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वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है

वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है

वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है : एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी वृन्दावन के कालीदह के निकट स्थान में रुके थे। उस समय वृन्दावन के संत नाभा जी जिन्होंने ने भक्तमाल ग्रन्थ लिखा है। उन्होंने उस समय वृन्दावन में भक्तों का भंडारा किया। गोस्वामी तुलसीदास उस समय वृन्दावन में ही ठहरे थे। भगवन शंकर ने गोस्वामी तुलसीदास जी से कहा कि आप भी जाये नाभा जी के भंडारे में।

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गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवन शंकर की आज्ञा का पालन किया और नाभा जी के भंडारे में जाने के लिए चल दिए। जब तुलसीदास जी वहाँ पहुंचे तो वहां संतो की बहुत भीड़ थी। और तुलसीदास जी को कहीं बैठने की जगह नहीं मिली तो जहाँ संतो के जूते-चप्पल पड़े थे, वो वहीं ही बैठ गए। अब संत लोग भंडारा पा रहे थे।

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पहले ज़माने में संत लोग स्वयं अपने बर्तन लेकर जाया करते थे। आज भी वृन्दावन की रसिक संत भंडारे में अपने-अपने पात्र लेकर जाते है। अब जो भंडारा भी था, तो खीर का था। अब जो प्रसाद बँट रहा था। वो गोस्वामी जी के पास आये और कहा बाबा ! तेरो पात्र कहाँ है, तेरो बर्तन कहाँ है।

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अब तुलसीदास जी के पास कोई बर्तन तो था नहीं, तो उसने कहा कि बाबा जाओ कोई बर्तन लेकर आओ, मैं किसमें तोहे खीर दूँ। इतना कह कर वह चला गया। थोड़ी देर बाद फिर आया तो देखा बाबा जी वैसे ही बैठे है। फिर उसने कहा बाबा मैंने तुमसे कहा था कि बर्तन ले आओ। मै तोहे किसमें खीर दूं।

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इसे सुनकर तुलसीदास जी मुस्कराने लगे और वहीं पास में एक संत का जूता पड़ा था। वो जूता परोसने वाले के सामने कर दिया और कहा इसमें खीर डाल दो, तो परोसने वाले ने कहा कि बाबा पागल होए गयो है का, इसमें खीर लोगे। यह भी पढ़ें –श्रीकृष्ण को पतिरूप प्राप्ति के लिए गोपियों द्वारा कात्यायनी पूजन करना

तो तुलसीदास जी के आँखों में अश्रु भर आये और कहा कि ये जूता संत का है और वो भी वृन्दावन के रसिक संत का। और इस जूते में ब्रजरज पड़ी हुई है और ब्रजरज जब खीर के साथ अंदर जाएगी तो मेरा अन्त:करण पवित्र हो जायेगा। धन्य है वृन्दावन, धन्य है वह रज, जहाँ पर हमारे प्यारे और प्यारी जू के चरण पड़े है।

ये भूमि श्रीराधा रानी की भूमि है। यदि हम वृन्दावन में प्रवेश करते है तो समझ लेना कि ये श्रीराधा रानी की कृपा है। जो हमें वृन्दावन आने का न्यौता मिला।

जो रज ब्रज वृन्दावन माहि, वैकुंठादिलोक में नाहीं।
जो अधिकारी होय तो पावे, बिन अधिकारी भए न आवे।


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