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नवधा भक्ति क्या है? | Navdha Bhakti Kya Hai? संक्षेप में

नवधा भक्ति क्या है? | Navdha Bhakti Kya Hai? संक्षेप में

नवधा भक्ति क्या है? | Navdha Bhakti Kya Hai? संक्षेप में : नवधा भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति नौ प्रकार की भक्ति करना। कहा जाता है कि इस भक्ति का सही तरीके से पालन करने से भक्त भगवान को प्राप्त कर सकता है। भगवान राम ने भक्ति के मार्ग में संदेह को दूर करने के लिए शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था और तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अरण्यकांड में इसका वर्णन किया है। रामायण क्या है? एक छोटा सा वृत्तांत है।

नवधा भक्ति में नौ प्रकार की भक्ति शामिल है:

1. श्रवण: भगवान की लीला, कथा, महत्व, शक्ति और स्रोत को पूरी श्रद्धा और ध्यान से सुनना।

2. कीर्तन: भगवान की महिमा का गान करना, उनकी वीरता को काव्य रूप में गाना और उन्हें प्रणाम करना।

3. स्मरण: निरंतर भगवान का ध्यान करना, जैसे प्रह्लाद ने किया।

4. पादसेवन: भगवान के चरणों की पूजा करना, जैसे लक्ष्मी माता ने किया।

5. अर्चन: भगवान की पूजा करना, जैसे पृथुराज ने किया।

6. वंदना: भगवान को नमस्कार करना, जैसा कि अक्रूर ने किया था।

7. दास्य: भगवान को अपना स्वामी मानकर उनके चरणों में नम्रतापूर्वक रहना और उनके नियमों का पालन करना, जैसा कि हनुमान ने किया था।

8. सख्य: भगवान को मित्र मानकर मित्रतापूर्वक सेवा करना, जैसा कि अर्जुन ने श्री कृष्ण को अपना मित्र मानकर किया था।

8. आत्मनिवेदन: अपने आप को सदैव के लिए भगवान के चरणों में समर्पित कर देना और कोई स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सर्वोत्तम अवस्था मानी जाती है। श्री राम भक्त हनुमान जी की अतुलित शक्तियों का राज

ये नौ प्रकार की भक्ति भक्तों को भगवान के साथ गहरा और सच्चा रिश्ता स्थापित करने में मदद करती है।

नवधा भक्ति से संबंधित प्रश्न नीचे दिए गए हैं

प्रश्न : नवधा भक्ति का अर्थ क्या है?

उत्तर : नवधा भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति नौ प्रकार की भक्ति या नौ विभिन्न तरीकों से भक्ति करना। मान्यता है कि नवधा भक्ति को सही तरीके से अपनाने पर भक्त परमात्मा की प्राप्ति कर सकता है। भक्ति मार्ग में उत्पन्न होने वाले संशयों को दूर करने के लिए भगवान श्रीराम ने स्वयं नवधा भक्ति का उपदेश दिया था।

प्रश्न : राम जी ने शबरी को भक्ति के पांच प्रकार बताए:

भक्ति के पांच प्रकार : संतों के सत्संग में रहना। मेरे कथा प्रसंगों में प्रेम और श्रद्धा रखना। गुरु के चरणों की सेवा बिना किसी अभिमान के करना। कपट को त्याग कर मेरे गुणों का गान करना। मेरे मंत्र का जाप और मुझमें अडिग विश्वास रखना, जो वेदों में प्रसिद्ध है।

प्रश्न : भक्ति की पहचान क्या है?

उत्तर : भक्ति प्रेमपूर्ण हृदय की गहन पुकार होती है, जिसमें सर्वस्व का समर्पण निहित है। यह तब पूर्ण होती है जब आत्म और आराध्य में कोई भेद न रहे, और यह अपने सम्पूर्ण सौंदर्य में प्रकट होती है। जहाँ भी यह गुण और भावना स्थायी रूप से विद्यमान होती है, वहीं सच्चा भक्त और परमात्मा दोनों मौजूद होते हैं।

    प्रश्न : नवधा भक्ति का संबंध किस भक्ति से है?

    उत्तर : सतयुग में प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकशिपु को बताया था और फिर त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने माता शबरी को नवधा भक्त के बारे में बताया था। ‘नवधा भक्ति’ का अर्थ है ‘नौ प्रकार से भक्ति’। नवधा भक्ति का वर्णन रामायण के रामचरितमानस के अरण्यकांड में मिलता है।

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