राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक हिंदी भजन
राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक हिंदी भजन
राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक, तीनो लोक में छाए रही है I
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारिन, फिर भी दीप जलाए रही है I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
बरसाने से बुलाए रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर, जोगन आरती गाये रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर, जोगन आरती गाये रही है I
भोर भये ते सांझ ढले तक, सेवा को नित नेम हमारो I
स्नान कराये वो वस्त्र उढ़ाये बढ़ाएं, वो भोग लगाए वो लागत प्यारो I
कब ते निहारत आपकी ओर, कब ते निहारत आपकी ओर I
कि आप हमारी ओर निहारो I
राधे कृष्ण हमारे धाम को, जानि वृंदावन धाम पधारो I
राधे कृष्ण हमारे धाम को, जानि वृंदावन धाम पधारो I
राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाए रही है I
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारिन फिर भी दीप जलाए रही है I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
बरसाने से बुलाए रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाये रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाये रही है I
भोर भये ते सांझ ढले तक सेवा को नित नेम हमारो I
स्नान कराये वो वस्त्र उढ़ाये बढ़ाएं वो भोग लगाए वो लागत प्यारो I
कब ते निहारत आपकी ओर, कब ते निहारत आपकी ओर I
कि आप हमारी ओर निहारो I
राधे कृष्ण हमारे धाम को, जानि वृंदावन धाम पधारो I
राधे कृष्ण हमारे धाम को, जानि वृंदावन धाम पधारो I
राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाए रही है I
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारिन फिर भी दीप जलाए रही है I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
बरसाने से बुलाए रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाये रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाये रही है I
भोर भये ते सांझ ढले तक सेवा को नित नेम हमारो I
स्नान कराये वो वस्त्र उढ़ाये बढ़ाएं वो भोग लगाए वो लागत प्यारो I
कब ते निहारत आपकी ओर, कब ते निहारत आपकी ओर I
कि आप हमारी ओर निहारो I
राधे कृष्ण हमारे धाम को, जानि वृंदावन धाम पधारो I
राधे कृष्ण हमारे धाम को, जानि वृंदावन धाम पधारो I
राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाए रही है I
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारिन फिर भी दीप जलाए रही है I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
कृष्ण को गोकुल से राधे को I
बरसाने से बुलाए रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाये रही है I
दोनों करो स्वीकार कृपा कर जोगन आरती गाये रही है I
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी