भगवान विष्णु के परमभक्त शेषनाग जी के रहस्य ?

भगवान विष्णु के परमभक्त शेषनाग जी के रहस्य ?

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भगवान विष्णु के परमभक्त शेषनाग जी के रहस्य ?

भगवान विष्णु के परमभक्त शेषनाग जी के रहस्य ?

भगवान विष्णु के परमभक्त शेषनाग जी के रहस्य ?

सेष सहस्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥
सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिन्धु सौमित्रि गुनाकर॥

भावार्थ – जो हजार सिर वाले और जगत के कारण (हजार सिरों पर जगत को धारण कर रखने वाले) शेषजी हैं, जिन्होंने पृथ्वी का भय दूर करने के लिए अवतार लिया, वे गुणों की खान कृपासिन्धु सुमित्रा नंदन श्रीलक्ष्मणजी मुझ पर सदा प्रसन्न रहें।

हमारे सनातन धर्म में भगवान विष्णु को पालनकर्ता कहा गया है। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु के दो रूप कहे गए है। एक तो उनका सहज एवं सरल स्वभाव है तथा अपने दूसरे रूप में भगवान विष्णु कालस्वरूप शेषनाग के ऊपर बैठे है।

भगवान श्रीविष्णु का यह स्वरूप थोड़ा भयामह अवश्य है। परन्तु भगवान विष्णु की लीलाएं अपरम्पार है। भगवान विष्णु अनेक शक्तिशाली शक्तियों के स्वामी है। उनके इन्ही में से एक अत्यधिक शक्तिशाली शक्ति है शेषनाग।

आज मैं आपको शेषनाग और नागों से जुड़े अनेक ऐसे रहस्यों के बारे में बताने जा रहे है जो शायद ही अपने पहले कभी सुने हो


प्रथम मान्यता के अनुसार –

नागराज अनन्त को ही शेषनाग कहा गया है। शेषनाग भगवान श्री विष्णु को अत्यन्त प्रिय है तथा उन्हें उनका भगवत्स्वरूप कहा जाता है। प्रलयकाल के समय जब नई सृष्टि का निर्माण होता है। तो उसमे जो शेष अवक्त शेष रह जाता है। हिंदू धर्मकोश के अनुसार वे उसी के प्रतीक माने गए हैं।

भविष्य पुराण में इनका एक हजार फन वाले सर्प के रूप में वर्णन किया गया है। ये जीव तत्व के अधिष्ठाता हैं और ज्ञान व बल नाम के गुणों की इनमें प्रधानता होती है। इनका आवास पाताल लोक के मूल में माना गया है। प्रलयकाल में इन्हीं के मुखों से भयंकर अग्नि प्रकट होकर पूरे संसार को भस्म करती है। Please Read-रामायण में कौन सा पात्र किस देवता का अवतार था?

ये भगवान श्रीविष्णु के पलंग के रूप में क्षीर सागर में रहते हैं और अपने हजार मुखों से भगवान का गुणानुवाद करते हैं। भक्तों के सहायक और जीव को भगवान की शरण में ले जाने वाले भी शेष ही हैं। क्योंकि इनके बल, पराक्रम और प्रभाव को गंधर्व, अप्सरा, सिद्ध, किन्नर, नाग आदि भी नही जान पाते इसलिए इन्हें अनंत भी कहा गया है।

ये पंचविष ज्योति सिद्धांत के प्रवर्तक माने गए हैं। भगवान के निवास शैया, आसन, पादुका, वस्त्र, पाद पीठ, तकिया और छत्र के रूप में शेष यानी अंगीभूत होने के कारण् इन्हें शेष कहा गया है। लक्ष्मण और बलराम इन्हीं के अवतार हैं जो राम व कृष्ण लीला में भगवान के परम सहायक बने।

एक वास्तविकता यह भी है की इन जिम्मेदारियों को पूरा करने में हमें अनेको परशानियों का सामना करना पड़ता है और शेषनाग रूपी परेशानियों को अपने कैद में कर भगवान सम्पूर्ण समाज को यही संदेश देना चाहते है की चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो परन्तु हमें सदैव अपने परेशनियों को वश में कर सरल एवं प्रसन्न रहना चाहिए।


द्वितीय मान्यता के अनुसार –

हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीश्वेतवाराह कल्प में सृष्टि सृजन के आरंभ में ही एक बार किसी कारणवश ब्रह्मा जी को बड़ा क्रोध आया जिनके परिणाम स्वरूप उनके आंसुओं की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं और उनकी परिणति नागों के रूप में हुई। इन नागों में प्रमुख रूप से अनन्त, कुलिक, वासुकि, तक्षक, काक्रोटम, महापदम् ,पदम्, शंखपाल है।

अपना पुत्र मानते हुए ब्रह्मा जी ने इन्हें ग्रहों के बराबर ही शक्तिशाली बनाया। इनमें अनंतनाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक मंगल के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के, महापद्म शुक्र के, कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं।

ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही भूमिका निभाते हैं। इनसे गणेश और रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में, महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु जी शैय्या रूप में सेवा लेते हैं। ये शेषनाग रूप में स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं। वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया है। Please Read Also-सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण

अतः नागों की पूजा करने से मनुष्य की जन्म कुंडली में राहु-केतु जन्य सभी दोष तो शांत होते ही हैं, इनकी पूजा से कालसर्प दोष और विषधारी जीवो के दंश का भय नहीं रहता। परिवार में वंश वृद्धि, सुख-शांति के लिए नए घर का निर्माण करते समय नींव में चांदी का बना नाग-नागिन का जोड़ा रखा जाता है।



33 कोटि देवी-देवता है या 33 करोड़ I

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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी