शिव क्या है और क्या अर्थ है शिव का शिव होना !
शिव जी जो आभूषण धारण करते हैं, उनके अर्थ इस प्रकार हैं –
जटाएं – शिवजी की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।
चंद्रमा – चंद्रमा मन का प्रतीक है, शिवजी का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
त्रिनेत्र – शिवजी की तीन आंखें हैं, इसीलिए इन्हें सभी त्रिलोचन भी कहते हैं।
शिव के त्रिनेत्र – सत्व, रज, तम तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य तीन कालों, स्वर्ग, मृत्यु, पाताल तीनों लोकों के प्रतीक हैं।
सर्पहार – सर्प जैसा हिंसक जीव भी शिवजी के अधीन है, सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है। जिसे शिवजी ने अपने वश में कर रखा है।
त्रिशूल – शिवजी के हाथ में एक मारक शस्त्र है त्रिशूल ! जो भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरु – शिवजी के एक हाथ में डमरू है, जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं, डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है।
मुंडमाला – शिवजी के गले में विद्यमान मुंडमाला इस बात का प्रतीक है। कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है।
छाल – शिवजी ने शरीर पर व्याघ्र चर्म पहनी हुई है, व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव जी ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म – शिवजी के शरीर पर भस्म लगी होती है, शिवलिंङ्ग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है, जो संसार की नश्वरता को दर्शाता है।
वृषभ – शिवजी का वाहन वृषभ यानी बैल है, वह हमेशा शिव जी के साथ रहता है, वृषभ धर्म का प्रतीक है, महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं।
इस तरह शिवजी का स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, उनकी महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।
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