बरसाना दर्शन-बरसाना में घूमने की जगहें कौन कौन सी है?

बरसाना दर्शन-बरसाना में घूमने की जगहें कौन कौन सी है?

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बरसाना दर्शन-बरसाना में घूमने की जगहें कौन कौन सी है?

बरसाना दर्शन-बरसाना में घूमने की जगहें कौन कौन सी है? : भगवान श्री कृष्ण प्राणप्रिया आराध्य देवी और साक्षात मां लक्ष्मी स्वरूपा श्री राधा जी की जन्म स्थली ब्रज भूमि बरसाना मैं घूमने की जगह और यहां के प्रसिद्ध स्थल को हिंदू तीर्थ स्थलों में सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक स्थल माना गया है। बरसाना में श्री राधा जी का जन्म हुआ था और यहां पर होली जन्माष्टमी राधा अष्टमी को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।

ब्रज धाम के (84) चौरासी कोस में बरसाना धाम भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित है। जहां श्री कृष्ण और राधा रानी की जन्मस्थली है। राधा-कृष्ण ने जन्म लेकर धरती लोक को धन्य किया था उन्होंने यहीं पर अपने बालपन की अनेकों लीलाएं तथा रासलीला की थीं। मथुरा जिले में ब्रजधाम 84 कोष में बरसाना में घूमने की जगह में मथुरा, वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन, बरसाना और नंदगाव आते हैं। यह भी पढ़ें : चतुर्युग अनुसार भिन्न-भिन्न (वेद) व्यासों के नाम!

जहां श्री राधा-कृष्ण गोपियों और बाल सखा संग कई प्रकार की लीलाएं की थीं। बरसाना और नंद गांव में कृष्ण कन्हैया और श्री लाडली राधा ने अपने बचपन के कई साल यहीं पर बिताए। यही पर राधा कृष्ण का मिलन हुआ देश प्रेम और सभी लीलाएं बरसाना में ही हुईं। चाहे वह रासलीला हो मटकी फोड़ लीला हो। यह भी पढ़ें :  भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन-कौन से हैं

बरसाना में घूमने की प्रसिद्ध जगह :

चलिए आज हम जानते है राधा जन्म स्थली यानि की ब्रज धाम की यात्रा तथा बरसाना में घूमने की जगह और इनसे जुड़े रहस्य के बारे में जो आज भी बहुत से लोगो रहस्य ही है। बरसाना में घूमने की प्रसिद्ध जगह : ब्रज-भूमि में बहुत सी ऐसी रहस्यमयी घटनाएं हैं जिसे सुनकर ज्यादा लोगों को विश्वास नहीं होता परंतु मथुरा आने के बाद उन्हें इसका एहसास हो जाता है। यह भी पढ़ें : गोवेर्धन पर्वत की पारिक्रमा क्यों करते है?

कि मथुरा में वास्तव में दैविक और सिद्ध जगह हैं। ब्रह्मा जी के हजारों वर्षों की तपस्या करने के पश्चात श्री राधा जी ने उन्हें ब्रज धाम की धरती में स्थान दिया जो आज ब्रह्मांचल पर्वत के नाम से जाना जाता है। आज हम श्री राधा जन्मस्थली यानी कि बरसाना मैं घूमने की जगह और उनसे जुड़े अनेकों रहस्य के बारे में बताते हैं जो आज भी रहते ही हैं।

राधा रानी मंदिर कीर्ति मंदिर
नंद गांव बरसानादोउ मिलवन
मोर कुटी बरसानागहवर वन
कुशल बिहारी मंदिरमान मंदिर चिकसौली गांव
सांकरी खोर बरसाना प्रिया कुंड (पीली पोखर)
रतन कुंड श्याम शिलाभोजन थाली मंदिर
फिसलनी शिला रंगीली गली
राधा कृष्ण बाग ललिता सखी मंदिर
चित्रासखी मंदिर बरसाना रंगदेवी मंदिर
चंपकलता सखी मंदिर प्रेम सरोवर
Radha Rani Mandir Barsana
Radha Rani Temple in Barsana

राधा रानी मंदिर बरसाना :

द्वापर युग में पृथ्वी लोक को पवित्र करने के लिए मानव स्वरुप में माता लक्ष्मी ने राधा रानी के रूप में बरसाना की धरती पर जन्म लिया था। राधा रानी का जन्म श्री कृष्ण के जन्म से पूर्व 3 बर्ष और 11 महीने पहले बरसाना के राजा बृजभानु और माता कीर्ति के घर जन्म लिया था। इनका जन्म माता कीर्ति के गर्भ से नहीं हुआ था। बल्कि ये एक बालिका के रूप में दैवीय रूप से प्रकट हुयी थी।

ब्रज-भूमि में बरसाना का सबसे प्रसिद्द स्थान है राधा रानी मंदिर ! बरसाना में सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते है। बरसाना के इस मंदिर तक पहुंचने से काफी दूर पहले से ही ऊँची पहाड़ी पर बना यह भव्य मंदिर दिखाई पड़ने लगता है। पहाड़ी के शिखर पर बने भव्य मंदिर तक पहुंचने के लिए दर्शनार्थि सीढ़ियों के माध्यम से मंदिर जाते है। राधा मंदिर तक पहुंचने के लिए 2 रास्ते है पैदल रास्ता, कार एवं बाइक से बड़े आसानी से जा सकते है।

Kirti Mandir Barsana
Kirti Mandir Barsana

कीर्ति मंदिर :

बरसाना में कीर्ति मंदिर को रंगीली महल के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर परिसर के अंदर बनी सुन्दर झांकियो के माध्यम से आकृतियों को राधा-कृष्ण के जीवन लीला को बड़े सुन्दर ढंग से मूर्ती रूप में चित्रित (दर्शाया) किया गया है। इसका निर्माण जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा करवाया गया है। यह भी पढ़ें : भक्त का प्रेम-भाव देखकर राधा रानी से रहा नहीं गया

कीर्ति मंदिर के गर्व गृह में राधा रानी की माँ कीर्ति जी विराजमान है। आधुनिक विज्ञान के युग में निर्मित इस मंदिर की चित्रकारी, भव्यता और खूबसूरत कलाकारी अपने आप में अलग अनूठी है। मंदिर परिसर के भीतर सुन्दर झांकिया जिसमे श्रीं राधा-कृष्ण और उनकी सखियां समेत विराजमान प्रतिमाओं में जीवंत लगती है। मंदिर में श्री राधा कृष्ण की कई झाकियां भी देखने को मिलेंगी। इन झांकियो को पास से देखने में ऐसा लगता है की मूर्ति बोल पड़ेंगी।

Nand Gaon
नंद गांव बरसाना :

दर्शनार्थी नन्द महल में कान्हा जी के पूरे परिवार और सखाओं को एक साथ दर्शन कर सकते है ऐसा अद्भुत और दुर्लभ दृश्य आपको कही नहीं देखने को मिलेगा। बरसाना में नन्द गांव को श्री राधा रानी की ससुराल भी कहा जाता है। ये मंदिर आज से करीब 5 हजार बर्ष पहले यशोदा मैया और बाबा नन्द का घर हुआ करता था। यह भी पढ़ें : वृन्दावन धाम की महिमा अतुलनीय है

मंदिर के गर्व गृह में यशोदा मैया, नन्द बाबा और श्री कृष्ण के बाल सखा और राधा रानी के अलावा बलराम और उनकी माता और पत्नी सभी एक साथ सुन्दर मूर्तियों के रूप में विराजमान है। ऐसा अद्भुत और अलौकिक दर्शन आपको बरसाना के अलावा पूरे भारत में कही नहीं देखने को मिलेंगे।

राधा मंदिर से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नन्द गांव जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने माता यशोदा के और नन्द बाबा के घर अपनी सुन्दर बाल लीलाएँ की थीं।

दोउ मिलवन :

भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी बरसाना के दोउ मिलवन नामक स्थान में पहली बार मिले थे। बरसाना के नन्द गांव में स्थित दोउ मिलवन नाम की जगह है जहाँ अपने बाल्य काल में राधा और श्याम का पहली बार एक दुसरे से मिलन हुआ था। इसीलिए इस जगह का नाम दोउ मिलवन है । ये जगह नन्द गांव में ही पड़ती है आप चाहे तो बरसाना की यात्रा में दोउ मिलवन को अपने दार्शनिक स्थल में शामिल कर सकते है। यह भी पढ़ें : 33 कोटि देवी-देवता है या 33 करोड़ I

मोर कुटी बरसाना :

एक बार श्रीराधा रानी और कृष्ण ने मोर के रूप में मनमोहक नृत्य किया था उसके दर्शन ब्रह्मांचल पर्वत पहाड़ी पर मोर कुटी में होते है जहाँ आपको इनके अनन्य प्रेम का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। ब्रह्मा जी के हजारो बर्षो की कठोर तपस्या के बाद राधा ने उन्हें पृथ्वी लोक ब्रज धाम में ब्रह्मांचल पर्वत की उत्पत्ति की थी। यह भी पढ़ेंरामायण में कौन सा पात्र किस देवता का अवतार था?

जहाँ आज भी ब्रह्मा जी वास करते हैं मोर कुटीर तक पहुंचने के लिए ब्रह्मांचल पर्वत पहाड़ी के गलियारों से होते हुए दर्शनार्थी राधे-राधे का ज्ञाप करते हुए ब्रजधाम के मोर कुटी पर्वत की श्रृंखला तक पहुंचते है। जहाँ उन्हें ब्रह्मा जी के दर्शन होते है। आप यहाँ पर इसकी अनुभूति कर सकते है की किस प्रकार राधा कृष्ण यहाँ पर मोर के रूप में नाचें होंगे ।

गहवर वन :

यहीं से राधा-कृष्ण का रास मंडल इसी वन में राधा-कृष्ण का श्रृंगार करतीं थीं। ब्राह्मणांचल पहाड़ी पर बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि राधा रानी अपने कन्हैया का श्रृंगार करती थीं। पौराणिक कथाओं में रसिक और स्वामी हरिदास जी ने गहवर वन की लीलाओं का बड़े ही सुंदर शब्दों में इस वन का वर्णन किया है।

गहवर वन की बॉस की आस करे शिव शेष ।
बाकी महिमा कोइ कहे यहाँ श्याम धरे सखी वैश ।।

और साथ में आप गहवर वन के ये स्थान भी देख सकते है। मोर कुटी, गोपसवन्त महादेव मंदिर, मान बिहारी मंदिर,रास मंडल, रास सरोवर, गोपी महल। निकुंज गहवर वन में राधा जी की 8 सखियाों की मूर्तियां प्राकृतिक हरियाली से सजीव सी लगती हैं, जो यहां आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। यह भी पढ़ें : ब्रज की महारानी श्री राधा रानी के नाम का गुणगान

Kushal Vihari Mandir
Kushal Vihari Mandir Barsana
कुशल बिहारी मंदिर :

बरसाना के प्रसिद्ध मंदिरों में कुशल बिहारी यानी श्री कृष्ण का बांके बिहारी स्वरूप का मंदिर यहां के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जहां पर आपको श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे।

Maan Mandir Gharvan Barsana
मान मंदिर चिकसौली गांव:

बरसाना के मान मंदिर में ऐसी मान्यता है कि एक बार राधा रानी कान्हा से नाराज होकर एक गुफा में बैठ गईं, उन्हें ढूंढ़ते-ढूंढते जब श्री कृष्ण जी यहां पहुंचे तो वे उन्हें मानाने के लिए उनके चरणों के पास बैठ गए थे।

एक बार राधा ने कृष्ण से कहा कि कान्हा, मैं आज कैसी लग रही हूँ, तो कृष्ण ने कहा कि सुन्दर मुख का स्वरूप चन्द्रमा की भांति लग रहा है, तब राधा ने कहा कि आपने हमारी तुलना चन्द्रमा से क्यों की, उसमें तो दाग है। लेकिन इसी बात पर क्रोधित होकर राधा जी एक गुफा में जाकर बैठ जाती हैं, तब श्री कृष्ण जी अपनी राधिका को खोजते हुए इसी गुफा में मानाने उनके चरणों के पास बैठ गए थे, इसीलिए इसे मान मंदिर कहा जाता है। यह भी पढ़ें : भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन-कौन से हैं

बरसाना के इस प्राचीन मंदिर में भक्तगण गुफा के अंदर राधे श्याम के अनोखे प्रेम शिला (स्तंभ) के दर्शन करते हैं। जब भी आप बरसाना के दर्शनीय स्थलों पर घूमने जाएं तो चिकसौली गांव में स्थित मान मंदिर और उसकी गुफा में प्रेम शिला (स्तंभ) के दर्शन अवश्य करें।

सांकरी खोर बरसाना :

सांकरी खोर आज भी इस पर्वत से आती है दूध और दही की सुगंध, जहां श्रीकृष्ण ने फोड़ी थी चंद्रावली की मटकी। जिस जगह मटकी तोड़ी जाती थी उस पहाड़ी के शिला से आज भी दूध दही की सुगंध अनुभव कर सकते है यह भी पढ़ें : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग का संक्षिप्त ज्ञान

इसी पहाड़ी की चोटी पर बैठकर भगवान श्री उन 16 गांवों की निगरानी करते थे जहां से गोपियां दही की हांडी लेकर निकलती थीं। सबसे पहले गोपियों से उनके सखाओं द्वारा दही दान करने को कहा जाता था। यदि माखन देने से इंकार कर दिया तो मटकी को फोड़ दिया करते थे।

मटके केवल इस भाव तोड़े जाते हैं कि अगर दूध, दही, माखन कंस के यहां ले जाया जाएगा तो उसके सैनिक बलवान हो जाएंगे और बृजवासी दुर्बल हो जाएंगे, फिर समय आने पर जब युद्ध होगा तो ब्रज के सैनिक उनका सामना कैसे कर पाएंगे। यह भी पढ़ें : भगवान अपने भक्तों की रक्षा कैसे करते हैं I

सकरी खोर पहाड़ी में देखने के लिए भगवान कृष्ण के बालस्वरूप में भगवान कृष्ण के पदचिह्न जिसे मथुरा की भूमि पर जाकर स्पर्श किया जा सकता है। राधा कृष्ण के चरण चिन्हों का स्पर्श होना बड़े सौभाग्य की बात है।

इसके अलावा कुछ अन्य निशान भी यहां मौजूद हैं, जिनमें बलराम की नाग शिला, सुरभि गाय के पदचिह्न, कामधेनु गाय के पदचिह्न, सिंघ के रूप में बलदाऊ शिला शामिल हैं। सकरी खोह बरसाना और चिकसौली के बीच स्थित है

प्रिया कुण्ड (पीली पोखर) :

श्री राधा रानी की सुंदरता और उनके गुणों को देखकर यशोदा मैया ने किशोरी जी श्री राधा रानी के हाथों को पीले रंग से रंग दिया। श्रीराधा मन ही मन अत्यंत प्रसन्न हुईं, किन्तु जब वे अपने पिता के घर बरसाना लौट रही थीं, तो उन्हें कुछ लज्जा का अनुभव हुआ। उन्होंने इस कुंड में अपने हाथ धोए, जिससे इस कुंड का पानी पीला हो गया। इसलिए इस कुंड को पीली पोखर कहा जाता है। इसे प्रिया कुंड भी कहते हैं। यह भी पढ़ें : राधा साध्यम साधनं यस्य राधा मंत्र हिंदी लिरिक्स

यह बरसाना में स्थित है, श्री राधा रानी मंदिर और रंगीली महल के बीच एक छोटा सा पुल है। पुल से बाहर जाने पर 1 किमी अंदर जाने पर आपको पीला पोखर मिलेगा। यह रंगीली महल, बरसाना के बहुत करीब है। 40 फीट गहरी इस सरोवर के बारे में मान्यता है कि सरोवर का पानी कई बार पूरी तरह से खाली हो चुका है, लेकिन दोबारा पानी भरने पर भी इसका रंग मेंहदी के रंग जैसा ही रहता है।

रतन कुण्ड श्याम शिला :

बरसाना में श्याम शिला और रतन कुंड आज भी मौजूद है। श्याम शिला जहाँ कान्हा बैठकर बंसी बजाया करते थे पहाड़ी के ऊपर से कान्हा बासुरी की मधुर धुन बजाते और बंसी की धुन सुनने के लिए सारा ब्रज मंडल उमड़ जाता था। बांसुरी की धुन सुनते ही श्री राधा ब्रज के सभी गोप, गोपियां, गायें, पशु-पक्षी दौड़े चले आए। इसी जगह के पास रतन कुंड पड़ता है।

रतन कुंड के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां प्यारी राधा रानी ने मोती बोए थे। कहा जाता है कि जब राधा रानी के घर से भगवान कृष्ण के लिए रिश्ता जाता है नन्द गांव। तो स्वीकृति के रूप में राधा के पिता वृषभानु जी ने मोतियों के बहुत सारे हार भेजे थे।  यह भी पढ़ें : राधे तेरे चरणों की गर धूल जो मिल जाए लिरिक्स

नन्द गांव में रिश्ते की स्वीकृति के बाद नन्द जी और यशोदा जी ने और मोती मिलाकर बरसाना को उपहार स्वरूप भेजा था तब उन सभी मोतियों को राधा रानी ने रतन कुण्ड में बोयी थीं । उसी जगह को आज रतन कुंड कहा जाता है । इस जगह में मोतियों के पेड़ो से पूरा जंगल भरा हुआ है। उन्ही मोतियों को श्री कृष्ण ने नन्द गांव में बोया था जिसे मोती कुंड कहते है ।

भोजन थाली मंदिर :

बरसाना से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चौरासी कोस ब्रज के कामवन नामक स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के दूध पीने के कटोरे देखने को मिलेंगे। मंदिर के पास के खूबसूरत वन में आपको मोतीयों के वृक्ष के दर्शन प्राप्त हो जायेगें। यह भी पढ़ें : सारे तीरथ धाम आपके चरणों में हिंदी भजन

मथुरा ब्रज धाम की खास बात यह है कि जहां-जहां कृष्ण की लीलाएं हुई हैं, वहां-वहां मोतियों के पेड़ जरूर उग आए हैं। कामवन में द्वापर युग के कई ऐसे रहस्यमय स्थान हैं जहां घूमने और घूमने के लिए आपको वातावरण में प्रकृति की सुंदरता देखने को मिलेगी।

कहा जाता है कि कन्हैया यहां चोरी का दूध पी रहे थे कि अचानक दूध का कटोरा गिर गया और दूध की धार नीचे की ओर गयी, जहां-जहां दूध की धार बहती हुई गयी उसके निशान विशाल चटटनों में आज भी देखने को मिलते है, ये उस समय की साक्षी घटनाओं में से एक है। जिससे यहां खीर सागर का निर्माण हुआ।

फिसलनी शिला :

पूरे ब्रज मंडल में इस स्थान का बहुत महत्व है, पहाड़ी की चोटी से लेकर ढलान वाली चट्टानों पर, चट्टान में खुदी हुई फिसलने की जगह, जिसे कन्हैया ने बनवाया था। फिसलन शिला बरसाना से 13 किलोमीटर और भोजन थाली मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन बनी हुई है। कान्हा और उनके ग्वाल मित्रों के फिसलने का निशान है, जिसका काफी धार्मिक महत्व बहुत होता है।

रंगीली गली :

बरसाना में राधा और उनकी आठ (अष्ट) सखियों के साथ होली खेलने के लिए कान्हा अपने बाल स्वरूप में सखाओं के साथ बरसाना की इस ऐतिहासिक गली में रंग पंचमी मनाने जाते थे, जो आज के घटनाक्रम में भी मौजूद है। बरसाना की यह संकरी रंगीली गली पर्यटकों को होली मनाने के लिए आमंत्रित करती है। यह भी पढ़ें : मनुष्य के लिए भगवान का साथ और विश्वास दोनों ही जरूरी है

राधा कृष्ण बाग :

बरसाना पर्यटन में राधा मंदिर के दर्शन करने के बाद भक्त अपनी अगली यात्रा की ओर राधा कृष्ण बाग के लिए निकल जाते हैं, जहां आज भी आप भगवान श्री कृष्ण और राधा की प्रेम लीला के साक्षात् दर्शन कर सकते हैं।

बाग में अनेक पेड़-पौधे स्थित हैं, उनमें से कुछ आज से लगभग 5 हजार वर्ष पुराने हैं, जो द्वापर युग के समय के माने जाते हैं, जो आज भी राधा कृष्ण की प्रेम लीला के साक्षी हैं। एक प्राण दो देहि – जो एक कहावत है, राधा कृष्ण हैं और कृष्ण राधा हैं। बरसाना दार्शनिक स्थल में राधा-कृष्ण बाग में मौजूद पीपल और मोरछली के दो वृक्ष युगलरूप पेड़ हैं जो आपस में एक दूसरे में मिल जुड़ रहे हैं। यह भी पढ़ें : श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हिंदी भजन लिरिक्स

ब्रज के इस वृक्ष के बारे में कहावत है। कि एक बार इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा विराजमान थे और सूर्य बहुत तेज था, इसलिए कृष्ण ने राधा रानी को धूप से बचाने के लिए इस वृक्ष को उत्पन्न किया था। इस कारण बरसाना में इस वृक्ष का अस्तित्व द्वापर युग से माना जाता है।


ललिता सखी मंदिर :

श्री कृष्ण और उनकी परम शक्ति राधा रानी और उनकी 8 सखियों के बिना ब्रजमंडल की लीला अधूरी है। अष्ट (आठ) सखियों में सबसे बड़ी ललिता जो राधा से 2 दिन बड़ी थीं। उंचा गांव स्थित बरसाना में ललिता देवी का मंदिर स्थित है जहां ललिता का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। बरसाना में घूमने के लिए दर्शनार्थी यहां भी पहुंचते हैं। यह भी पढ़ें : दुनिया में देव हजारों है हिंदी लिरिक्स

इस मंदिर में दर्शनार्थियों के लिए पूजा अर्चना का बहुत महत्व दिया गया है क्योंकि राधा की सबसे बड़ी (जेष्ठ) सखी वहीं है और राधे के भक्त उनकी सखी को देखने जाते हैं।

चित्रासखी मंदिर बरसाना :

बरसाना के चिकसौली गांव में राधा रानी की सखी कलाप्रेमी चित्रा का मंदिर देखा जा सकता है। पुराणों में कहा गया है कि कृष्ण की पहली प्रतिमा राधा की सखी चित्रा ने बनाई थी।

चित्रासखी मंदिर का रहस्य – चित्रासखी मंदिर का रहस्य कहा जाता है कि एक बार राधा के भाई ने यशोदा मैया से भगवान श्री कृष्ण की एक तस्वीर मांगी, तब यशोदा ने इस सखी को बुलाकर कृष्ण की एक बहुत ही सुंदर छवि बनाने को कहती हैं। और बदले में उन्होंने चित्रासखी को मनमाना वचन दिया देती हैं। यह भी पढ़ें : महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते

तब चित्रा ने यशोदा जी से कहा कि मैया मुझे कान्हा को दे दो। यह सुनकर बचनबद्ध यशोदा माता मूर्छित हो गईं, वो भला कैसे अपने लाडले को किसी और को सौंप सकती थीं, जिससे यशोदा अनन्य प्रेम करती थीं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने चित्रासखी से कहा कि तुम माता को दिया हुआ वचन लौटा दो, उसके बदले में मैं वचन देता हूं कि मैं तुम्हारे कुंज में सदैव एक रूप में निवास करूंगा।

चित्रासखी मंदिर में राधे श्याम की सेविका के रूप में चित्रासखी के दर्शन होते है। आती है। मंदिर के अलावा प्राकृतिक वातावरण के बीच एक खूबसूरत बगीचा है, आप चाहें तो यहां कुछ देर आराम कर सकते हैं।

चंपकलता सखी मंदिर :

चंपकलता पूरे ब्रज मंडल में मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थीं। उनका जन्मस्थान संकेत है और करहला उनकी ससुराल थी। चंपकलता कंगन कुंड से द्वारिकाधीश के विगृह की उत्पत्ति हुई, जिसके दर्शन आज भी यहां होते हैं। बरसाना से 6 किलोमीटर दूर करहला गांव में चंपकलता मंदिर बना हुआ है।

रंगदेवी मंदिर :

राधा की चौथी सखी थी रंग देवी, यह सखी कान्हा को राधा के साथ उन्ही की तस्वीरों में रंग भरकर खूब रिझाती थी। इस मंदिर का महत्व यह है कि राधा रानी के संग इनकी लीला श्याम जी को रिझाती या चिढ़ाती थी। यह मंदिर बरसाना में स्थित है।

Prem Sarovar in Barsana
प्रेम सरोवर :

जहां राधा रानी श्रीकृष्ण से मिलने आती थीं, नंद गांव से बरसाना रोड पर गाजीपुर गांव में स्थित प्रेम सरोवर, जहां सुदामा कुटी के भी दर्शन प्राप्त होते है। कृष्ण अपने गांव नंद गांव और राधा जी अपने गांव बरसाना से (उसके बीच में स्थित गाजीपुर में) प्रेम सरोवर जहां रोज कृष्ण और राधा मिलने आते थे। यह भी पढ़ें : हमें अपनी संतानों के नाम भगवान के नाम पर रखना चाहिए।

गर्ग पुराण के अनुसार – एक बार किशोरी राधा रानी यहां श्याम सुंदर से मिलने आई थीं और उस दिन श्याम नहीं आए थे, राधा ने उनके वियोग में बहुत आंसू बहाए और उनके अश्रुओं से यह सरोवर बन गया। कहा जाता है कि प्रेम सरोवर के दर्शन करने वाले भक्तों को किशोरी राधा श्री के चरणों में दिव्य भक्ति प्राप्त होती है। आप प्रेम सरोवर के पास सुदामा कुटी भी जा सकते हैं।

बरसाना कब और कैसे जाएं? –

वैसे तो साल भर पर्यटक वरसाना घूमने आते रहते हैं, लेकिन बरसाना घूमने का सबसे अच्छा समय राधा अष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी होता है और होली के दौरान सबसे ज्यादा शैलानी इन तीन दिनों में बरसाना घूमने आते हैं। लेकिन आप बरसाना आने से पहले होटल भी बुक कर सकते है। क्योंकि सभी होटलों की एडवांस बुकिंग चलती रहती है।

सड़क द्वारा यमुना एक्सप्रेसवे के माध्यम से दिल्ली से (वृंदावन से छाता से बरसाना) बरसाना की दूरी 170 KM है। और चेन्नई – दिल्ली राजमार्ग के माध्यम से बरसाना की दूरी 150 KM है।

बरसाना में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है लेकिन बरसाना मथुरा जिले के अंतर्गत आता है और मथुरा शहर रेलवे द्वारा पूरे भारत से जुड़ा हुआ है जहां सभी प्रमुख शहरों से ट्रेनें प्रतिदिन चलती हैं। कोसी कलां रेलवे एवं छाता रेलवे स्टेशन दिल्ली से मथुरा आ रही ट्रेन के रास्ते में पड़ता है। अगर आप बरसाना आना चाहते हैं तो आपको कोसी कलां एवं छाता रेलवे स्टेशन उतरना होगा। कोसी कलां बरसाना की दूरी 19 किलोमीटर है, छाता स्टेशन से बरसाना 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जिसे टैक्सी से तय किया जा सकता है। यह भी पढ़ें :भगवान शिव ने राम नाम कण्ठ में क्यों धारण किया है ?

हवाई यात्रा की बात करें तो यहां कोई एयरपोर्ट नहीं है, लेकिन दिल्ली के करीब होने के कारण इसकी कमी महसूस नहीं की जाती है। लेकिन अभी जेवर उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन एयरपोर्ट पर काम चल रहा है जो कि 2024 तक लॉजिस्टिक फ्लाइट्स के लिए तैयार हो जाएगा और 2024 के बाद पैसेंजर के लिए भी उपलब्ध होगा जेवर से बरसाना मात्र 70 किलोमीटर होगा।

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी