आखिर भगवान की माया क्या है?

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आखिर भगवान की माया क्या है?

देवर्षि नारद

ने एक बार विचार किया कि माया क्या है? जिस माया ने पूरे जगत को भ्रम में डाल रखा है, उसमें ऐसा क्या है ? मुझे यह जरूर जानना चाहिए । नारद जी ऐसा सोचकर वे भगवान विष्णु के पास गए । और बोले भगवन मेरी तीव्र जिज्ञासा है कि मुझे माया के विषय में अवश्य जानना चाहिए।

इस ब्रह्मांड में आप ही ऐसे देव हैं । जो मुझे यह बता सकते हैं । कि वास्तव में माया क्या होती है, और लोग जब माया के जाल में फंसते हैं । तो वे कैसा अनुभव करते हैं ? । भगवान विष्णु जी नारद की जिज्ञासा समझ गए। बोले जरूर बताऊंगा, थोड़ी प्रतीक्षा करो।

कुछ दिन बाद नारद और भगवान विष्णु यात्रा के लिए निकले। मार्ग में उन्होंने नारद से कहा थोड़ा जल लेकर आओ। नारद जी जल लाने के लिए चले गए । मार्ग में एक वृक्ष की छाया देखकर उन्होंने सोचा क्यों न थोड़ा विश्राम कर लूं । वे वहीं बैठ गए और उन्हें नींद आ गई। नींद में नारद जी ने एक सपना देखा । Please Read Also – राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई

वे एक घर का द्वार खटखटाते हैं । तभी दरवाजा खुलता है, और एक सुंदर युवती बाहर आती है। नारद जी उससे बातें करते हैं। वे उससे विवाह करना चाहते हैं। यह बात जब वे उस युवती से कहते हैं, तो वह भी सहमत हो जाती है। विवाह सकुशल संपन्न होता है। कुछ साल बाद उन्हें तीन पुत्र होते हैं।

बड़े आनंद से जीवन बीत रहा था कि एक दिन तेज बरसात होती है। नारद का घर बरसात सहन नहीं कर सका और पानी के बहाव में चला गया। उनकी पत्नी और बच्चे भी उसी में बह गए। नारद उस दृश्य को देखकर बहुत दुखी होते हैं, और उनकी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं।

नारद का यह रोना सिर्फ सपने तक ही सीमित नहीं रहा और वे हकीकत में रोने लगते हैं। तभी उनकी आंखें खुल गईं। न कहीं बारिश थी न पत्नी-बच्चे न बाढ़। सामने भगवान विष्णु विराजमान थे। Please Read Also – मानो तो मैं गंगा माँ हूँ, ना मानो तो बहता पानी हिंदी भजन

विष्णु बोले – नारद तुम जानना चाहते थे कि माया क्या होती है, लोग उसके वशीभूत होकर क्या-क्या करते हैं, सपने में तुमने जो देखा माया वही होती है । यह जगत मायापति की माया है। हम सब लोग उसी के अधीन हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इस माया के अस्त्र हैं । जो हर इंसान को कभी न कभी अलग अलग तरीकों से घायल करते रहते हैं।

इसलिए कोई कितना भी कहे कि मैं तो माया के पार चला गया हूँ। तो यह बात अत्यन्त दुष्कर है। इसके रंग रूप अनेक हैं। भाँति-भाँति के तौर तरीकों से इसे सबको मोहित करना खूब आता है।

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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी