ब्रज की महारानी श्री राधा रानी के नाम का गुणगान

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ब्रज की महारानी श्री राधा रानी के नाम का गुणगान

नित्य किशोर उपासना, जुगल मंत्र को जाप।
वेद रसिकन की बानी, श्री वृन्दावन इष्ट श्यामा महारानी

भावार्थ- एक रसिक भक्त के रूप में उसे पहचाना जा सकता है। जो राधा कृष्ण की नित्य किशोर अवस्था में उपासना करता है। जो युगल नाम का भजन करता है, जिसके लिए वेद रसिकों की वाणी है। जो वृंदावन को अपने जीवन से अधिक प्रेम करता है। और जिसकी इष्ट राधा महारानी है॥

एक बार छबि देखी तिनकौं, त्रिभुवन तृण सा लागे है।
इस दर का जु भिखारी उससे, सब जग भिक्षा माँगे है।
जो ह्याँ का फिर सो न अनत का, दंपति पानिप पागे है।
‘हित भोरी’ मतवारा बेसुध, सोता सा जग जागे है

भावार्थ- एक बार जिसे प्रेम रस धाम वृन्दावन के रसमय वैभव एवं रस-सम्पत्ति को देखने का परम शुभ अवसर प्राप्त हो जाता है। उसे तीनों लोकों की सम्पत्ति तिनके के समान तुच्छ प्रतीत होने लगती है। जो वृन्दावनेश्वरी स्वामिनी श्री राधा जी के दरवाजे का भिखारी बन जाता है। उससे सम्पूर्ण जगत भिक्षा प्राप्त करने की कामना करने लगता है।

जिसके ऊपर श्री धाम वृन्दावन का रंग चढ़ जाता है। वह फिर सभी जगह से मुँह फेरकर श्री हितदम्पति एक प्राण दो देह वाले श्री श्यामा-श्याम के रूप रस में डूबा हुआ रहता है।

श्री हित भोरीसखी जी कहती हैं ! कि वह तो तब श्री हित लाडिली-लाल के प्रेम में बाबला सा होकर अपनी सुध-बुध भी भूल जाता है। किन्तु जगत ऐसा सोचता है कि वह तो सो रहा है। जब कि सभी अपने-अपने कार्यों में संलग्न हैं॥

राधा नाम परम सुखदायी ।
जाके सुमरित उर में आवत, सुन्दर कुँवर कन्हाई ।
दिव्य केलि श्रीवृंदावन की, मन में रही समाई ।
हितमय रसमय नाम पियारो, रसिकन के मन भाई ।
कालिन्दी की लहर-लहर ने, राधा-राधा धूम मचाई ।
गोपालप्रिया हित नाम पियारो, रसना पै रह्यौ छाई

भावार्थ- श्री राधा नाम परम सुख दायी है, जो भी इस नाम का सुमिरन करता है, तत्काल ही सुंदर कृष्ण कन्हैया लाल उस जीव के हृदय में आ जाते हैं। इस नाम के प्रभाव से श्री वृंदावन धाम की दिव्य केली मन में समाई रहती है।

यह नाम प्रेम मय है, रस परिपूर्ण है एवं समस्त रसिकों को भाता है। श्री यमुना जी की लहर लहर “राधा राधा” गाती है। श्री हित गोपाल दास कहते हैं कि उन्हें भी यह नाम बहुत प्रिय है, एवं उनकी रसना पर “श्री राधा” नाम ही छाया हुआ है॥

श्रीवृन्दा विपुन अगाध रस, लहै न कोऊ थाहि ।
ललित किसोरी कृपा तें, मन-वच-क्रम अवगाहि ॥

भावार्थ- श्री वृन्दावन का यह केलि-विलास रस अथाह है। इसकी गहराई को कोई नाप नहीं सकता। जिस पर भी श्रीललितकिशोरीजी (श्री राधिकाजी) की कृपा हो जाती है। बस वही मन, वाणी और देह से इस रस में अवगाहन करने लगता है॥

हमारे ब्रज की रानी राधे ।
जिन निज बस करि मोहन सह सब ब्रज-नर-नारी नाधे॥
परम उदार धाइ सुमिरन के पहिलेहि नासत बाघे ।
कहि ‘हरिचंद’ सोच उनकी मोहि जे नहिं इनहि अराधे ॥

भावार्थ- हमारे ब्रज की रानी श्री राधे महारानी हैं। जिनके वश में सबको वश में करने वाले श्री स्याम-सुंदर मोहन लाल हैं एवं समस्त ब्रज के नर और नारी इनकी भक्ति करते हैं। हमारी ऐसी परम उदार स्वामिनी हैं। जिनका सुमिरन करने के संकल्प से पूर्व ही समस्त बाधाओं का नाश हो जाता है।

श्री भारतेंदु हरिशचंद्र कहते हैं कि मैं उन जीवों के बारे में विचार करता हूँ (अर्थात् वो तो बेचारे अभागे हैं) जो ऐसी परम उदार स्वामिनी श्री राधा महारानी की भक्ति नहीं करते॥

राधा रससुधासिन्धु राधा सौभाग्यमञ्जरी ।
राधा व्रजाङ्गनामुख्या राधैवाराध्यते मया ॥

भावार्थ- श्री कृष्ण कहते हैं ! कि मैं श्री राधा महारानी की आराधना करता हूँ। क्यूँकि श्री राधा सुधा-रस की सिंधु हैं। श्री राधा सौभाग्य की जननी हैं। एवं श्री राधा बृजांग्नाओं की मुखिया हैं॥

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