श्री राधाष्टकम संस्कृत लिरिक्स, Shri Radhashtakam Lyrics
ॐ नमस्ते श्रियै राधिकार्य परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै।
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तःप्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम्॥१॥
भावार्थ :- हे राधिके ! तुम ही श्री लक्ष्मी हो, तुम्हें कोटि कोटि नमस्कार है, तुम्हीं परम शक्ति हो, तुम्हें बार-बार नमस्कार है। तुम मुकुंद अर्थात श्री कृष्ण की प्रिय हो, तुम्हें नमस्कार है। हे सदानंद स्वरूपा देवी तुम मेरे अन्तःकरण में श्याम सुंदर श्री कृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।
स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम्।
स्वदानोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसी ताम्॥२॥
भावार्थ :- हे राधे ! आप तो श्री कृष्ण की आराधना करती हैं, जिन्होंने आपके वस्त्रों को चुराया था तथा चुप-चाप धोखे से आपका माखन भी चुराया करते थे। आपने तो अपनी निवि से श्री कृष्ण के उधर को भी बांध लिया था। जिसके कारण उनका नाम दामोदर पड़ा। निश्चय ही मैं उन दामोदर प्रिया की शरण लेता हूँ। यह भी पढ़े : श्री दामोदराष्टकं स्तोत्र हिन्दी में
दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधाभिधाऽभूः।
स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपञ्चाय मे कृष्णरूपे समक्षम्॥३॥
भावार्थ :- हे श्री राधा ! आपने उन श्रीकृष्ण की आराधना की जिनकी आराधना करना बहुत कठिन है। परन्तु आपने अपनी आराधना तथा अपने निश्छल महान प्रेम से श्रीकृष्ण को भी अपने वश में कर लिया जिसके कारण आप पूरे जगत में श्री राधा के नाम से विख्यात हैं। हे श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपने अपने आप को यह नाम दिया है, हे राधा रानी मैं आपकी शरण में हूँ। मुझ पर कृपा करो तथा मुझे श्री हरी का प्रेम प्रदान करो। यह भी पढ़े : श्री कृष्ण शरणम मम भजन हिंदी लिरिक्स
मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धः पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः।
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम्॥४॥
भावार्थ :- हे राधे रानी ! प्रभु श्रीकृष्ण तो सदा तुम्हारी प्रेम डोर से बंधे रहते हैं, और एक पतंग की भाँति तुम्हारे आस-पास ही रहते हैं और क्रीड़ा करते हैं। हे देवी ! हे श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपकी कृपा तो सब पर होती है, आप भी मुझ पर अपनी कृपा करें तथा मुझ से भी अपनी सेवा करवाएं। यह भी पढ़े : श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हिंदी भजन लिरिक्स
वजन्ती स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम्।
सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षः श्रियं चिन्तयेत् सचिदानन्दरूपाम्॥५॥
भावार्थ :- हे देवी आप प्रतिदिन नियत समय पर श्रीकृष्ण को अङ्क की माला अर्थात अंक की माला अर्पित करती हैं तथा उनके साथ उनकी लीला-भूमि श्री वृन्दावन धाम में उनके साथ विचरण करती हैं। भक्त जनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपाकटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्द स्वरूप (श्री लाडली का) हमें उनका चिंतन करना चाहिए।
मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गीमहं व्याप्यमानांतनुस्वेदविन्दुम्।
महाहार्दवृष्टया कृपापाङ्गदृष्टया समालोकयन्ती कदा त्वां विचक्षे॥६॥
भावार्थ :- श्री राधे ! तुम्हारे मन तथा प्राणों में उन आनन्दकन्द श्री कृष्ण की असीमित अनंत प्रीति व्याप्त है अतएव तुम्हारे श्रीअंग सदा ही रोमांच से विभूषित रहते हैं, तथा तुम्हारा अंग अंग सूक्ष्म संवेद बिंदुओं से सुशोभित रहता है। तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा घनिष्ठ अनंत प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी तरफ देख रही हो, इस अवस्था में मुझे कब श्री राधे आपका दर्शन होगा ?। यह भी पढ़े : शनि देव बाण भजन हिंदी लिरिक्स
पदावावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः।
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तहदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम्॥७॥
भावार्थ :- हे देवी ! यद्यपि श्याम-सुन्दर श्रीकृष्ण स्वयं ही ऐसे हैं कि उनके चरणों का चिंतन किया जाए, तथापि वे स्वयं भी तुम्हारे श्री चरण चिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। हे देवी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कृपा कर मेरे अन्तःकरण में असीम प्रकाश बिखेरते हुए अपने चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराए।
सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम्।
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे॥८॥
भावार्थ :- हे राधे रानी ! मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर सदा ही आपका नाम विद्यमान रहे, मेरे नेत्रों के समक्ष सदा आपका ही रूप प्रकाशित हो। हे देवी ! मेरे कानों में आपकी कीर्ति की कथा गूंजती रहे और अन्तर्हृदय में श्री लक्ष्मी-स्वरूपा श्री राधा के ही असंख्य गुणों का चिंतन होता रहे, बस यही मेरी आपसे कामना है। यह भी पढ़े : राधा साध्यम साधनं यस्य राधा मंत्र हिंदी लिरिक्स
इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य।
सतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधानिसखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः॥९॥
भावार्थ :- जो भी दामोदर प्रिया श्री राधा रानी से संबंध रखने वाले इन आठ श्लोकों का पाठ करते हैं, वह सदा ही श्रीकृष्ण धाम वृन्दावन में उनकी सेवा के अनुकूल सखी शरीर पाकर सुख से रहते हैं।
इति श्रीभगवनिम्बार्कमहामनीन्द्रविरचितं श्रीराधाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी