भगवान राम ने सीता को वापस जंगल में क्यों भेज दिया था?

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भगवान राम ने सीता को वापस जंगल में क्यों भेज दिया था?

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भगवान राम ने सीता को वापस जंगल में क्यों भेज दिया था? –

आप सभी ने श्री राम और सीता जी की कहानी तो आपने रामायण में पढ़ी है। जब श्री राम अयोध्या वापिस आये थे। उसके बाद कि कुछ वाक्या मैं आपके सामने बताने जा रहा हूँ। तो चलिए शुरू करते है। तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार भजन हिंदी लिरिक्स

भगवान राम ने सीता को वापस जंगल में क्यों भेज दिया था?

भगवान राम के अयोध्या वापिस आने के बाद अयोध्या में बहुत खुशिया मनाई गई और श्री राम और सीता जी को बहुत समय के बाद ये खुशियां प्राप्त हुई थी। (मैं यहां पर श्री राम जी के मानवीय रूप की बात कर रहा हूँ। क्योकि राम जी तो स्वयं ही सुख के धाम है उनको तो दु:ख छू भी नही सकता। मैं उनके लीला रूप की बात कर रहा हूँ।) यही रात अंतिम यही रात भारी रामायण लिरिक्स

तो राम जी और सीता जी बहुत खुश थे लेकिन उनकी खुशी ज्यादा समय तक रहने वाली नही थी। राम जी ने राजा बनने के बाद गुप्त रूप से अपने राज्य का हाल देखने का निश्चय किया और रूप बदल कर आये। वहाँ पर एक व्यक्ति ने अपनई धर्मपत्नी को घर से निकाल दिया। क्योंकि वो एक रात किसी दूसरे के घर गुजार कर आई थी। शबरी मगन है राम भजन में हिंदी भजन लिरिक्स

उसने कहा कि बहुत तेज बारिश की वजह से उसको रुकना पड़ा। लेकिन उसका पति नही माना और कहा कि मैं राजा राम नही जो 1 साल तक दूसरे के घर मे रही सीता को अपना लिया। कई लोगों ने उसका समर्थन किया। ये बात धीरे-धीरे राज्य में फैलने लगी ! राम जी की प्रजा में ये बात होने लगी कि राम जी को माता सीता का त्याग कर देना चाहिए। नगरी हो अयोध्या सी रघुकुल सा घराना हो भजन

राम जी अब धर्म संकट में पड़ गए कि उनको क्या करना चाहिए। उनकी समझ में नही आ रहा था कि वो राजधर्म निभायें या पति धर्म। वो अपने गुरु के पास गए और उनसे पूछा ! कि मुझे राजधर्म निभाना चाहिए या कोई व्यक्तिगत धर्म ! तब उनके गुरु वशिष्ठ जी ने कहा कि आप एक राजा है और राजा का पहला धर्म राजधर्म है। हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता भजन लिरिक्स

तुमको राजधर्म निभाना चाहिए। राम जी ने गुरु की आज्ञा मानी और राजधर्म को निभाने के लिए माता सीता का त्याग कर दिया।


क्यों हुआ था बाली और हनुमान जी के बीच युद्ध।

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी