अशोक वाटिका में जब रावण माता सीता जी के पास आता था तो वह तिनके को ओर क्यों देखती थीं I
अशोक वाटिका में जब रावण माता सीता जी के पास आता था तो वह तिनके को ओर क्यों देखती थीं I
यहां तक कि रावण ने श्री राम जी के वेश-भूषा में आकर माँ सीता जी को भ्रमित करने की कोशिश की I लाख कोशिश करने के बाद भी वह सफल नहीं हुआ I रावण थक हारकर जब अपने शयनकक्ष में गया I मंदोदरी बोली ! आप तो राम का वेश धर कर गए थे I फिर क्या हुआ ?
रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया I तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी I रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था I लेकिन जगत जननी माँ को आज तक कोई समझ नहीं सका I Please Read Also-बुराई करने वालों को जवाब देने में समय बर्बाद नही करना चाहिए
फिर रावण भी कैसे समझ सकता था I रावण एक बार फिर आया और बोला मैं ! तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूं I लेकिन तुम कैसी नारी हो I कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो I
क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है ?
तो जगत जननी माँ सीता जी का जवाब कुछ ऐसा था –
“सुन दशमुख खद्योत प्रकाशा
कबहु कि नलनी करही विकासा” I
इस दोहा का उत्तर समझिए –
जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता के साथ हुआ I तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ I बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया I जैसे कि एक प्रथा है ! कि नववधू जब ससुराल आती है I तो उस नववधू के हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है I ताकि जीवन भर घर में मिठास बनी रहे I
इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई I और समस्त परिवार राजा दशरथ सहित चारों भ्राता और ऋषि संत जी भोजन पर आमंत्रित थे I
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया और भोजन शुरू होने ही वाला था की जोर से एक हवा का झोंका आया I सभी ने अपनी-अपनी थाली संभाली I सीता जी यह देख रही थी I ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया I
माँ सीता ने उस तिनके को देख लिया I लेकिन अब खीर में हाथ कैसे डालें यह प्रश्न आ गया I माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूरकर जो देखा I तो वह तिनका जलकर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया I Please Read Also- रिश्तो को भी परखें,जरूरी नहीं जो सगे सम्बन्धी प्रेम का दिखावा करते हैं वह वास्तव में आपके साथ है
सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा I लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी का यह चमत्कार को देख रहे थे I फिर भी राजा दशरथ जी चुप रहे ! और अपने कक्ष में चले गए I और माँ सीता जी को बुलवाया I
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फिर राजा दशरथ बोले मैंने आज भोजन के समय आपके चमत्कार को देख लिया था I आप साक्षात जगत जननी का दूसरा रूप है I लेकिन आप एक बात मेरी जरूर याद रखना I आज आपने जिस नजर से उस तिनके को देखा था I
उस नजर से आप अपने शत्रु को भी मत देखना I इसलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था I तो वह उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात को याद कर लेती थीं I
यही था उस तिनके का रहस्य ! माँ सीता जी चाहती तो ! रावण को उसी जगह पर ही रख कर सकती थी I लेकिन राजा दसरथ को दिए हुए वचन से वह बंधी हुई थीं I इसलिए माँ सीता जी की एक नज़र से अर्थ का अनर्थ हो सकता था I यह माँ सीता जी अच्छी तरह जानती थीं I
इसलिए उन्होंने रावण को कभी अपनी नजरों के सामने आने नहीं दिया I इसलिए माँ सीता हमेशा तिनके को देखकर समय बिताती थीं I
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी