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पुण्यों का मोल क्या होता है

पुण्यों का मोल क्या होता है

दान से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है साथ ही जाने अनजाने में किए गए पाप कर्मों के फल भी नष्ट हो जाते हैं l

ईश्वर आपकी परीक्षा लेता है परीक्षा में वह सबसे ज्यादा आपके उसी गुण को परखता है जिस पर आपको गर्व हो अगर आप परीक्षा में खरे उतर जाते हैं तो ईश्वर वह गुण आप में हमेशा के लिए वरदान के रूप में दे देता है अगर परीक्षा में उत्तीर्ण ना हुए तो ईश्वर उस गुण के लिए योग्य किसी अन्य व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं इसलिए विपत्ति काल में भी भगवान पर भरोसा रख कर सही राह चलना चाहिए l

शास्त्रों में दान का विशेष महत्व बताया गया है इस पुण्य कर्म में समाज में समानता का भाव बना रहता है l जरूरतमंद व्यक्ति को भी जीवन के लिए उपयोगी चीजें प्राप्त हो पाती हैं l एक व्यापारी जितना अमीर था उतना ही दान पुण्य करने वाला था वह सदैव यज्ञ पूजा आदि कराता रहता था एक यज्ञ में उसने अपना सब कुछ दान कर दिया अब उसके पास परिवार चलाने लायक भी पैसे नहीं बचे थे l

व्यापारी की पत्नी ने सुझाव दिया कि पड़ोस के नगर में एक बड़े सेठ रहते हैं l वह दूसरों के पुण्य खरीदते हैं,आप भी उनके पास जाइए और अपने कुछ पुण्य बेचकर थोड़े पैसे ले आइए जिससे फिर से काम धंधा शुरू कर सकें,

पुण्य बेचने की व्यापारी की बिल्कुल इच्छा नहीं थी लेकिन पत्नी के दबाव और बच्चों की चिंता में पुण्य बेचने को तैयार हुआ, पत्नी ने रास्ते में खाने के लिए चार रोटियां बना कर दे दी थी, व्यापारी चलता चलता उस नगर के पास पहुंचा जहां पुण्य के खरीदार सेठ रहते थे l

उसे वहां भूख लगी थी नगर में प्रवेश करने से पहले उसने सोचा भोजन कर लिया जाए उसने जैसे ही रोटियां निकाली, एक कुत्तिया तुरंत जन्मे अपने तीन बच्चों के साथ आ खड़ी हुई, कुत्तिया ने बच्चे जंगल में जन्म दिए थे बारिश के दिन थे और बच्चे छोटे थे इसलिए उन्हें छोड़कर नगर में नहीं जा सकती थी l

व्यापारी को दया आ गई उसने एक रोटी कुत्तिया को खाने के लिए दे दिया कुत्तिया पलक झपकते रोटी चट कर गई लेकिन बह अब भी भूख से हाफ रही थी, व्यापारी ने दूसरी रोटी फिर तीसरी और फिर चारों रोटियां कुत्तिया को खिला दी, खुद केवल पानी पीकर सेठ के पास पहुंचा l

व्यापारी ने सेठ से कहा कि वह अपना पुण्य बेचने आया है सेठ बहुत व्यस्त था अपने कारोबार में, उसने कहा कि शाम को आ जाओ तब बात करते हैं, दोपहर में सेठ भोजन के लिए घर गया और उसने अपनी पत्नी को बताया कि एक व्यापारी अपने पुण्य बेचने आया है उसका कौन सा पुण्य खरीदू l

सेठ की पत्नी बहुत पतिव्रता और सिद्ध स्त्री थी उसने ध्यान लगाकर देख लिया कि आज व्यापारी ने कुत्तिया को रोटी खिलाई है, उसने अपने पति से कहा कि आज का पुण्य खरीदना जो उसने एक जानवर को रोटी खिलाकर कमाया है, वह अब तक का उसका सर्वश्रेष्ठ पुण्य है l
व्यापारी शाम को फिर अपना पुण्य बेचने आया, सेठ ने कहा आज आपने जो यज्ञ किया है, मैं उसका पुण्य लेना चाहता हूँ, व्यापारी हंसने लगा और उसने कहा कि अगर मेरे पास यदि यज्ञ के लिए पैसे होते तो क्या मैं आपके पास पुण्य बेचने आता l

सेठ ने कहा कि आज आपने किसी भूखे जानवर को भोजन कराकर उसके और उसके बच्चों के प्राणों की रक्षा की है, मुझे वही पुण्य चाहिए l
व्यापारी वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ सेठ ने कहा कि उनके बदले व्यापारी को चार रोटियों के वजन के बराबर हीरे मोती देगा l चार रोटियां बनाई गई और उसे तराजू के एक पलड़े में रखा गया दूसरे पलड़े में सेठ ने पोटली में भर कर हीरे जवाहरात रखें, पलड़ा हिला तक नहीं, दूसरी पोटली मंगाई गई, फिर भी पलड़ा नहीं हिला l

कई पोटलिया के रखने पर भी जब पलड़ा नहीं हिला तो व्यापारी ने कहा सेठ जी मैंने विचार बदल दिया है अब मैं पुण्य नहीं बेचना चाहता l व्यापारी खाली हाथ अपने घर की ओर चल पड़ा उसे डर हुआ कि कहीं घर में घुसते ही पत्नी के साथ कलह शुरू ना हो जाए l

जहां उसने कुत्तिया को रोटियां डाली थी वहां से कुछ कंकड़ पत्थर उठाए और साथ में रखकर गांठ बांध दी, घर पहुंचने पर पत्नी ने पूछा कि पुण्य बेचकर कितने पैसे मिले तो उसने थैली दिखाई और कहा इसे भोजन के बाद रात को ही खोलेंगे, इसके बाद गांव में कुछ उधार मांगने चला गया, इधर उसकी पत्नी ने जब से थैली देखी थी l

उसे सब्र नहीं हो रहा था पति के जाते ही उसने थैली खोली, उसकी आंखें फटी रह गई थैली हीरे जवाहरातो से भरी थी, व्यापारी घर लौटा तो उसकी पत्नी ने पूछा की पुण्यों का इतना अच्छा मोल किसने दिया, इतने हीरे जवाहरात कहां से आए व्यापारी का अंदेशा हुआ की पत्नी सारा भेद जानकर ताने तो नहीं मार रही लेकिन उसके चेहरे की चमक से ऐसा लग नहीं रहा था

व्यापारी ने कहा दिखाओ कहां है हीरे जवाहरात l पत्नी ने पोटली उसके सामने उलट दी उसमे से बेशकीमती रत्न गिरे l व्यापारी हैरान रह गया फिर उसने अपनी पत्नी को सारी बात बता दी पत्नी को पछतावा हुआ कि उसने अपने पति को विपत्ति में पुण्य बेचने को विवश किया दोनों ने तय किया कि वह इसमें से कुछ अंश निकालकर व्यापार शुरू करेंगे और व्यापार से प्राप्त धन को इस में मिलाकर जनकल्याण में लगा देंगे l

ईश्वर आपकी परीक्षा लेता है परीक्षा में वह सबसे ज्यादा आपके उसी गुण को परखता है जिस पर आपको गर्व हो अगर आप परीक्षा में खरे उतर जाते हैं तो ईश्वर वह गुण आप में हमेशा के लिए वरदान के रूप में दे देता है अगर परीक्षा में उत्तीर्ण ना हुए तो ईश्वर उस गुण के लिए योग्य किसी अन्य व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं इसलिए विपत्ति काल में भी भगवान पर भरोसा रख कर सही राह चलना चाहिए आपके कंकड़ पत्थर भी अनमोल रत्न है

आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

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