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विधना तेरे लेख किसी की समझ ना आते हैं।

विधना तेरे लेख किसी की समझ ना आते हैं।

वात्सल्य के आनदं से बंचित अकेला रह गया,
अन्याय अपने पर किया और मौन रह कर सह गया।
सुख का सुहाना स्वप्न जाने किस लहर में बह गया,
सूर्यबंशी सूर्य तू ये इस गहन में गह गया।

विधना तेरे लेख किसी की समझ ना आते हैं।
पुत्र पिता से पिता पुत्र से मिल ना पाते हैं,
विधना तेरे लेख किसी की समझ ना आते हैं।


भगवान श्रीराम अपने आप को अकेला महसूस करने लगते हैं और जिस के कारण वे अपने-आप में दुखी रहने लगते हैं। अपने पर बीत रही पुत्रों और पत्नी से दूरी का दर्द वो किसी को कह भी नहीं सकते थे।

स्वर, गीत एवं संगीत- रवींद्र जैन द्व्रारा


विधना तेरे लेख किसी की समझ ना आते हैं।


दोहा – ब्याकुल दशरथ के लगे, रथ के पथ पर नैन,
रथ विहीन बन बन फिरें, राम सिया दिन रैन।

एक राजा के राज दुलारे, वन वन फिरते मारे मारे,
एक राजा के राज दुलारे, वन वन फिरते मारे मारे,  

होनी हो कर रहे करम गति, टरे नहीं काहू के टारे,
सबके कष्ट मिटाने वाले, कष्ट उठाते हैं,

जन जन के प्रिय राम लखन सिय, वन को जाते हैं,
विधना तेरे लेख किसी की, समझ ना आते हैं।

उभय बीच सिय सोहती कैसे, ब्रह्म जीव बीच माया जैसे,
फूलों से चरणों में काँटे, विधिना क्यूँ दुःख दीने ऐसे।

पग से बहे लहू की धारा, हरी चरणों से गंगा जैसे,
संकट सहज भाव से सहते, और मुसकते हैं,

जन जन के प्रिय राम लखन सिय, वन को जाते हैं
विधिना तेरे लेख किसी की, समझ ना आते हैं,

विधना तेरे लेख किसी की, समझ ना आते हैं,
.जन जन के प्रिय राम लखन सिय, वन को जाते हैं,
.जन जन के प्रिय राम लखन सिय, वन को जाते हैं,


श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हिंदी भजन लिरिक्स

Categories: Ram Bhajan

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