रों का प्रयोग भी सफलता से किया जा सकता है।

देवी को वीर-रात्रि भी कहा जाता है, क्योंकि देवी स्वम् ब्रह्मास्त्र-रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र-महारुद्र तथा मृत्युञ्जय-महादेव कहा जाता है, इसीलिए देवी सिद्ध-विद्या कहा जाता है। विष्णु भगवान् श्री कूर्म हैं तथा ये मंगल ग्रह से सम्बन्धित मानी गयी हैं। शत्रु व राजकीय विवाद, मुकदमे में विद्या शीघ्र-सिद्धि-प्रदा है । शत्रु के द्वारा कृत्या अभिचार किया गया हो, प्रेतादिक उपद्रव हो, तो उक्त विद्या का प्रयोग करना चाहिये।


सामान्य बगलामुखी मंत्र :

ऊँ ह्ली° बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्ली° ओम् स्वाहा।

माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है, यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं, मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है, बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए, देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली है।


श्री सिद्ध बगलामुखी देवी महामंत्र :

ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:।

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे-

  1. मधु, शर्करा युक्त तिलों से होम करने पर मनुष्य वश में होते है।
  2. मधु, घृत तथा शर्करा युक्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है।
  3. तेल युक्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वेषण होता है।
  4. हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।

माँ बगलामुखी पूजन :

साधना से पहले माँ बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए इस प्रकार पूजन करें :

माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, साधना अकेले में मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए, पूजा करने के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें, इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं।

आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें, इस पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है, मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें।


संकल्प :

ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय (यहाँ कामना अनुसार संकल्प बोलना चाहिए) बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।

माँ बगलामुखी मंत्र विनियोग :

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

इसके पश्चात बगलामुखी आवाहन करना चाहिए।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

अब इस प्रकार देवी का ध्यान करें।

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें।

गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।

इसके बाद गंध, चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें।

तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें।

नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।

आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें।

गंध – ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।

पुष्प – ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं।

धूप – ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।

दीप – ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।

नैवेद्य – ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।

अब इस प्रकार प्रार्थना करें।

जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।


बगला उपासना मे उपयोगी कुल्कुलादि साधना :

बगला उपासना व दश महाविद्याओं में मंत्र जाग्रति हेतु शापोद्धार मंत्र, सेतु, महासेतु, कुल्कुलादि मंत्र का जप करना जरुरी है। अतः उनकी संक्षिप्त जानकारी व अन्य विषय साधकों के लिये आवश्यक है।

नाम : बगलामुखी, पीताम्बरा, ब्रह्मास्त्र विद्या ।
आम्नाय : मुख आम्नाय दक्षिणाम्नाय हैं इसके उत्तर, ऊर्ध्व व उभयाम्नाय मंत्र भी हैं।
आचार : इस विद्या का वामाचार क्रम मुख्य है, दक्षिणाचार भी है।
कुल : यह श्रीकुल की अंग-विद्या है।
शिव : इस विद्या के त्र्यंबक शिव हैं।
भैरव : आनन्द भैरव हैं। कई विद्वान आनन्द भैरव को प्रमुख शिव व त्र्यंबक को भैरव बताते हैं।
गणेश : इस विद्या के हरिद्रा-गणपति मुख्य गणेश हैं। स्वर्णाकर्षण भैरव का प्रयोग भी उपयुक्त है।

यक्षिणी : विडालिका यक्षिणी का मेरु-तंत्र में विधान है। प्रयोग हेतु अंग-विद्यायें -मृत्युञ्जय, बटुक, आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, पार्जन्यास्त्र, संमोहनास्त्र, पाशुपतास्त्र, कुल्लुका, तारा स्वप्नेश्वरी, वाराही मंत्र की उपासना करनी चाहिये।

कुल्लुका : “ॐ क्ष्रौं” अथवा “ॐ हूँ क्षौं” शिर में 10 बार जप करना।
सेतु : कण्ठ में 10 बार “ह्रीं” मंत्र का जप करें।
महासेतु : “स्त्रीं” इसका हृदय में 10 बार जप करें।
निर्वाण : हूं, ह्रीं श्रीं से संपुटित करे एवं मंत्र जप करें। दीपन पुरश्चरण आदि में “ईं” से सम्पुटित मंत्र का जप करें।
जीवन : मूल मंत्र के अंत में ” ह्रीं ओं स्वाहा” 10 बार जपें। नित्य आवश्यक नहीं है।
मुख-शोधन : “हं ह्रीं ऐं” मुख में 10 बार मंत्र जप करें।
शापोद्धार : “ॐ ह्लीं बगले रुद्रशायं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा” 10 बार जपें।
उत्कीलन : “ॐ ह्लीं स्वाहा” मंत्र के आदि में 10 बार जपें।


बगलामुखी एकाक्षरी मंत्र :

|| ॐ ह्लीं ॐ ||

‘’ ह्लीं ‘’ को स्थिर माया कहते हैं। यह मंत्र दक्षिण आम्नाय का है। दक्षिणाम्नाय में बगलामुखी के दो भुजायें हैं। अन्य बीज “ह्रीं” का उल्लेख भी बगलामुखी के मंत्रों में आता है, इसे “भुवन-माया” भी कहते हैं। चतुर्भुज रुप में यह विद्या विपरीत गायत्री (ब्रह्मास्त्र विद्या) बन जाती है। ह्रीं बीज-युक्त अथवा चतुर्भुज ध्यान में बगलामुखी उत्तराम्नाय या उर्ध्वाम्नायात्मिका होती है। ह्ल्रीं बीज का उल्लेख 36 अक्षर मंत्र में होता है ।

(सांख्यायन तन्त्र)

विनियोग : ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, लं बीजं, ह्रीं शक्तिः ईं कीलकं,सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास : ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, लं बीजाय नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः पादयो, ईं कीलकाय नमः नाभौ, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

षडङ्ग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास :

ह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
ह्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
ह्लूं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
ह्लैं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं
ह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्लः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्।

ध्यान : हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करें –

वादीभूकति रंकति क्षिति-पतिः वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति ।
गर्वी खर्वति सर्व-विच्च जड़ति त्वद्यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्रीनित्ये ! बगलामुखि ! प्रतिदिनं कल्याणि ! तुभ्यं नमः ।।

एक लाख जप कर, पीत-पुष्पों से हवन करे, गुड़ोदक से दशांश तर्पण करें।

विशेष : “श्रीबगलामुखी-रहस्यं” में शक्ति ‘हूं’ बतलाई गई है तथा ध्यान में पाठन्तर है – ‘शान्तति’ के स्थान पर ‘शाम्यति’।


अब क्षमा प्रार्थना करें।

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।

अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।


बगलामुखी साधना की सावधानियां :

मंत्र महोदधि में बगलामुखी साधना के बारे में विस्तार से दिया हुआ है। साधना में सावधानियां बगलामुखी तंत्र के विषय में बतलाया गया है –

बगलासर्वसिद्धिदा सर्वाकामना वाप्नुयात’

अर्थात बगलामुखी देवी का स्तवन पूजा करने वालों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। ‘सत्ये काली च’ अर्थात बगला शक्ति को त्रिशक्तिरूपिणी माना गया है। वस्तुतः बगलामुखी की साधना में साधक भय से मुक्त हो जाता है। किंतु बगलामुखी की साधना में कुछ विशेष सावधानियां बरतना अनिवार्य है जो इस प्रकार हैं। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

साधना क्रम में स्त्री का स्पर्श या चर्चा नहीं करनी चाहिए। साधना डरपोक या बच्चों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक को कभी-कभी भयभीत भी करती हैं। अतः दृढ़ इच्छा और संकल्प शक्ति वाले साधक ही साधना करें। साधना आरंभ करने से पूर्व गुरु का ध्यान और पूजा अनिवार्य है। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं। इक दिन वो भोले भंडारी हिंदी लिरिक्स

अतः साधना से पूर्व महामृत्यंजय का कम से कम एक माला जप अवश्य करें। वस्त्र, आसन आदि पीले होने चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह कर के ही करें। मंत्र जप हल्दी की माला से करें। जप के बाद माला गले में धारण करें। ध्यान रखें, साधना कक्ष में कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न करे, न ही कोई माला का स्पर्श करे। साधना रात्रि के 8.00 से भोर 3.00 बजे के बीच ही करें।

मंत्र जप की संख्या अपनी क्षमतानुसार निश्चित करें, फिर उससे न तो कम न ही अधिक जप करें। मंत्र जप 16 दिन में पूरा हो जाना चाहिए। मंत्र जप के लिए शुक्ल पक्ष या नवरात्रि सर्वश्रेष्ठ समय है। मंत्र जप से पहले संकल्प हेतु जल हाथ में लेकर अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से बोल कर व्यक्त करें। साधना काल में इसकी चर्चा किसी से न करें। साधना काल में अपने बायीं ओर तेल का तथा अपने दायीं ओर घी का अखंड दीपक जलाएं। क्यों हुआ था बाली और हनुमान जी के बीच युद्ध।

उपासना विधि :- किसी भी शुभ मुहूर्त में सोने, चांदी, या तांबे के पत्र पर माँ बगलामुखी के यंत्र की रचना करें। यंत्र यथासंभव उभरे हुए रेखांकन में हो। इस यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर नियमित रूप से पूजा करें। इस यंत्र को रविपुष्य या गुरुपुष्य योग में मां बगलामुखी के चित्र के साथ स्थापित करें। फिर सब से पहले माता का ध्यान कर विनियोग करें गणेशजी का पूजन, संकल्प, गुरुजी का पूजन, पंचदेवता पूजन, भैरव पूजन, भूतशुद्धि, कलशस्थापन प्राणप्रतिस्ठा, पीठमातृका न्यास, पीठपूजन करें।

  1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक आवश्यक है।
  2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है।
  3. किसी डरपोक व्यक्ति या बच्चे के साथ यह साधना नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी साधना के दौरान साधक को डराती भी है। साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतों से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए।
  4. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए।
  5. मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें। बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है।
  6. उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करें।
  7. मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करें।
  8. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें।
  9. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं।
  10. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए।
  11. मन्त्र ज्ञात ब्राह्मण सज्जन देवी के पूजन में वैदिक मंत्रों का ही प्रयोग करें।

यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। सामने वाले विरोधियों को शांत करने में इस विद्या का अनेक राजनेता अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं।

यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो देशहित होगा। मंत्र शक्ति का चमत्कार हजारों साल से होता आ रहा है। कोई भी मंत्र आबध या किलित नहीं है यानी बँधे हुए नहीं हैं। सभी मंत्र अपना कार्य करने में सक्षम हैं। मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मंत्र निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।

हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली माँ बगलामुखी की आराधना का सही प्रस्तुतीकरण दे रहे हैं। हमारे पाठक इसका प्रयोग कर लाभ उठाने में समर्थ होंगे।


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