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सालासर धाम हनुमान जी का जागृत स्थान है।

सालासर धाम हनुमान जी का जागृत स्थान है।

सालासर धाम हनुमान जी का जागृत स्थान है।

राजस्थान में बालाजी के नाम से प्रसिद्ध हनुमान जी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें सालासर के चमत्कारी श्री बालाजी मंदिर का विशेष महत्व है। सालासर राजस्थान राज्य के चूरू जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 668 में सुजानगढ़ तहसील में स्थित है। सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से लगभग 25 किमी दूर कंटीले रेगिस्तान के बीच में सालासर का सबसे पवित्र क्षेत्र है।

सालासर के कण-कण में श्री बालाजी विद्यमान है श्री बालाजी मंदिर सालासर राजस्थानी शैली में निर्मित एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। सालासर में स्थापित सिद्धपीठ बालाजी की प्रतिमा आसोटा गांव के एक खेत में प्रकट हुई थी। बाला जी के परम भक्त मोहनदास जी को यह हल चलाते समय इस प्रतिमा के प्रथम दर्शन हुए थे।

तत्पश्चात भक्त श्री मोहनदास जी द्वारा श्री बालाजी महाराज की दिव्य प्रेरणा से आज से लगभग 253 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत 1811, ईसवी, सन 1754 श्रावण शुक्लपक्ष नवमी शनिवार को श्री बालाजी के श्री विग्रह की प्रतिष्ठा सालासर के परम पावन क्षेत्र में हुई। भक्त मोहनदास जी एवं उनकी बहन कान्ही बाई ने अन्यन भक्ति भाव से बालाजी की सेवा अर्चना की और बालाजी के साक्षात दर्शन प्राप्त किए। कहते हैं श्री बालाजी एवं मोहनदास जी आपस में वार्तालाप करते थे।

मंदिर में श्री बालाजी की भव्य प्रतिमा सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके ऊपरी भाग में श्री राम दरबार है निचले भाग में श्री राम चरणों में दाढ़ी मूछ से सुशोभित हनुमान जी श्री बालाजी के रूप में विराजमान हैं। बालाजी मंदिर भारत का एक ऐसा मंदिर है जिसमें बालाजी की दाढ़ी और मूंछें हैं। राम की भक्ति में राम की आयु बढ़ाने के लिए बाकी चेहरे पर सिंदूर लगाया जाता है। मुख्य प्रतिमा शालिग्राम पत्थर की है जिसे गेरुआ रंग और सोने से सजाया गया है। बालाजी का यह रूप अद्भुत आकर्षक एवं प्रभावशाली है। नमामिशमीशान निर्वाणरूपं रूपम शिव स्तुति मन्त्र

प्रतिमा के चारों तरफ सोने की सजावट की गई है और सोने का रत्न जड़ित भव्य मुकुट चढ़ाया गया है। प्रतिमा पर लगभग 5 किलोग्राम सोने से निर्मित स्वर्ण क्षेत्र भी सुशोभित है। प्रतिष्ठा के समय से ही मंदिर के अंदर अखंड दीप प्रज्वलित है। मंदिर परिसर के अंदर प्राचीन कुएं का लवण मुक्त जल आरोग्य वर्धक है। श्रद्धालु यहां स्नान कर अनेक रोगों से छुटकारा पाते हैं मंदिर के अंदर स्थित प्राचीन धूणां आज भी जल रहा है।

प्रारंभ में जांट/जांटी (खेजड़ी) वृक्ष के पास एक छोटा सा मंदिर था। श्री बालाजी महाराज की अनुकंपा से आज यहां विशाल स्वर्ण निर्मित मंदिर है। जांटी का वृक्ष आज भी मौजूद है जिस पर भक्तजन नारियल एवं ध्वजा चढ़ाते हैं तथा लाल धागे बांधकर मन्नत मांगते हैं मंदिर के ऊपर स्थापित भारतीय संस्कृति की झलक देने वाली लाल ध्वजाऐं अनवरत रूप से लहराती रहती हैं।

श्री बालाजी मंदिर से पहले लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर श्री अंजनी माता का मंदिर है। अंजनी माता का यह मंदिर भव्य एवं प्रतिमा स्वर्ण निर्मित है। मंदिर की शोभा भव्य एवं वातावरण सात्विक है। सालासर आने वाले सभी भक्तजन सबसे पहले श्री अंजनी माता मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।

तत्पश्चात भक्तजन श्री बालाजी मंदिर की तरफ प्रस्थान करते हैं। कुछ विशिष्ट भक्तजन पेट के बल चलते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं। पैदल चलकर आने वाले यात्री हाथ में लाल ध्वजा लेकर चलते हैं। श्री बालाजी की दैनिक परम परंपरागत भोग तथा भक्त श्री मोहन दास जी के वंशजों द्वारा की जाती है। प्रतिदिन सुबह 5 बजे मंगला आरती के बाद बालाजी को दूध का भोग लगाया जाता है।

बालभोग में पेड़े और सूखे मेवे जीमाते हैं। राजभोग में घी और आटे का बनने वाला रोट के साथ चूरमा के लड्डू की भोग की थाली होती है। रात्रि 8:15 बजे संध्या आरती के बाद पुन: मौसमी फलों का बालभोग लगाते है। शयन भोग में बूंदी के लड्डू, बूंदी आदि मिठाई जिमाते हैं। भोग का यह प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है।

बालाजी को गर्म दूध का लगाकर भोग सोते हैं। मंगला और शयन के समय भोग का दूध बाबा के मुख्य पुजारियों में प्रसाद के रूप में बंटता है। प्रतिदिन भक्त चूरमा, लड्डू, पेड़ा और बेसन की बर्फी की सवामनी भी चढ़ाते हैं। श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में लिरिक्स

स्थापना दिवस पर खाई जाती है ब्रह्म पूड़ी : श्रावण सुदी नवमी पर बालाजी विशेष रूप से ब्रह्म पूड़ी आरोगते हैं। इसका प्रसाद 2000 से ज्यादा ब्राह्मण ग्रहण करते हैं। श्राद्ध में मोहनदास महाराज की पुण्यतिथि (बरसी) पर बालाजी को हलवा, मिक्स सब्जी, चने की दाल का भोग लगाया जाता है और हजारों भक्तों में बांटा जाता है। श्री बालाजी महाराज का जप तथा कीर्तन यहां निरंतर चलते रहते हैं।

श्री बालाजी महाराज की कृपा से भक्तजनों की मनोकामनाओं की पूर्ति के उपरांत यहां ध्वजा नारियल तथा छत्र आदि भेंट किए जाते हैं। कुछ श्रद्धावान भक्त सवामणी भंडारा आदि अर्पित करते हैं। सवामणी प्रसाद का प्रचलन यहां सबसे ज्यादा है देश-विदेश से भक्तगण श्री बालाजी के दर्शनार्थ सालासर धाम आते हैं।

मंगलवार तथा शनिवार के दिन या श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। चैत्र मास (अप्रैल) और अश्वनी मास (अक्टूबर) की पूर्णिमा पर यहां विशाल मेला लगता है जो काफी दिनों तक चलता है। मंदिरों और मेलों के प्रबंधन का काम हनुमान सेवा समिति करती है। इस अवसर पर श्रद्धालुओं की लाखों में संख्या होती है पैदल चलकर भी लाखों श्रद्धालु आते हैं। राजस्थान के अलावा पंजाब हरियाणा दिल्ली सहित पूरे भारत से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

क्या होती है सवामणी श्री बालाजी महाराज को अर्पित किए जाने वाले सवा-मण लगभग 50 किलो भोग सामग्री होती है। जो लड्डू पेड़ा बर्फी चूरमा होते हैं। परंतु ज्यादातर सवामणी बेसन के लड्डू की होती है। भोग के उपरांत सवामणी को भक्तों में वितरित करना होता है। दुनिया रचने वाले को भगवान कहते हैं लिरिक्स

मार्ग मानचित्र : दिल्ली से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे –

इसके लिए हम नीचे तीन रास्ते दे रहे हैं, किसी भी रास्ते से आप सालासर बालाजी जा सकते हैं।

रास्ता नंबर 1 : नई दिल्ली-गुरुग्राम-रेवाड़ी-नारनौल-चिडावा-झुंझुनू-मुकुंदगढ़ल-लक्ष्मणगढ़ -सालासर बालाजी (318 किलोमीटर)– ये सबसे छोटा रास्ता है। आपको रेवाड़ी रोड़ से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 को छोड़कर रेवाड़ी से झुंझुनू जाने वाला रास्ता लेना होगा ।

रास्ता नंबर 2 : नई दिल्ली-गुरुग्राम-बहरोड़-नारनौल-चिडावा-झुंझुनू-मुकुंदगढ़-लक्ष्मणगढ़-सालासर बालाजी (335 किलोमीटर)

रास्ता नंबर 3 : नई दिल्ली-बहादुरगढ़-झज्झर-चरखीदादरी-लोहारू-चिडावा-झुंझुनू-मुकुंदगढ़-लक्ष्मणगढ़-सालासर बालाजी (302 किलोमीटर) यह नया रास्ता है जिसे कम भक्त जानते हैं।

श्री खाटू श्याम मंदिर के दर्शन एवं यात्रा की पूरी जानकारी

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