मणिराम माली कौन थे और उन्हें श्रीजगन्नाथ जी के साक्षात् दर्शन कैसे हुए ?

मणिराम माली कौन थे और उन्हें श्रीजगन्नाथ जी के साक्षात् दर्शन कैसे हुए ?

मणिराम माली कौन थे और उन्हें श्रीजगन्नाथ जी के साक्षात् दर्शन कैसे हुए ? :

श्री जगन्नाथ पुरी धाम में मणिदास नामक माली रहते थे। इनकी जन्म तिथि का स्पष्ट पता नहीं है, परन्तु साधुगण बताते हैं कि मणिदास जी का जन्म संवत् १६०० के आस-पास हुआ था, जगन्नाथ पुरी में। वह फूल-माला बेचकर जो कुछ मिलता, उसमें से साधु-ब्राह्मणों की सेवा भी करते थे, दीन-दुःखियों को, भूखों को भी दान करते थे और अपने कुटुम्ब का पालन-पोषण भी करते थे।

अक्षर-ज्ञान मणिदास ने नहीं पाया था; पर उन्होंने यह सिखा कि दीन-दुःखियों पर दया करनी चाहिए और दुष्कर्मों का त्याग करके भगवान की भक्ति करनी चाहिए। संतों में उनका बहुत भाव था और वे नित्य सत्संग में जाते थे। ब्रह्म जिसके इशारे पर नृत्य करता है, उसे वृंदावन कहते हैं।

मणिराम का एक छोटा सा खेत था जहाँ सुंदर फूल उगाते थे। मणिराम माली प्रेम से फूलों की माला बनाकर जगन्नाथ जी के मंदिर के सामने ले जाकर बेचने के लिए रखते। एक माला सबसे पहले भगवान को समर्पित करते और शेष मालाएँ भगवान के दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों को बेच देते। फूल मालाएँ बेचकर जो कुछ धन आता उसमें साधू-सन्त, गौ सेवा करते और बचे हुए धन से अपने परिवार का पालन पोषण करते थे।

कुछ समय बाद मणिदास के स्त्री-पुत्र एक भयंकर रोग की चपेट में आ गए और एक-एक करके सबका परलोक वास हो गया। जो संसार के विषयों में आसक्त, माया-मोह में लिपटे प्राणी हैं, वे सम्पत्ति तथा परिवार का नाश होने पर दु:खी होते हैं और भगवान को दोष देते हैं; किन्तु मणिदास ने तो इसे भगवान की कृपा मानी। उन्होंने सोचा, मेरे प्रभु कितने दयामय हैं कि उन्होंने मुझे सब ओर से बन्धन-मुक्त कर दिया।

मणिराम का प्रभु भक्ति में लीन होना :

मेरा मन स्त्री-पुत्र को अपना मानकर उनके मोह में फँसा रहता था, श्री हरि ने कृपा करके मेरे कल्याण के लिये अपनी वस्तुएँ लौटा लीं। मैं मोह-मदिरा से मतवाला होकर अपने सच्चे कर्तव्य को भूला हुआ था। अब तो जीवन का प्रत्येक क्षण प्रभु के स्मरण में लगाऊँगा। मणिदास अब साधु के वेश में अपना सारा जीवन भगवान के भजन में ही बिताने लगे। विवाह के 8 प्रकार कौन कौन से हैं?

हाथों में करताल लेकर प्रातः काल ही स्नानादि करके वे श्री जगन्नाथ जी के मन्दिर के सिंह द्वार पर आकर कीर्तन प्रारम्भ कर देते थे। कभी-कभी प्रेम में उन्मत्त होकर नाचने लगते थे। मन्दिर के द्वार खुलने पर भीतर जाकर श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति के पास गरुड़-स्तम्भ के पीछे खड़े होकर देर तक अपलक दर्शन करते रहते और फिर साष्टांग प्रणाम करके कीर्तन करने लगते थे।

कीर्तन के समय मणिदास को शरीर की सुधि भूल जाते थे। कभी नृत्य करते, कभी खड़े रह जाते। कभी गाते, स्तुति करते या रोने लगते। कभी प्रणाम करते, कभी जय-जयकार करते और कभी भूमि में लोटने लगते थे। उनके शरीर में अश्रु, स्वेद, कम्प, रोमांच आदि आठों सात्त्विक भावों का उदय हो जाता था। उस समय श्री जगन्नाथ जी के मन्दिर में मण्डप के एक भाग में पुराण की कथा होती थी।

एक कथावाचक कथा करते थे, कथावाचक जी विद्वान तो थे, पर भगवान की भक्ति उनमें नहीं थी। वे कथा में अपनी प्रतिभा से ऐसे-ऐसे भाव बतलाते थे कि श्रोता मुग्ध हो जाते थे। एक दिन कथा चल रही थी, जिसमें पंडित जी एक अद्वितीय अनुभूति का बयान कर रहे थे, जिसमें वे ‘राम-कृष्ण-गोविन्द-हरि’ के उच्च स्वर में करताल बजा रहे थे। महाभारत में कितनी सेना ने भाग लिया?

इसी के बीच, मणिदास वहाँ पहुंच गए, जो तत्पश्चात् श्रीजगन्नाथजी के दर्शन करते ही आश्चर्यचकित हो गए। मणिदास ने नहीं पहचाना कि कहाँ कौन बैठा है या क्या हो रहा है, और उसने उन्मत्त होकर नामध्वनि के साथ नृत्य करना शुरू कर दिया। कथावाचक को उनके इस व्यवहार को बहुत बुरा माना और उन्हें वहां से हटाने के लिए कहा, पर मणिदास अपनी ध्वनि में खोये हुए थे। उनके कानों ने कुछ नहीं सुना। कथावाचक ने गुस्से में कहा, कथा में विघ्न उत्पन्न हो रहा है और श्रोतागण भी उत्तेजित हो गए।

मणिदास पर गालियों और थप्पड़ों की बौछार हुई। जब उन्हें होश आया, सब कुछ समझने के बाद, उसके मन में प्रेम और क्रोध का मिश्रण उत्पन्न हुआ। उसने सोचा, “जब प्रभु के सामने ही मुझे मारते हैं, तब मैं वहाँ क्यों जाऊं? जो प्रेम करता है, उसे रूठने का अधिकार है।” इसके पश्चात्, मणिदास ने श्रीजगन्नाथजी से रूठकर अपने पास ही एक मठ में भूखा-प्यासा रहना चुना। बरसाना दर्शन-बरसाना में घूमने की जगहें कौन कौन सी है?

मंदिर में संध्या-आरती हो गई, पर मणिदास नहीं आए। रात के समय, द्वार बंद हो गए। पुरी-नरेश ने उसी रात में एक स्वप्न में श्रीजगन्नाथजी के दर्शन किए, जिन्होंने कहा, “तू कैसा राजा है! मेरे मंदिर में क्या हो रहा है, तुझे इसकी खबर भी नहीं रहती। मेरा भक्त मणिदास नित्य मंदिर में करताल बजाकर नृत्य करता है। तेरे कथावाचक ने उसे आज उसे मारकर-पीटकर मंदिर से बाहर निकाल दिया।

उसका कीर्तन सुने बिना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मेरा मणिदास आज मठ में भूखा-प्यासा पड़ा है। तू स्वयं जाकर उसे समझा। अब से उसके कीर्तन में कोई विघ्न नहीं होना चाहिए। कोई कथावाचक आज से मेरे मंदिर में कथा नहीं करेगा। मेरा मंदिर तो मेरे भक्तों के कीर्तन करने के लिए सुरक्षित रहेगा। कथा अब लक्ष्मीजी के मंदिर में होगी।

श्रीजगन्नाथ जी के साक्षात् दर्शन :

मठ में बैठे मणिदास ने देखा कि अचानक कोटि-कोटि सूर्यों के समान शीतल प्रकाश सभी दिशाओं में फैला हुआ है। स्वयं श्रीजगन्नाथजी प्रकट होकर उसके पास आए और उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा, “बेटा मणिदास, तू भूखा क्यों है? तेरे भूखे रहने से मैंने भी आज उपवास किया है। उठ, तू जल्दी भोजन कर ले!” भगवान अंतर्धान हो गए, लेकिन मणिदास ने देखा कि महाप्रसाद का थाल सामने रखा गया है।

उसका प्रेमरूपी रोष दूर हो गया और उसने प्रसाद प्राप्त किया। इसके परिणामस्वरूप, राजा की निद्रा टूटी और उसने घोड़े पर सवार होकर मंदिर में मणिदास की जाँच के लिए पहुंचा। और पता लगाकर राजा मणिदास के पास गया और प्रणाम करके अपना स्वप्न सुनाया। राजा ने विनती की कि वह पुनः नित्य भगवान के कीर्तन को सुनाएं। मणिदास में अभिमान नहीं था, उसने राजा की इच्छा को स्वीकार किया और राजा ने उसका सत्कार किया।

संत मणिदास भक्त का जीवनकाल :

करताल लेकर मणिदास ने स्तुति करते हुए श्रीजगन्नाथजी के सामने नृत्य किया। उसी दिन से श्रीजगन्नाथ मंदिर में कथा का आयोजन बंद हो गया और वहां कीर्तन अब श्रीलक्ष्मीजी के मंदिर में होता है। मणिदास ने जीवन भर श्रीजगन्नाथजी के मंदिर में कीर्तन किया। आखिरकार, उम्र के करीब 80 वर्षों में मणिदास भगवान के दिव्य धाम की ओर गए। संतों ने मणिदास भक्त का जीवनकाल 1600 से 1680 के बीच बताया है।

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