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मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा और यह कैसे प्राप्त होता है

मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा और यह कैसे प्राप्त होता है

मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा और यह कैसे प्राप्त होता है

गरुड़ जी ने कहा – हे दयासिंधु ! अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरण रूपी संसारचक्र में पड़ता है I यह मैंने सुना है, अब मैं मोक्ष के सनातन उपाय को सुनना चाहता हूँ I ! हे भगवान, हे देवदेवेश्वर ! हे शरणागतवत्सल ! सभी प्रकार के दुखों से मलीन तथा सार रहित इस भयावह संसार में अनेक प्रकार के शरीर धारण करके अनंत जीव राशियां उत्पन्न होती हैं, और मरती हैं I

उनका कोई अंत नहीं ये सभी सदा दु:ख से पीड़ित रहते हैं, इन्हें कहीं सुख नहीं प्राप्त होता है I ! हे प्रभु ! किस उपाय करने से इन्हें संसृति चक्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है, कृपया आप मुझे बतायें I

श्री भगवान ने कहा हे ताक्षर्य ! तुम इस विषय में मुझसे जो पूछते हो, मैं बतलाता हूं सुनो, जिसके सुनने मात्र से मनुष्य संसार से मुक्त हो जाता है I मैं परब्रह्म परमात्मा निष्कल (कलारहित), परब्रह्मस्वरूप, शिवस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वकर्ता, सर्वेश्वर, निर्मल, तथा अद्वय (द्वैतभावरहित) है I दुनिया रचने वाले को भगवान कहते हैं लिरिक्स

वह (परमात्मा) स्वत:प्रकाश है, अनादि, अनंत, निर्विकार, परात्पर, निर्गुण और सत-चित आनंदस्वरूप है I यह जीव उसीका अंश है I जैसे अग्नि से बहुत से स्फुलिंग (चिंगारियां) निकलते हैं I उसी प्रकार अनादिकालीन अविद्या से युक्त होने के कारण अनादि काल से किए जाने वाले कर्मों के परिणाम स्वरूप देहादि उपाधिको धारण करके जीव भगवान से पृथक हो गए हैं I

वे जीव प्रत्येक जन्म में पुण्य और पापरूप सुख-दुख प्रदान करने वाले कर्मों से नियंत्रित होकर तत्तत जाति के योग से देह (शरीर), आयु और कर्मानुरोधी भोग प्राप्त करते हैं I

हे खग ! इसके पश्चात भी पुनः वे अत्यंत सूक्ष्म लिंगशरीर प्राप्त करते हैं I और यह क्रम मोक्षपर्यंत स्थित रहता है I यह जीव कभी स्थावर (वृक्ष-लतादि जड़) योनियों में, पुनः कृमियोनियों में तंदतर जलचर, पक्षी और पशु पशु योनियों को प्राप्त करते हुए मनुष्य योनि प्राप्त करते हैं I

फिर धार्मिक मनुष्य में रूप में पुनः देवता तथा देवयोनि पश्चात क्रमश: मोक्ष प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं I

उद्भिज, अण्डज, स्वदेज और पिण्डज (जरायुज)- इन चार प्रकार के शरीरों को सहस्त्रों बार धारण करके उनसे मुक्त होकर सुकृतवश (पुण्यप्रभाव से) जीव मनुष्य- शरीर प्राप्त करता है I और यदि वह ज्ञानी हो जाए तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है II

अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम हिंदी लिरिक्स

जीवो की चौरासी लाख योनियों मैं मनुष्य योनि के अतिरिक्त अन्य किसी भी योनि में तत्वज्ञान प्राप्त नहीं होता I पूर्वोक्त विभिन्न योनियों में हजारों -हजार करोड़ों बार जन्म लेने के अनंतर उपार्जित पुण्यपुंज के कारण कदाचित मनुष्य योनि प्राप्त होती है I

मोक्षप्राप्ति के लिए सोपानभूत यह दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त करके इस संसृति चक्र से अपने को मुक्त नहीं कर लेता उससे अधिक पापी और कौन होगा I उत्तम मनुष्य शरीर में जन्म प्राप्त करके और समस्त सौष्ठवसंपन्न अविकल इंद्रियों को प्राप्त करके जो भी व्यक्ति अपने हित को नहीं जानता वह ब्रह्मघातक होता है I

शरीर के बिना कोई भी जीव पुरुषार्थ नहीं कर सकता I इसलिए शरीर और धन की रक्षा करता हुआ इन दोनों से पुण्यार्जन करना चाहिए I मनुष्य को सर्वदा अपने शरीर की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि शरीर सभी पुरुषार्थों का एकमात्र साधन है I इसलिए उसकी रक्षा का उपाय करना चाहिए I

जीवन धारण करने पर ही व्यक्ति अपने कल्याण को देख सकता है I गांव, क्षेत्र, धन, घर और शुभाशुभ कर्म पुनः पुनः प्राप्त हो सकते हैं I किंतु मनुष्य शरीर पुनः पुनः प्राप्त नहीं हो सकता I इसीलिए बुद्धिमान व्यक्ति सदा शरीर की रक्षा का उपाय करते हैं I कुष्ठ आदि के रोगी भी अपने शरीर को त्यागने की इच्छा नहीं करते I

शरीर की रक्षा धर्माचरण के उद्देश्य से और धर्माचरण ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से (उसी प्रकार) ज्ञान, ध्यान एवं योगकी सिद्धि के लिए और फिर ध्यानयोगसे मनुष्य अविलंब मोक्ष प्राप्त कर लेता है I

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