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महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते

महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत के ज्यादातर पात्र किसी ना किसी श्राप में फंसे हुए थे। अगर ये श्राप न दिए होते तो शायद आज महाभारत की कहानी कुछ और ही होती। अगर देखा जाए तो हिंदू पौराणिक ग्रंथों में अनेकों श्रापों का वर्णन मिलता है । और हर श्रापों के पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है।

आज हम आपको महाभारत में उल्लेखित किये गए 10 ऐसे प्रसिद्ध श्रापों और उनके पीछे की कहानी के बारे में बताया गया है।

  1. राजा पांडु को ऋषि किंदम का श्राप:

महाभारत ग्रन्थ के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के एक सुन्दर जोड़े को मैथुन करते देखा। और उन पर बाण चला दिया। पर वास्तव में वह हिरन व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी।

तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दे दिया कि जब भी वो किसी स्त्री के साथ संभोग करेंगे उसी समय उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसी श्राप के कारण जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ संभोग कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।

2. यमराज को माण्डव्य ऋषि का श्राप:

महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले तो राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांग कर उन्हें छोड़ दिया।

तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे तब आपने एक पतंगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरुप आपको यह कष्ट सहना पड़ा।

तब ऋषि ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी भी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तो तुमने छोटे अपराध का बड़ा दंड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं। कि तुम्हें सूद्र योनि में एक दासी के पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।

3. कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप:

महापुराण महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थी। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुण की। एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि यह घोड़ा पूरी तरह सफेद है। और कद्रू ने कहा घोड़ा तो सफेद है, लेकिन इसकी पूंछ काली है।

कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ। जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊंगी। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जन्मेजय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।

4. उर्वशी का अर्जुन को श्राप:

महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया तो यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया। कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो। इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे।

तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।

5. परशुराम का कर्ण को श्राप:

धार्मिक ग्रन्थ महाभारत के अनुसार सूर्य पुत्र कर्ण परशुराम जी के शिष्य थे। कर्ण ने अपना परिचय एक सूत पुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम जी कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया, गुरु की नींद में विघ्न न आए यह सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे लेकिन उन्होंने परशुराम जी को नींद से नहीं उठाया।

जब परशुराम जी नींद से जागे, तो वे समझ गए कि कर्ण सूत पुत्र नहीं बल्कि एक क्षत्रिय योद्धा है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी द्वारा सिखाई हुई शस्त्र विद्या कि जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी । उस समय शस्त्र विद्या भूल जाओगे।

6. युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप:

महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था। तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया।

तब माता कुंती ने पांडवों को कर्ण का रहस्य बताया । तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दे दिया कि “आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छुपा कर नहीं रख सकेगी”

7. महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप:

महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। ऋषि वशिष्ठ को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया की तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा। और आठों वसुओं को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे।

8. श्री कृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप:

महाभारत युद्ध के अंत में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पांडव पुत्रों का वध कर दिया। तब पांचो पांडव भगवान श्री कृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। जब अश्वत्थामा ने पांडवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया तो यह देखकर अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया।

महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा।तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया किंतु अश्वत्थामा यह विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदल कर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।

यह देख भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम 3000 वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे। और किसी भी जगह किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीव और लहू की गंध निकलेगी इसीलिए तुम मनुष्य के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।

9. भगवान श्री कृष्ण को गांधारी का श्राप:

कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया कि जिस प्रकार के कौरवों के वंश का नाश हुआ है। ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी विनाश होगा। गांधारी के श्राप से विनाश काल आने के कारण श्री कृष्ण द्वारका लौटकर यदुवंशियों को लेकर प्रयास क्षेत्र में आ गए थे। यदुवंशी अपने साथ अन्न-वस्त्र भंडार भी ले आए थे।

कृष्ण ने ब्राह्मणों को अन्नदान देकर यदुवंशियों को मृत्यु का इंतजार करने का आदेश दिया था। कुछ दिनों बाद महाभारत युद्ध की चर्चा करते हुए सात्यकि और कृतवर्मा में विवाद हो गया। सात्यकि ने गुस्से में आकर कृतवर्मा का सिर काट दिया।

इससे उनमें आपसी युद्ध होने लगा और वे समहूों में विभाजित होकर एक-दूसरे का संहार करने लगे। इस लड़ाई में श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकि समेत सभी युदुवंशी मारे गये थे। केवल बब्रु और दारुक ही बचे रह गये थे।

10. भीष्म को अंबा का श्राप:

हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह काशी में हो रहे विवाह स्वयंवर से काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए थे।उनमे से अंबा ने रास्ते में भीष्म को बताया कि मन ही मन किसी और का अपना पति मान चुकी है। तब भीष्म पितामह ने उसे ससम्मान छोड़ दिया। लेकिन हरण कर लिए जाने पर शाल्व जिनसे वो प्रेम करती थीं।

उसने अंबा को अस्वीकार कर दिया। तब अंबा भीष्म पितामह के गुरु परशुराम के पास पहुंची और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। अंबा की बात सुनकर भगवान परशुराम ने भीष्म पितामह को उससे विवाह करने के लिए कहा ! लेकिन ब्रह्मचारी होने के कारण भीष्म ने ऐसा करने से इंकार कर दिया।

तब परशुराम और भीष्म में भीषण युद्ध हुआ। और अंत में अपने पितरों की बात मानकर भगवान परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।

अंबा ने भीष्म पितामह को श्राप दिया कि तुम्हारी मृत्यु का कारण मैं ही बनूंगी। फिर अगले जन्म में अंबा ने राजा द्रुपद के घर शिखंडी के रूप में जन्म लिया और भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बनी।

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