विवाह के 8 प्रकार कौन कौन से हैं?

विवाह के 8 प्रकार कौन कौन से हैं?

विवाह के 8 प्रकार कौन कौन से हैं?

धर्मशास्त्र की दृष्टि से संक्षेप से आठ प्रकार के विवाह माने गए हैं।

ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह, प्राजापत्य विवाह, आसुर विवाह, गांधर्व विवाह, राक्षस विवाह अथवा पैशाच विवाह।

ब्रह्म विवाह – कन्या को वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत करके सजातीय योग्य वर के हाथ में हाथ देना ब्रह्म विवाह कहलाता है।

दैव विवाह – अपने घर पर देवयज्ञ करके यज्ञांत में ऋत्विज् को अपनी कन्या का दान करना दैव विवाह कहा गया है।

आर्ष विवाह – वर से एक गाय और एक बैल शुल्क के रूप में लेकर कन्यादान करना आर्ष विवाह बताया गया है।

प्राजापत्य विवाह – वर और कन्या दोनों साथ रहकर धर्माचरण करें, इस बुद्धि से कन्यादान करना प्राजापत्य विवाह माना गया है। भक्तों के घर भी सांवरे आते रहा करो भजन

आसुर विवाह – वर से मूल्य के रूप में बहुत-सा धन लेकर कन्या देना आसुर विवाह माना गया है।

गांधर्व विवाह – वर और वधू दोनों एक-दूसरे को स्वेच्छा से स्वीकार कर लें, यह गांधर्व विवाह है।

राक्षस विवाह – युद्ध करके मार काट करके रोती हुई कन्या को उसके भाई बांधवों से छीन लाना राक्षस माना गया है।

पैशाच विवाह – जब घर के लोग सोए हो अथवा असावधान हो इस दशा में कन्या को चुरा लेना पैशाच विवाह है।

स्वायम्भुव मनु का कथन है कि इनमें बाद वालों की अपेक्षा पहले वाले विवाह धर्मानुकूल हैं।

पूर्व कथित जो चार विवाह – ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह, प्राजापत्य विवाह उन्हें ब्राह्मण के लिए उत्तम माना गया है। और ब्रह्म विवाह से लेकर गांधर्व विवाह क्रमश छः विवाह क्षत्रियों के लिए धर्मानुकूल हैं। तेरी मंद मंद मुस्कनिया भजन हिंदी लिरिक्स

राजाओं के लिए तो राक्षस विवाह का भी विधान है। वैश्यों और शूद्रों में असुर विवाह ग्राह्रा माना गया है। अंतिम पांच विवाहों में तीन तो धर्म सम्मत है और दो अधर्मरूप माने गए हैं। पैसाच विवाह और आसुर विवाह कदापि करने योग नहीं है। इस विधि के अनुसार विवाह करना चाहिए यह धर्म का मार्ग बताया गया है।

गांधर्व और राक्षस दोनों विवाह क्षत्रिय जाति के लिए धर्मानुकूल ही है। अतः उनके विषय में तुम्हें संदेह नहीं करना चाहिए। वे दोनों विवाह परस्पर मिले हो या प्रथक-प्रथक हो, क्षत्रियों के लिए करने योग्य ही हैं। इसमें संशय नहीं है। तेरी भोली सी सूरत सांवरियां हिंदी भजन


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