श्री हरि विष्णु ने राम अवतार क्यों लिया?

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श्री हरि विष्णु ने राम अवतार क्यों लिया?

श्री हरि विष्णु ने राम अवतार क्यों लिया? : भगवान विष्णु के श्री राम अवतार से जुड़ी तीन पौराणिक घटनाएं हैं।

पहला प्रसंग : एक बार सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए वैकुण्ठ आये। उस समय वैकुण्ठ के द्वार पर जय-विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दे रहे थे। जब सनकादि मुनि दरवाजे से होकर जाने लगे तो जय-विजय ने हंसते हुए उन्हें अपनी छड़ी से रोक दिया। क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

क्षमा मांगने पर सनकादि मुनि ने कहा कि भगवान श्रीहरि स्वयं तीनों ही जन्मों में तुम्हारा अंत करेंगे। इस प्रकार तीन जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। पहले जन्म में जय-विजय हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप में पैदा हुए। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया। चौरासी लाख योनियों में क्या क्या जन्म मिलता है

दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्म लिया। उन्हें मारने के लिए भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में पैदा हुए। इसी जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने उनका वध किया।

दूसरा प्रसंग : मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से मानव जाति की उत्पत्ति हुई। इन दोनों पति-पत्नी का धर्म और आचरण बहुत ही पवित्र थे। जब मनु वृद्ध हो गये तो उन्होंने राज-पाठ अपने पुत्र को सौंप दिया और वन में चले गये। वहां जाकर मनु और शतरूपा ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कई हजार वर्षों तक तपस्या की। जब श्रीकृष्ण ने लालिहारण स्त्री का रूप धारण किया।

तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। मनु और शतरूपा ने श्रीहरि से कहा कि हम आपके समान ही पुत्र की अभिलाषा हैं। उनकी इच्छा सुनकर श्रीहरि ने कहा कि संसार में मेरे समान दूसरा कोई नहीं है। अत: आपकी इच्छा पूरी करने के लिए मैं स्वयं आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।

कुछ समय बाद आप अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लेंगे, उसी समय मैं आपका पुत्र बनकर आपकी इच्छा पूरी करूंगा। इस प्रकार मनु और शतरूपा को मिले वरदान के कारण भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। चित्त और आत्मा को शुद्ध करे वही आत्मज्ञान है। चित्त अशुद्ध क्यों होता है।

तीसरा प्रसंग : देवर्षि नारद को एक बार यह अभिमान हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को नहीं तोड़ सकते। यह बात नारदजी ने शिवजी को बताई। देवर्षि के शब्दों में अहंकार भरा हुआ था। शिवजी समझ गए थे कि नारद को अहंकार हो गया है। भोलेनाथ ने नारद से कहा कि वह भगवान श्रीहरि के सामने इस तरह अपना अभिमान प्रदर्शित न करना।

इसके बाद नारद भगवान विष्णु के पास गए और शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने पूरी घटना श्रीहरि को बता दी। नारद भगवान विष्णु के सामने भी अपना अहंकार प्रदर्शित कर रहे थे। तब भगवान ने सोचा कि नारद का घमंड तोड़ना ही पड़ेगा, यह शुभ संकेत नहीं है। जब नारद कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक अत्यंत सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां एक राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन हो रहा था। ऋषियों द्वारा विश्व का सबसे बड़ा समय गणना तन्त्र

नारद भी वहां पहुंचे और राजकुमारी को देखकर मोहित हो गये. यह सब भगवान श्रीहरि की माया थी। राजकुमारी की सुन्दरता और सौन्दर्य ने नारद के तप को भंग कर दिया। इस कारण उसने राजकुमारी के स्वयंवर में भाग लेने का मन बना लिया। नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप मुझे अपना सुंदर रूप दे दीजिए, ताकि राजकुमारी स्वयंवर में मुझे ही अपने पति के रूप में चुने।

भगवान ने वैसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे ये सब बातें जानते थे और ब्राह्मण के भेष में ये सब देख रहे थे। जब राजकुमारी स्वयंवर में आई तो वानर मुख वाले नारदजी को देखकर बहुत क्रोधित हो गई। उसी समय भगवान विष्णु राजा के रूप में वहां आये। आरती का क्या महत्व है और कितने प्रकार की होती है?

उनका सुन्दर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपना पति चुन लिया। यह देखकर शिवगण नारदजी का मजाक उड़ाने लगे और बोले कि पहले दर्पण में अपना चेहरा तो देखिए। जब नारदजी ने देखा कि उनका मुख बन्दर जैसा है तो वे बहुत क्रोधित हुए। नारद मुनि ने उन शिवगणों को राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि- जिस प्रकार आज मैं एक स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार तुम्हें भी मनुष्य जन्म लेकर स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। कान्हा जी की गौ चारण लीला आपने नहीं सुनी होगी।

उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। भगवान विष्णु ने कहा- ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया. तब नारद मुनि को अपने कठोर शब्दों और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। भगवान श्रीहरि ने कहा- यह सब मेरी ही इच्छा से हुआ है, अत: तुम शोक मत करो। उसी समय भगवान शिव के गण वहां पहुंचे, जिन्हें नारद मुनि ने श्राप दिया था। उनसे नारद मुनि ने क्षमा मांगी। द्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है

तब नारद मुनि ने कहा- तुम दोनों राक्षस योनि में जन्म लेकर संपूर्ण जगत को जीत लोगे , तब भगवान विष्णु मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। नारद मुनि के इन श्रापों के कारण उन शिव गणों ने रावण और कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया और भगवान विष्णु को श्रीराम के रूप में अवतार लेकर अपनी पत्नी का वियोग सहना पड़ा। मैं कितना अधम हूँ ये तुम ही जानो भजन लिरिक्स