श्री बिहारी देव जी के भाषण-सिद्धांत की सखी !
मृदु पद पंकज प्रिया पिय, छूवै ना सुकर कठोर।
श्रीबिहारिनदासी कहत मरमु, नरम प्रेम मन मोर॥
बाये कुच मम प्रिया पद, दछिन कुच पिय पायी।
चारयो चरण रहत हृदे, यौ सुख सैन सुहाई॥
वाणी श्रीस्वामी बिहारिनदेव जू !
श्री युगल के चरनारविन्द कि अति अदभुत कोमलता दर्शाते हुए आप आश्रितो से कह रहे है – हे ! बिहारिनदास ! मैं तुमसे एक मर्म कि बात कह रहा हूँ – हमारे प्रिया प्रीतम के अति अद्धभुत ऐसे सुकोमल श्रीचरण-कमल है। जिसको मेरा मन परम नर्म रसरीति का होकर भी स्पर्श करने से मेरे हाथ डरते है।
इसीलिए मैं भावना द्वारा अपने ह्रदय कमल में बाई और श्री प्रिया जू के चरण-कमल और दक्षिण की और श्रीलाल जू के चरण-कमल को विराजमान करके अति अगाध सुख से सोईबो ही मेरे मन को सदाकाल सुहावे है।
आजु बधाई श्रीवृन्दावन।
कुंजमहल श्रीबिहारी बिहारिनि केलि करत छिनही छिन॥ [1]
श्री हरिदासी जू लाड़ लड़ावति इनही कौ ये हैं धन।
श्रीललितमोहिनी की निजु जीवन ये वे वे एकै मन॥ [2]
श्री ललित मोहिनी देव जू !
श्री ललित मोहिनी देव जू कह रहे हैं “आज श्री वृन्दावन में बधाई है, क्यूँकि आज श्री बिहारी बिहारिणी जू कुञ्ज महल में क्षण प्रतिक्षण केलि लीला परायण हैं। [1]
इस नित्य विहार-रस को प्रकट करने वाली श्रीहरि दासी सखी नित्य श्रीबिहारी बिहारिणी जू को लाड़ लड़ा रही हैं। श्री ललित मोहिनी देव जू कह रहे हैं “मेरे जीवन का सर्वस्व धन श्रीहरिदास एवं श्रीबिहारी बिहारिणी जू हैं जिनके मन एक ही हैं (अर्थात् जो जो श्री राधा-कृष्ण को रुचिकर है वह ही स्वामी श्रीहरिदास जी को भी)।” [2]
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