आखिर इस संसार में सुख किसे है

  • Home

आखिर इस संसार में सुख किसे है

You are currently viewing आखिर इस संसार में सुख किसे है
आखिर इस संसार में सुख किसे है,

आखिर इस संसार में सुख किसे है

कोई तन दुखी कोई मन  दुखी, कोई धन बिन रहे उदास।
थोड़े थोड़े सब दुखी, सुखी सन्त का दास।। 

आखिर इस संसार में सुख किसे है- एक भिखारी किसी किसान के घर भीख माँगने गया। किसान की स्त्री घर में थी, उसने चने की रोटी बना रखी थी। किसान जब घर आया, उसने अपने बच्चों का मुख चूमा, स्त्री ने उनके हाथ पैर धुलाये, उसके बाद वह रोटी खाने बैठ गया। स्त्री ने एक मुट्ठी चना भिखारी को डाल दिया, भिखारी चना लेकर चल दिया।

रास्ते में भिखारी सोचने लगा ! हमारा भी कोई जीवन है? दिन भर कुत्ते की तरह माँगते फिरते हैं। फिर स्वयं बनाना पड़ता है। इस किसान को देखो कैसा सुन्दर घर है। घर में स्त्री हैं, बच्चे हैं, अपने आप अन्न पैदा करता है। बच्चों के साथ प्रेम से भोजन करता है। वास्तव में सुखी तो यह किसान है। Please Read-सामर्थ्य अनुसार धन, ज्ञान,शिक्षा का सदुपयोग

इधर वह किसान रोटी खाते-खाते अपनी स्त्री से कहने लगा, नीला बैल बहुत बुड्ढा हो गया है, अब वह किसी तरह काम नहीं देता, यदि कही से कुछ रुपयों का इन्तजाम हो जाये, तो इस साल का काम चले।

साधोराम महाजन के पास जाऊँगा, वह ब्याज पर दे देगा। भोजन करके वह साधोराम महाजन के पास गया। बहुत देर विनती करने पर 1 रु.सैकड़ा सूद पर साधोराम ने रुपये देना स्वीकार किया। एक लोहे की तिजोरी में से साधोराम ने एक थैली निकाली।और गिनकर रुपये किसान को दे दिये।

किसान रुपये लेकर अपने घर को चला, वह रास्ते में सोचने लगा ! हम भी कोई आदमी हैं, घर में 5 रु.भी नकद नहीं। कितनी विनती करने पर उसने रुपये दिये है। साधो कितना धनी है, उस पर सैकड़ों रुपये है। वास्तव में सुखी तो यह साधो राम ही है। साधोराम छोटी सी दुकान करता था, वह एक बड़ी दुकान से कपड़े ले आता था। और उसे बेचता था। Please Read-एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री राधे हिंदी भजन

दूसरे दिन साधोराम कपड़े लेने गया, वहां सेठ पृथ्वीचन्द की दुकान से कपड़ा लिया। वह वहां बैठा ही था, कि इतनी देर में कई तार आए कोई बम्बई का था। कोई कलकत्ते का, किसी में लिखा था 5 लाख मुनाफा हुआ, किसी में एक लाख का। साधो महाजन यह सब देखता रहा, कपड़ा लेकर वह चला आया।

साधोराम रास्ते में सोचने लगा ! हम भी कोई आदमी हैं, सौ दो सौ जुड़ गये महाजन कहलाने लगे। पृथ्वीचन्द कैसे हैं, एक दिन में लाखों का फायदा वास्तव में सुखी तो यह है, उधर पृथ्वीचन्द बैठा ही था, कि इतने ही में तार आया कि 5 लाख का घाटा हुआ।

वह बड़ी चिन्ता में था, कि नौकर ने कहा-आज लाट साहब की रायबहादुर सेठ के यहाँ दावत है। आपको जाना है, मोटर तैयार है। पृथ्वीचन्द मोटर पर चढ़ कर रायबहादुर की कोठी पर चला गया। वहाँ सोने चाँदी की कुर्सियाँ पड़ी थी, रायबहादुर जी से कलक्टर-कमिश्नर हाथ मिला रहे थे।

बड़े-बड़े सेठ खड़े थे। वहाँ पृथ्वीचन्द सेठ को कौन पूछता,वह भी एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया। लाट साहब आये, राय बहादुर से हाथ मिलाया, उनके साथ चाय पी और चले गये। पृथ्वीचन्द अपनी मोटर में लौट रहें थे, रास्ते में सोचते आते है, हम भी कोई सेठ है 5 लाख के घाटे से ही घबड़ा गये। Please Read-हम सिर्फ अपनी जीवन शैली पर ध्यान दें

राय बहादुर का कैसा ठाठ है, लाट साहब उनसे हाथ मिलाते हैं। वास्तव में सुखी तो ये ही है। अब इधर लाटसाहब के चले जाने पर रायबहादुर के सिर में दर्द हो गया, बड़े-बड़े डॉक्टर आये एक कमरे वे पड़े थे। कई तार घाटे के एक साथ आ गये थे।

उनकी भी चिन्ता थी, कारोबार की भी बात याद आ गई। वे चिन्ता में पड़े थे, तभी खिड़की से उन्होंने झाँक कर नीचे देखा, एक भिखारी हाथ में एक डंडा लिये अपनी मस्ती में जा रहा था। राय बहदुर ने उसे देखा और बोले-वास्तव में तो सुखी यही है, इसे न तो घाटे की चिन्ता न मुनाफे की फिक्र, इसे लाटसाहब को पार्टी भी नहीं देनी पड़ती सुखी तो यही है।

ज्ञान – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि हम एक दूसरे को सुखी समझते हैं। पर वास्तव में सुखी कौन है, इसे तो वही जानता है। जिसे आन्तरिक शान्ति है। जिसे आन्तरिक सुकून है, आप चाहे भिखारी हो चाहे करोड़पति हो। लेकिन आप के मन में जब तक शांति नहीं है तब तक आपको सुकून नहीं मिल सकता।



Banwari Re Jeene Ka Sahara Tera -बनवारी रे जीने का सहारा नाम रे

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी