भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया?

भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया?

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भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया?

भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया? :-

भागवत में शुकदेवजी ने राधाजी का नाम नहीं लिया है। पर क्या भागवत में सचमुच राधाजी नहीं हैं। एक संत राधाजी का नाम भागवत में नहीं होने के पीछे इतना सुंदर कारण देख रहे हैं, कि पूरा भागवत राधामय हो जाएगा। राधाजी का नाम भागवत में न होने के भाव व्याख्यान बहुत सुंदर है ! आप इन भावों का आनंद लीजिए।

ज्ञानी और पंडित लोग कहते हैं। कि जिस समाधि भाषा में भागवत लिखी गई और जब राधाजी का प्रवेश हुआ तो व्यासजी इतने डूब गए कि राधाचरित लिख ही न सके। सच तो यह है कि जो श्लोक में वंदना की गई है। इसमें श्रीकृष्णाय में श्री का अर्थ है कि राधाजी को नमन किया गया।

शुकदेवजी पूर्व जन्म में राधाजी के निकुंज के शुक थे। निकुंज में गोपियों के साथ परमात्मा क्रीड़ा करते थे। शुकदेवजी सारे दिन श्रीराधे-श्रीराधे कहते थे। यह सुनकर श्रीराधे ने हाथ उठाकर तोते को अपनी ओर बुलाया तोता। और तोता राधाजी के पास आया। Please Read Also-हमारे शब्द, कार्य, भावनायें, गतिविधियाँ ही कर्म है।

तोता राधाजी के चरणों की वंदना करने लगा। राधाजी ने उठाकर तोते को अपने हाथ में ले लिया। प्रसन्न तोता फिर से श्रीराधे-श्रीराधे बोलने लगा। राधाजी ने कहा ! हे शुक, अब तुम राधे-राधे के स्थान पर कृष्ण-कृष्ण कहा करो। Please Read Also-नवधा भक्ति ! कैसे प्रभु श्रीराम द्वारा माता शबरी को प्राप्त हुई

यह मुझे ज्यादा प्रिय है। इस प्रकार राधाजी तोते को समझा रही थीं। उसी समय श्रीकृष्ण वहाँ आ जाते हैं। राधाजी ने उनसे कहा कि ये तोता कितना मधुर बोलता है। ऐसा कहते हुए शुक को ठाकुरजी के हाथ में दे दिया। राधाजी के द्वार पर राधा नाम रटने वाले को सीधे भगवान की कृपा छांव प्राप्त हो गई। वह उनके हाथ में पहुंचकर धन्य भाग्य हुआ।

इस प्रकार श्रीराधाजी ने शुकदेवजी का ब्रह्म के साथ प्रत्यक्ष संबंध कराया। जो ब्रह्म के साथ संबंध कराए, वही तो सद्गुरु होता है। इसीलिए शुकदेवजी की सद्गुरु श्री राधाजी ही हैं। और सद्गुरु होने के कारण भागवत में राधाजी का नाम नहीं लिया। शुकदेवजी ने अपने मुख से राधा अर्थात अपने गुरु का नाम नहीं लिया।

राधाजी का नाम भागवत में न आने का दूसरा एक कारण और भी है। जब शुकदेव जी राधा शब्द का चिंतन कर लेते तो वह उसी पल राधा जी की भक्ति भाव में डूब जाते।

सद्गुरु का चिंतन करो तो, डूबना स्वभाविक सी बात है। शुकदेव जी श्रीराधाजी की भक्ति में डूबते थे, तो कई दिनों तक उस भाव से बाहर ही नहीं आ पाते थे, यह सब पहले हुआ रहा होगा। Please Read Also-श्री कृष्ण शरणम ममः श्री कृष्ण शरणम ममः भजन

शुकदेवजी राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाने आए थे। राजा परीक्षित के पास केवल 7 दिन ही बचे थे। सातवें दिन होने सर्पराज तक्षक उन्हें डसने वाला था। फिर यदि राधा नाम स्मरण में शुकदेवजी डूब जाते तो भागवत कथा कैसे पूरी होती? इसलिए भी राधाजी का नाम भागवत में नहीं आया। Please Read Also-श्याम तेरे काम बड़े अचरज भरे, कृष्ण गोपाल गोविंद माधव हरे I

जब राधाजी से श्रीकृष्ण ने पूछा कि इस साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी। तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए? मैं तो आपके पीछे हूँ। इसलिए कहा गया कि :

कृष्ण देह हैं तो राधा आत्मा हैं! कृष्ण शब्द हैं तो राधा अर्थ हैं! कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत हैं! कृष्ण बंसी हैं तो राधा स्वर हैं! कृष्ण समुंद्र हैं तो राधा तरंग हैं! कृष्ण फूल हैं तो राधा उसकी सुगंध हैं! 

इसलिए राधाजी इस लीला-कथा में शब्द रूप में अदृश्य रहीं है। शब्द रूप में अदृश्य रहीं अर्थात उनका नाम शब्दों में दर्ज न हुआ परंतु वही इसकी आत्मा हैं। राधा जी भागवत में कहीं दिखती नहीं हैं। इसलिए राधाजी को इस रूप में नमन किया। 

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