भगवान अपने प्रिय भक्तों की रक्षा हर वक्त करते है

भगवान अपने प्रिय भक्तों की रक्षा हर वक्त करते है

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भगवान अपने प्रिय भक्तों की रक्षा हर वक्त करते है : एक बार संत सूरदास जी को किसी ने भजन करने के लिए आमंत्रित किया I भजनोपरांत उन्हे अपने घर तक पहुँचाने का ध्यान उसे नहीं रहा I

सूरदासजी ने भी उसे कष्ट नहीं देना चाहा और स्वयं हाथ मे लाठी लेकर गोविंद-गोविंद करते हुये अंधेरी रात मे पैदल घर की ओर निकल पड़े I

रास्ते मे एक कुआं पड़ता था I वे लाठी से टटोलते-टटोलते भगवान का नाम लेते हुये बढ़ रहे थे I और उनके पांव और कुएं के बीच मात्र कुछ दूरी रह गई थी I कि उन्हे लगा कि किसी ने उनकी लाठी पकड़ ली है I राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई

उन्होने पूछा तुम कौन हो? उत्तर मिला बाबा मैं एक बालक हूँ I मैं भी आप का भजन सुन कर लौट रहा हूँ I आपका भजन सुनना मुझे बहुत प्रिय लगता है I देखा कि आप गलत रास्ते जा रहे हैं I इसलिए मैं इधर आ गया I चलिये, आपको घर तक छोड़ दूँ I

तुम्हारा नाम क्या है बेटा ? सुरदास ने पूछा – बाबा, अभी तक मेरी माँ ने मेरा नाम नहीं रखा है I तब मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूँ ? I कोई भी नाम चलेगा बाबा, सूरदास ने रास्ते में और कई सवाल पूछे I उन्हे ऐसा लगा कि हो न हो, यह कन्हैया है I

वे समझ गए कि आज गोपाल स्वयं मेरे पास आए हैं I क्यो नहीं मैं इनका हाथ पकड़ लूँ I यह सोंच उन्होंने अपना हाथ उस लकड़ी पर कृष्ण की ओर बढ़ाने लगे I भगवान कृष्ण उनकी यह चाल समझ गए I फूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी हिंदी लिरिक्स I

सूरदास का हाथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था I जब केवल चार अंगुल का अन्तर रह गया तब श्री कृष्ण लाठी को छोड़ दूर चले गए I

जैसे उन्होंने लाठी छोड़ी सूरदास विह्वल हो गए I आँखों से अश्रुधारा बह निकली, बोले – मैं अन्धा हूँ I ऐसे अन्धे की लाठी छोड़ कर चले जाना क्या कन्हैया तुम्हारी बहादुरी है और उनके श्रीमुख से वेदना के यह स्वर निकल पड़े :-

बांह छुड़ाके जात हैं, निर्बल जानी मोही I
हृदय छोड़के जाय तो मैं मर्द बखानू तोही II

मुझे निर्बल जानकार मेरा हाथ छुड़ा कर जाते हो I पर मेरे हृदय से कहाँ जाओगे I तो भगवान कृष्ण ने कहा - बाबा, अगर मैं आप ऐसे भक्तो के हृदय से चला जाऊं तो फिर मैं कहाँ रहूँ ?

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Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी