द्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है

द्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है

You are currently viewing द्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है

द्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है।

भारत गुजरात राज्य में स्थित द्वारिका को श्री कृष्ण की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। समुद्र तट पर जहां अरब सागर की लहरें मचलती रहती हैं वहां द्वारिकापुरी स्थित है।

गुजरात के मध्य में ऊंचाई पर बना हुआ द्वारिकाधीश का मंदिर तथा उस पर फहराती रंगीन पताका दूर से दिखाई देती है। यही पर स्थित है, श्री कृष्ण की पावन ‘द्वारिकाधाम’।

भारत की सनातनी परंपरा के अनुसार द्वारिका धाम को तीर्थाटन अथवा पर्यटन को सदैव विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है। आदि शंकराचार्य जी ने इसी परंपरा को नया और व्यावहारिक स्वरूप देने के लिए देश में चारों दिशाओं की ओर चार प्रमुख तीर्थों की स्थापना करके चार धाम की परिकल्पना को रूपांकित किया है।

विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाजों और क्षेत्रीय भिन्नता वाले देश को भावनात्मक एकता में बांधे रखने में इन चारों धामों बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारिका और रामेश्वरम् का विशेष योगदान रहा है।

मुख्य मंदिर (Dwarkadhish Temple) – आज के प्रमुख तीर्थ द्वारिका को पौराणिक समय में ‘द्वारवती’ के नाम से पुकारा जाता था। ऐसी मान्यता है कि देवी-देवताओं के देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा निर्मित और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बसाई गई।

इस नगरी को किसी समय कुपित होकर समुद्र ने निगल लिया लेकिन उस समय श्री कृष्ण का निवास स्थान नहीं डूबा था। इसके बाद श्री कृष्ण के वंशज वर्जनाम ने उसी स्थल पर रणछोर जी का मंदिर बनवाया जो आज तक विद्यमान है।

dwarika-puri-dhaam-hinduon-ke-chaar-pramukh-dhaamon-mein-se-ek-hai

श्री द्वारिकाधीश के मुख्य मंदिर को यहां के लोग ‘जगत मंदिर’ के नाम से पुकारते हैं । स्थापत्यकाल और शिल्प की दृष्टि से देखने पर भी यह मंदिर अत्यंत गौरवमय लगता है। मंदिर के बाहरी हिस्सों पर अनेक प्रकार की कलात्मक मूर्तियां खुदी हैं । जिनमें लतावितान बनाकर सुंदर सज्जा का प्रदर्शन किया गया है।

पत्थर के स्तम्भों से बने ऊंचे द्वार से होकर मंदिर प्रांगण में प्रवेश किया जाता है। निर्माण की दृष्टि से मुख्य मंदिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है निज मंदिर, सभाग्रह और शिखर भाग। पांच मंजिल के प्रमुख मंदिर के प्रकोष्ठ में मुख्य देवता भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।

कसौटी वाले काले पत्थर से बनी बांके बिहारी की मूर्ति सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है। शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी प्रतिमा को मूल्यवान वस्त्रों तथा रत्नजटित आभूषणों से सुसज्जित रखा जाता है जिसकी शोभा प्रतिदिन आरती के समय देखते ही बनती है।

लगभग 50 मी० ऊंचे इस मंदिर के शिखर पर रंगीन कपड़े की लंबी ध्वजा आसमान में फहराती रहती है। मुख्य मंदिर की परिक्रमा करते समय श्री राधा, रूक्मणि, सत्यभामा और जामवंती के छोटे-छोटे मंदिरों के दर्शन होते हैं। इस मंदिर के अहाते में ही श्री आदि शंकराचार्य का धर्मपीठ भी स्थित है।

शंकराचार्य पीठ – पवित्र धाम द्वारकापुरी अपने शंकराचार्य पीठ के लिए पूरे हिंदू जगत में प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय स्तर पर समाज और संस्कृति के मामलों में यहां के पीठासीन आचार्य के निर्णय को विशेष मान्यता दी जाती है। द्वारकापुरी धाम के प्रमुख मंदिर की व्यवस्था एक धार्मिक ट्रस्ट के अधीन है।

आदि शंकराचार्य पीठ के अध्ययन के अलावा इस संस्थान द्वारा मंदिर में पूजा-अर्चना तथा अन्य कार्यो की देख-रेख की जाती है। मंदिर में तथा आदि शंकराचार्य पीठ में चढ़ावा तथा दानराशि का भी हिसाब-किताब भी होता है। भक्तजनों से दक्षिणा या दान राशि प्राप्त करने के बाद प्रसाद और प्राप्ति पत्र देने का नियम है।

बेट द्वारका (Bet dwarka) – श्रीकृष्ण की राजधानी द्वारिका नगरी से थोड़ी दूर ऊंची पहाड़ी पर राज-निवास था। ऐसी मान्यता है कि यहां श्रीकृष्ण जी के बालसखा सुदामा आये और उनका स्नेह और दर्शन पाकर धन्य हो गये।

कालक्रम से द्वारकापुरी तथा श्रीकृष्ण निवास की भूमि धंसती चली गई और बीच में सागर का जल लहराने लगा। इसके फलस्वरूप अब यह निवास मंदिर एक टापू पर स्थित है जिसे ‘बेट द्वारिका’ या द्वारिका द्वीप भी कहते हैं।

द्वारिका धाम से करीब 30 किमी० की दूरी पर ओखा मंदिरगाह के पास सागर में बेट द्वारका पहुंचने के लिए ओखा से मोटरबोट या नाव से करीब दो किलोमीटर की समुद्री यात्रा करनी होती है।

सागर की लहरों पर नाव से की जाने वाली यात्र काफी आनंददायक होती है। नाव के सहारे ऊपर समुद्री पक्षियों के समूह उड़ते रहते हैं । इसके नीचे जल में मछलियों की झुंड तैरते रहते हैं।

dwarika-puri-dhaam-hinduon-ke-chaar-pramukh-dhaamon-mein-se-ek-hai.

बेट द्वारका में गलियों से होकर मुख्य मंदिर पहुंचने का रास्ता है। यहां श्रीकृष्ण के साथ महारानी रूकमणि तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इस प्राचीन मंदिर में यात्रियों को दर्शन की सुविधा देने के लिए अच्छी व्यवस्था की गई हैं।

बेट द्वारका तथा द्वारकापुरी द्वारकाधीश के मंदिर के निकट बाजार में अनेक दुकानें सजी रहती हैं जिनमें पूजा के सामान एवं कई प्रकार की कलात्मक और सजावट की वस्तुएं बिकती रहती हैं।

द्वारकापुरी से ओखा जाने के रास्ते में सड़क पर ही रूक्मणि देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है जिसकी बाहरी दीवारों पर विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां खुदी हैं । किंतु सागर तट से आने वाली लवणयुक्त तेज हवाएं इन मूर्तियों को क्षीण करने लगी हैं।

यहां एक ओर दूर तक फैली सागरीय-भूमि पर मछुआरों की झोपडिय़ां हैं तो दूसरी ओर रासायनिक खाद्य और नमक बनाने का टाटा का विशाल कारखाना स्थित है।

कैसे पहुंचें द्वारिका धाम और कहां ठहरें? :

भारत के पश्चिमी छोर पर स्थित द्वारकाधाम पहुंचने के लिए अब सड़क और रेल लाइन की सुविधाएं उपलब्ध हैं। द्वारका रेलवे स्टेशन वीरमगाम और ओखा ब्रांचलाइन पर स्थित है जो मुम्बई से 1000 हजार किमी० तथा दिल्ली से 1400 किमी० दूरी पर स्थित है।

द्वारका के पास जामनगर में हवाई अड्डा भी है । जहां से 150 किमी० का मार्ग तय करके द्वारका पहुंचा जा सकता है। गुजरात के मुख्यनगर अहमदाबाद से सड़क और रेल द्वारा भी द्वारिका पहुंचा जा सकता है। यह दूरी 450 किमी० है।

श्री द्वारकाधाम में अनेक धर्मशालाएं, होटल तथा अतिथिगृह हैं। पर्यटन विभाग की ओर से भी यात्रियों के ठहरने के लिये ‘तोरण’ निवास स्थान है। यहां रहकर दर्शनीय स्थानों की सैर के अलावा सागर में स्नान का आनंद भी लिया जा सकता है।

मुम्बई से 1000 किमी० ——————-दिल्ली से 1400 किमी०

अशोक वाटिका में जब रावण माता सीता जी के पास आता था तो वह तिनके को ओर क्यों देखती थीं

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी