प्रभू ने भक्तमाली जी को लड्डू गोपाल के रूप में दर्शन दिए
प्रभू ने भक्तमाली जी को लड्डू गोपाल के रूप में दर्शन दिए-पण्ड़ित श्री जगन्नाथ प्रसाद जी भक्तमाली जी के भक्तिभाव के कारण वृंदावन के सभी संत उनसे बहुत प्रभावित थे और उनके ऊपर कृपा रखते थे। सन्तों की कौन कहे स्वयं श्रीकृष्ण उनसे आकृष्ट होकर जब किसी न किसी छल से उनके ऊपर कृपा कर जाया करते थे।
एक बार श्री जगन्नाथ प्रसाद जी भक्तमाली जी अपने घर में बैठे हारमोनियम पर भजन गा रहे थे। उसी समय एक बहुत ही सुन्दर बालक आकर उनके सामने बैठ गया, और तन्मय होकर भजन सुनने लगा। भक्तमाली जी ने बालक का श्रृंगार देखकर समझा कि वह किसी रास मण्डली का बालक है जो उनके भजन से आकृष्ट होकर चला आया है।
भक्तमाली जी ने भजन समाप्त करने के बाद बालक से पूछा -बेटा तुम कहाँ रहते हो ? बालक ने कहा – अक्रूर घाट पर भतरोड़ मन्दिर में रहता हूँ। भक्तमाली जी ने पूछा – बालक तुम्हारा नाम क्या है ? बालक ने कहा लड्डू गोपाल।
भक्तमाली जी – तो तुम लड्डू खाओगे या पेड़ा खाओगे ? उस समय भक्तमाली जी के पास लड्डू नहीं पेड़े ही थे इसलिए उन्होंने प्रकार पूछा। बालक ने भी हँसकर कहा – बाबा मैं तो पेड़ा खाऊँगा।
भक्तमाली जी ने बालक को पेडे लाकर दिये। वह बालक पेडे खाता हुआ और भक्तमाली जी की ओर हँसकर देखता हुआ चला गया। पर ठाकुर जी बालक के रूप मे जाते-जाते अपनी जादू भरी मुस्कान और चितवन की अपूर्व छवि भक्तमाली जी के ह्रदय पर अंकित कर गये। Please Read–राजा ने बुद्धिमान साधु को बनाया अपना सलाहकार
अब उस बालक की वह छवि भक्तमाली जी को सारा दिन और सारी रात व्यग्र किये रही। भक्तमाली जी के मन मे तरह तरह के विचार उठते रहे। ऐसा सुंदर बालक तो मैंने आज तक कभी नहीं देखा। वह रास मण्डली का बालक ही था या कोई और ?
घर मे ऐसे आकर बैठ गया जैसे यह घर उसी का हो कोई भय नहीं संकोच नहीं। छोटा सा बालक भजन तो ऐसे तन्मय होकर सुन रहा था जैसे उसे भजन में न जाने कितना रस मिल रहा हो। नहीं-नहीं वह कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। Please Read–एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री राधे हिंदी भजन
कहीं वे भक्तवत्सल भगवान ही तो नहीं थे जो नारद जी के प्रति कहे गये अपने इन वचनों को चरितार्थ करने आये थे :-
नाहं तिष्ठामि वैकुंठे योगिनां हृदयेषु वा।
तत्र तिष्ठामी नारद यत्र गायन्ति मद्भक्ताः।।
(पद्मपुराण)
हे नारद ! न तो मैं अपने निवास वैकुंठ में रहता हूँ, न योगियों के ह्रदय में रहता हूँ। मैं तो उस स्थान में वास करता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे पवित्र नाम का कीर्तन करते हैं और मेरे रूप, लीलाओं और गुणों की चर्चा करते हैं।
जो भी हो वह बालक अपना नाम और पता तो बता ही गया है कल उसकी खोज करनी होगी। भक्तमाली जी बालक के विषय मे तरह-तरह के विचार करते हुए सो गये।Please Read-मानव अपने सपन संजोए विधिना अपनी चाल चले
श्री जगन्नाथ प्रसाद जी भक्तमाली दूसरे दिन प्रातः होते ही भतरोड़ में अक्रुर मन्दिर पहुँचे। भक्तमाली जी ने वहां सेवारत पुजारी जी से पूछा – क्या यहाँ लड्डू गोपाल नाम का कोई बालक रहता हैं ? पुजारी जी ने कहा – लड्डू गोपाल तो हमारे मन्दिर के ठाकुर जी का नाम है। और यहाँ कोई बालक नहीं रहता।
यह सुनते ही भक्तमाल जी सिहर उठे, उनके नेत्र डबडबा आये। अपने आँसू पोंछते हुए उन्होंने पुजारी जी से कहा – कल एक बहुत खूबसूरत बालक मेरे पास आया था। उस बालक ने अपना नाम लड्डू गोपाल बताया था और निवास-स्थान अक्रुर मन्दिर। मैंने उसे पेड़े खाने को दिये थे, पेड़े खाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ था।
पुजारी जी कहीं आपके ठाकुर जी ने ही तो यह लीला नहीं की थी ? पुजारी जी ने कहा – भक्तमाली जी ! आप धन्य हैं। हमारे ठाकुर ने ही आप पर कृपा की, इसमें कोई सन्देह नहीं है। हमारे ठाकुर जी को पेड़े बहुत प्रिय हैं। कई दिन से मैं बाजार नहीं जा पाया था, इसलिए पेड़ों का भोग नहीं लगा सका था।
भक्तमाली जी ने मन्दिर के भीतर जाकर लड्डू गोपाल जी के दिव्य श्री विगृह के दर्शन किये। दण्डवत् प्रणाम् कर प्रार्थना की – हे ठाकुर जी इसी प्रकार अपनी कृपा बनाये रखना, बार-बार इसी आकर दर्शन देते रहना। Please Read-Garudaji Aur Kaakabhushundi-गरुड़जी और काकभुशुण्डि
पता नहीं भक्तमाली जी को फिर कभी लड्डू गोपाल ने उसी रूप में उनपर कृपा की या नहीं, लेकिन एक बार भक्तमाली जी अयोध्या गये थे। देर रात्रि में अयोध्या पहुँचे थे, इसलिए स्टेशन के बाहर खुले मे सो गये। प्रातः उठते ही किसी आवश्यक कार्य के लिए कहीं जाना था, पर सबेरा हो आया था उनकी नींद नहीं खुल रहीं थी।
लड्डू गोपाल जैसा ही एक सुन्दर बालक आया और उनके तलुओं में गुलगुली मचाते हुए बोला – बाबा उठो सबेरा हो गया जाना नहीं है क्या ? भक्तमाली जी हड़बड़ा कर उठे, उस बालक की एक ही झलक देख पाये थे कि वह बालक अदृश्य हो गया।
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