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मधु कैटभ कौन थे क्या आप जानते हैं

मधु कैटभ कौन थे क्या आप जानते हैं

मधु कैटभ की उत्पत्ति :

प्राचीन समय की बात है चारों ओर जल ही जल था l केवल भगवान विष्णु

शेषनाग की सैय्या पर सोए हुए थे, तभी उनके कान की मैल से मधु और कैटभ नाम के दो महापराक्रमी दानव उत्पन्न हुए l वे सोचने लगे कि हमारी उत्पत्ति का कारण क्या है l

कैटभ ने मधु कहा इस जल में हमारी सत्ता को बनाए रखने वाली भगवती महाशक्ति ही है, उनमें अपार बल है l उन्होंने ही इस जलतत्व की रचना की है. वे ही परम आराध्या शक्ति हमारी उत्पत्ति का कारण है l इतने में ही आकाश में गूँजता हुआ “वाग्बीज” सुनाई पड़ा l

तप मधु कैटभ द्वारा :

उन दोनों ने सोचा कि यही भगवती का महामंत्र है ,अब वे उसी मंत्र का ध्यान और जब करने लगे, अन्न और जल का त्याग करके उन्होंने 1000 वर्ष तक बड़ी कठिन तपस्या की l भगवती महाशक्ति उन पर प्रसन्न हो गई l राम कहानी सुनो रे राम कहानी हिंदी भजन लिरिक्स

अंत में आकाशवाणी हुई- दैत्यों ! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं l इच्छानुसार वर मांगो l आकाशवाणी को सुनकर मधु कैटभ ने कहा ‘सुंदर व्रत का पालन करने वाली देवी ! तुम हमें स्वेच्छा मरण का वरदान देने की कृपा करो l’ देवी ने कहा – “दैत्यों ! मेरी कृपा से इच्छा करने पर ही मृत्यु तुम्हें मार सकेगी l

देवता और दानव कोई भी तुम दोनों भाइयों को पराजित नहीं कर सकेंगे ” देवी के वर देने पर मधु और कैटभ अत्यंत अभिमान हो गया l वे समुद्र में जलचर जीवो के साथ क्रीड़ा करने लगे l एक दिन अचानक प्रजापति ब्रह्मा पर उनकी दृष्टि पड़ी l ब्रह्मा जी कमल के आसन पर विराजमान थे, उन दैत्यों ने ब्रह्मा जी से कहा – सुब्रत ! तुम हमारे साथ युद्ध करो, यदि लड़ना नहीं चाहते हो तो इसी क्षण यहां से चले जाओ l

क्योंकि यदि तुम्हारे अंदर शक्ति नहीं है तो इस उत्तम आसन पर बैठने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है मधु कैटभ की बात सुनकर ब्रह्मा जी को अत्यंत चिंता हुई l उनका सारा समय तप में बीता था तथा युद्ध करना उनके स्वभाव के प्रतिकूल था l

ब्रह्मा जी भयभीत होकर भगवान विष्णु की शरण में गए , उस समय भगवान विष्णु योग निंद्रा में निमग्न थे l

ब्रह्मा जी द्वारा भगवती की स्तुति करना

ब्रह्मा जी के बहुत प्रयास करने पर भी उनकी निद्रा नहीं टूटी, अंत में उन्होंने भगवती योगनिद्रा की स्तुति करते हुए कहा – भगवती ! मैं मधु और कैटभ के भय से भयभीत होकर आपकी शरण में आया हूं l भगवान विष्णु तुम्हारी माया से अचेत पडे हैं l

तुम संपूर्ण जगत की माता हो l सभी का मनोरथ पूर्ण करना आपका स्वभाव है l तुमने ही मुझे जगतसृष्टा बनाया है l

यदि मैं दैत्यों के हाथ से मारा गया तो आपकी बड़ी अपकीर्ति होगी, अत: तुम भगवान विष्णु को जगा कर मेरी रक्षा करो l

भगवान विष्णु का मधु कैटभ के साथ युद्ध

ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर भगवती भगवान विष्णु के नेत्र, नासिका, बाहु और हृदय से निकलकर आकाश में स्थित हो गयीं। और भगवान उठ कर बैठ गए l

तदन्तर उनका उनका मधु और कैटभ से 5000 वर्षों तक घोर युद्ध हुआ, फिर भी उन्हें परास्त करने में असफल रहे l विचार करने पर भगवान को ज्ञात हुआ कि इन दोनों को भगवती ने इच्छा मृत्यु का वर दिया है,

भगवती की कृपा के बिना इनको मारना असंभव है l इतने में ही भगवती योगनिद्रा के दर्शन हुए , भगवान ने रहस्य पूर्ण शब्दों में भगवती की स्तुति की l भगवती ने प्रसन्न होकर कहा – “विष्णु ! तुम देवताओं के स्वामी हो l

मैं इन दैत्यों को माया से मोहित कर दूंगी , तब तुम इन्हें मार डालना” l

भगवान विष्णु द्वारा मधु कैटभ का संहार :

भगवती का अभिप्राय समझकर भगवान ने दैत्यों से कहा कि तुम दोनों के युद्ध से मैं परम प्रसन्न हूं l अत: मुझसे इच्छानुसार वर मांगो l दैत्य भगवती की माया से मोहित हो चुके थे l उन्होंने कहा- “विष्णुो” ! हम याचक नहीं है, दाता है l

तुम्हें जो मांगना हो हमसे प्रार्थना करो l हम देने के लिए तैयार हैं l ‘भगवान बोले – यदि देना ही चाहते हो तो मेरे हाथों से मृत्यु स्वीकार करो’ l राधा साध्यम साधनं यस्य राधा मंत्र हिंदी लिरिक्स

भगवती की कृपा से मोहित होकर मधु कैटभ अपनी ही बातों से ठगे गए l भगवान विष्णु ने दैत्यों के मस्तकों को अपने जाघों पर रखकर सुदर्शन चक्र से काट डाला l इस प्रकार मधु कैटभ का अंत हुआ l

अन्य मतों के अनुसार मधु-कैटभ असुरों के पूर्वज, पुराण प्रसिद्ध राक्षसद्य्य , इनकी उत्पत्ति कल्पांत तक सोते हुए श्री विष्णु के कानों के मल अथवा पसीने या क्रमशा: रजोगुण और तमोगुण से हुई थी l

जब यह दोनों ब्रह्मा जी को मारने लगे तो विष्णु जी ने इन का वध कर दिया तभी से श्री विष्णु “मधुसूदन”और “कैटभजित” कहलाए l


मधु कैटभ कौन थे

ब्रह्मा आकाश में ओम रुप में व्याप्त है

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