एक नास्तिक कैसे बन गया भगवान श्री राम का भक्त?

एक नास्तिक कैसे बन गया भगवान श्री राम का भक्त?

एक नास्तिक कैसे बन गया भगवान श्री राम का भक्त? : श्री राम हमेशा अपने भक्तों पर अपनी करुणा व्यक्त करते हैं। इस लेख में श्री राम और उनके भक्तों की भावनाओं से भरी भक्ति कथाएं पढ़ें। चित्त और आत्मा को शुद्ध करे वही आत्मज्ञान है। चित्त अशुद्ध क्यों होता है।

एक बार एक गांव में एक साधु रहता था। वह सारा दिन राम-राम जपता रहता था और ढोलक बजाकर कीर्तन करता रहता था। उसकी कुटिया के पास जिस व्यक्ति का घर था, वह उससे बहुत परेशान था। एक दिन वह व्यक्ति गुस्से में उस साधु की कुटिया में गया और कहने लगा कि तुम क्या दिन-रात राम-राम रटते रहते हो? “तुम्हें तो कोई काम धंधा नहीं है? लेकिन हमें तो कमाने जाना पड़ता है।

तुम्हारी ढोलक की आवाज से मैं सो नहीं पाता। साधु कहने लगा, ‘तुम भी मेरे साथ राम-राम जप के देखो तब तुम्हें पता चलेगा कितना आनंद आता है। उस व्यक्ति ने हल्का खीझकर कहा, “अगर मैं तुम्हारे साथ मैं जप करूंगा, तो क्या तुम्हारे भगवान मुझे खाने के लिए रोटी देंगे?” साधु ने कहा, “मेरे लिए भगवान के नाम का जाप करने में खुशी है। मुझे उनकी कृपा से हर रोज़ भोजन प्राप्त होता है।”

“तुम भी राम-राम जप कर देखो, मुझे यकीन है कि मेरे राम तुम्हें भी भोजन देंगे।” उस व्यक्ति ने ऋषि को चुनौती दी, “मैं आज आपके साथ राम-राम भजन गाता हूं। यदि आपके राम आज मुझे भोजन देंगे, तो मैं अपना पूरा जीवन राम की भक्ति में बिताऊंगा। लेकिन यदि नहीं, तो क्या आप ढोल बजाना बंद कर दोगे?” रामायण ग्रंथ में क्या लिखा है? और ये कब और किसने लिखा?

साधू कहता है कि,” मैंने तो निष्काम भाव से प्रभु राम की भक्ति की है लेकिन फिर भी मुझे तुम्हारी चुनौती मंजूर है। वह व्यक्ति साधु के साथ बैठकर राम-राम का जाप और कीर्तन करने लगा। लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। उसने मन में निश्चय किया कि चाहे कुछ हो जाए मैं आज भोजन नहीं करूँगा, देखता हूँ इसका राम मुझे कैसे भोजन कराता है?

राम- राम का भजन करने के बाद वह सोचता है कि अगर अब मैं घर जाता हूं तो मेरी मां और बीवी मुझे खाने को कहेंगे और मुझे खाना खाना पड़ सकता है। लेकिन मुझे साधु को हराना है जिससे इसकी ढोलकी की आवाज से मुझे मुक्ति मिल जाए। इसलिए वह घर जाने की बजाए गांव के  समीप जो जंगल था वहां चला गया। मणिराम माली कौन थे और उन्हें श्रीजगन्नाथ जी के साक्षात् दर्शन कैसे हुए ?

वह जंगल में एक पेड़ पर चढ़ गया और बैठ गया। उसने निश्चय किया कि उसे उस पेड़ से नीचे उतरने की जरूरत नहीं है और खाना खाने की भी जरूरत नहीं है। इस प्रकार, उसने ऋषि को हराने का फैसला किया जिससे ढोलक की आवाज हमेशा के लिए बंद हो जाये।

कुछ देर बाद बंजारों का एक समूह उस जंगल से होकर गुजरता है। उन्हें भूखा लगी थी। तभी बंजारों का सरदार कहता है, आग जलाकर यही खाना बना लो, अब हम खाकर ही आगे बढ़ेंगे।” खाना अभी बना ही था और बंजारों ने खाना शुरू ही किया था कि बंजारों को सूचना मिली कि पीछे से लुटेरे आ रहे हैं। आप जीवन को उत्तम करने के कुछ उपाय कर सकते है।

बंजारों का सरदार कहता है, “हमें इस स्थान से निकल जाना चाहिए। डाकू हमारी सभी वस्तुओं को लूट सकते हैं।” उन्होंने खाना वहीं छोड़कर चले जाने का निर्णय लिया। वह व्यक्ति पेड़ पर चढा़ सब कुछ देख रहा था। कुछ समय बाद, डाकू वहाँ पहुँच जाते हैं। भोजन को देखकर डाकू कहते हैं कि खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है।

लेकिन यह भोजन किसने बनाया? बनाने के बाद खाया क्यों नहीं ? कहीं किसी की चाल तो नहीं हमें फसाने की? एक डाकू कहता है कि सरदार हो सकता है इस भोजन में जहर मिला हो। उसी समय, डाकूओं के सरदार की नजर पेड़ पर बैठे व्यक्ति पर पड़ती है। वह उसे नीचे आने का आदेश देता है। एक बार श्री राधा नाम लेने की महिमा

डाकू उस व्यक्ति से पूछते हैं, “हमें मारने के लिए, क्या भोजन तुमने बनाया है?” वह बेचारा मिन्नते करता रहता है कि मैंने यह भोजन नहीं बनाया। इसमें जहर नहीं है। यह भोजन बंजारों ने बनाया है। आपके आने की खबर सुनकर वह वहाँ से भाग गए। लेकिन डाकूओं के सामने उसकी एक नहीं चली। कर्मों का फल तो सभी को भोगना ही पड़ता हैं।

डाकुओं का सरदार कहता है कि तुम्हें यह खाना खाकर साबित करना होगा। क्योंकि हमें शक है कि आपने ही यह खाना बनाया है और इसमें जहर मिला है? अब तुम ही सबसे पहले यह भोजन खाओगे। उसे साधू को दी हुई चुनौती याद आ जाती है और वह जिद्द पर अड़ा रहता है। मैं यह भोजन नहीं खाऊंगा, किसी कीमत पर नहीं।

डाकूओं का शक और गहरा हो जाता है। वे चाकू उसको दिखाकर कहते हैं, “तुझे यह भोजन खाना पड़ेगा, नहीं तो जान गंवानी पड़ेगी।” अपनी जान बचाने के लिए वह भोजन करने बैठ गया। अब साधू को याद करते हुए उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। उसने कहा था कि मेरा निश्चय है कि राम नाम जपेगा तो राम तुझे भोजन भी देंगे। उसके भोजन करने के बाद, डाकूओं ने उसे छोड़ दिया।

अब उसे विश्वास हो गया कि बंजारों को और डाकूओं को राम जी ने ही भेजा है। वह सीधा साधू की कुटिया में चला गया और जाकर उनके चरणों में प्रणाम किया और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। अब उसे साधु से भी ज्यादा उसे राम नाम जपने की लगन लग गई।


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